Wednesday 20 July 2011

आले इमरान -Soorah 3 para 3

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


आले इमरान -3
चौथी किस्त


मैंने आपको क़ुरआन और हदीस का फर्क समझाया था।
तो लीजिए मुहम्मद की एक हदीस मुलाहिजा फरमाइए - - -


"जो व्यक्ति केवल मेरी सहमति के लिए और मुझ पर विश्वास जताने हेतु तथा मेरे दूत (मुहम्मद) के प्रमाणी करण के कारण मेरे रस्ते में जिहाद की उपलब्धियों के लिए निकलता है तो मेरे लिए निर्धारित है कि मैं उसको बदले में माल ए गनीमत (लुटे गए माल) से माला माल कर के वापस करूँ या जन्नत में दाखिल करूँ. मोहम्मद कहते है अगर मुझे मेरी उम्मत (सम्प्रदाय) का खौफ न होता (कि मेरे बाद उनका पथ प्रदर्शन कौन करेगा) तो मैं मुजाहिदीन के किसी लश्कर के पीछे न रहता और यह पसंद करता कि मैं अल्लाह के रह में सम्लित होकर जीवित रहूँ, फिर शहीद हो जाऊं, फिर जीवित हो जाऊं, फिर शहीद हो जाऊं - - -

"(हदीस बुखारी ३४)

मदरसों में शिक्षा का श्री गणेश इन हदीसों (मुहम्मद कथानात्मकों) से होती है, इससे हिन्दू ही नहीं आम मुस्लमान अनजान है.

मुहम्मदी अल्लाह की सहमति मार्ग क्या है ? इसे हर मुसलमान को इस्लामदारी से नहीं, बल्कि ईमानदारी से सोचना चाहिए.

मुहम्मदी अल्लाह मुसलमानों को अपने हिदू भाइयों के साथ जेहाद कि रज़ा क्यूं रखता है? इसका उचित जवाब न मिलने तक समस्त तर्क अनुचित हैं जो इस्लाम को शांति का द्योतक सिद्ध करते हैं.

मुसलमानों! सौ बार बार इस हदीस को पढो, अगर एक बार में ये तुम्हारे पैगम्बर तुम्हारी समझ में न आएं कि ये किस मिट्टी के बने हुए इन्सान थे?

खुद को जंग से इस लिए बचा रहे हैं कि इन को अपनी उम्मत का ख़याल है, तो क्या उम्मत के लिए अल्लाह पर भरोसा नहीं या मौत का क्या एतबार ?

सब मक्र की बातें हैं. मुहम्मद प्रारंभिक इस्लामी छ सात जंगों में शामिल रहे जिसे गिज्वा कहते हैं. हमेशा लश्कर के पीछे रहते जिसको स्वयं स्वीकारते है. तरकश से तीर निकाल निकाल कर जवानो को देते और कहते कि मार तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान.

जंगे ओहद में मिली शर्मनाक हार के बाद अंतिम पंक्ति में मुंह छिपाए खड़े थे, .नियमानुसार जब अबू सुफ्यान ने तीन बार आवाज़ लगाईं थी कि अगर मुहम्मद जिंदा हों तो खुद को जंगी कैदी बनना मंज़ूर करें और सामने आएं . अल्लाह के झूठे रसूल, बन्दे के लिए भी झूठे मुजरिम बने. जान बचा कर अपनी उम्मत को अंधा बनाए हुए हैं .


आइए अब कुरआनी आयतों को देखा जाए कि अल्लाह इन में कौन सी रहस्य की बातों पर से पर्द हटाता है - - -" बे शक अल्लाह मेरे रब भी हैं और तुम्हारे रब भी हैं, सो तुम लोग इस की इबादत करो मगर ईसा ने जब इस से इंकार देखा तो कहा कोई ऐसे लोग भी हैं जो हमारे मदद गार हो जाएँ? अल्लाह के वास्ते. हवारीन बोले हम हैं मदद गार अल्लाह के, हम अल्लाह पर इमान लाए और आप इस के गवाह रहिए कि हम फरमा बरदार हैं."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (51-52)(हवारीन=ईसा के साथी धोबी)
ये पैगाम-ए-इलाही नहीं, मुहम्मद की पुकार है, ईसा की तरह मक्का के लोगो को. ईसा के हवारी बन जाने की जो ईसा मसीह को जानते हैं, वोह मुहम्मद की सुर्रे बाज़ी को समझते हैं कि वह जो कुछ कह रहे हैं वह सब झूट है, ईसा के हवारी तो एन ईसा की गिरफ्तारी पर दुम दबा कर भाग खड़े हुवे थे, किसी ने उनकी मुखबिरी की थी तो कुछ ने अदालत के सामने मसीह को पहचानने से इंकार कर दिया था. मुहम्मद के इर्द दिर्द मुसाहिबों (चमचों) की कमी नहीं मगर कुरआन का पेट ईसा की बे सर पैर की बातों से भर रहे हैं।



" अल्लाह ईसा से कहता है तुम गम न करो, मैं तुम को वफ़ात (मौत) देने वाला हूँ, मैं तुम को अपनी तरफ उठा लेता हूँ और उन लोगों से पाक करने वाला हूँ जो तुहारे मुनकिर हैं और जो तुहारा कहना मानने वाले हैं वह गालिग़ होंगे। अल्लाह ईसा से भी रोज़े महशर की कहानी छेड़ देता है कि वह मुन्किरों की खबर लेगा, इस तरह मुहम्मद अपनी तबलीग को ईसा का फ़्रेम पहना देते हैं।"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (54-58)
(तबलीग=प्रचार)
मुस्लमान इन कुरानी आयातों में क्या मनन चितन के लिए कुछ पाते हैं? या फिर जैसा इस के ज्ञानी प्रचार करते हैं कि इस में मानव पीडा का हर उपचार है, हिकमत है, युक्ति है, जीवन धारा है, दूर दूर तक कहीं ऐसा कुछ है क्या?एक आयते अजीबिया मुलाहिज़ा हो. खुद मुहम्मद हालाते अजीबिया (आश्चर्य जनक) में हैं. पता नहीं वह वज्द (उन्मत्ता) के आलम में हैं या फिर हालते उम्मियत(निरक्छरता) में अपनी बात कह न पा रहे हों और इल्जाम अल्लाह पर है कि वोह मुश्तबाहुल मुराद (शंका युक्त) आयतें नाजिल करता है।


" बे शक हालते अजीबिया ईसा की अल्लाह के नज़दीक मुशाबह हालते अजीबिया आदम के है कि उनको मिटटी से बनाया, फिर उनको हुक्म दिया कि हो, बस वह हो गए। यह अम्र वाकई आप के परवर दिगर की तरफ से है सो शुबहा करने वालों में न से न बनो।"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (59-60)

(मुशाबह=मुखाकृति)५० साल पहले तक जब मदरसों के मुल्ले समाज पर हावी न थे और समाज पर हदीसों का इतना असर न था, उस वक़्त अगर कोई हदीस गैर फितरी(अलौकिक) मुल्ला बयान करता तो लोगों के तेवर चढ़ जाते और उसकी ज़बान बंद करदी जाती कि "कठ मुल्लाई मत किया करो" आज मुल्लाओं का गलबा हो गया है "हुज़ूर ने फ़रमाया है" कह कर कठ मुल्लाई बयान करते फिरते हैं।


मुलाहिज़ा हो कि मुहम्मद कुरआन में कैसी कठ मुल्लाई की शर्त ईसाइयों के सामने रखते हैं - - -

" जो शख्स ईसा के बाब में हुज्जत करे--- तो आप फरमा दीजिए कि आओ हम बुला लें अपने बेटों और तुम्हारे बेटों को, अपनी औरतों को और तुम्हारी औरतों को और खुद अपने तनों को और तुम्हारे तनों को, फिर हम दिल से दुआ करें इस तौर पर कि अल्लाह की लानत भेजें जो इस बहस में नाहक हो।"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (61)
सूरह का नाम आले इमरान है, इमरान मरियम के बाप थे। मुहम्मद ने सुने सुनाए इन्जीली किस्सों को अपने अंदाज़ में डायलाग के साथ गढा है जिसमें अधूरे पन के साथ साथ फूहड़ पन भी है. कहानी को अल्लाह के नाम से जोड़ते हैं और अपने हक में तोड़ते हैं. तहरीर में बेशर्मी और बेहूदगी भरी हुई है.

जिसारते बेजा का साफ़ साफ़ मुज़ाहिरा है.

नीम दीवानगी की इन बकवासों को अल्लाह का कलाम कहा गया है. दुन्या की तमाम मज़हबी किताबों का अख्लाकी मुवाज़ना हो तो कुरआन उन में रुस्वाए ज़माना सिन्फ़ साबित होगी. इस की जवाब देही कभी भी वक़्त के मौजूदा बे कुसूर मुसलमानों की आबादी से हो सकती है

कि ऐसे गैर अख्लाकी और इंसानियत दुश्मन एह्कम की पैरवी क्यूँ करते हो?

कभी भी दुन्या का मुस्लमान एकदम खाली हाथ हो सकता है, और उसका हशर इस्पेनी मुसलमानों जैसा हो सकता है जहाँ पर उन्हें सात सौ साल हुमरानी करने के बाद भी उन्हीं के अल्लाह के हिकमत भरे जहन्नम में झोंक दिया गया था.

जी हाँ दस लाख जिंदा अल्लाह वाले एक साथ जलाए गए थे.

सदियों यह ओलिमा गुमराह किए रहे इतनी बड़ी आबादी को. बेहतर है कि इस से पहले ही ये नादान क़ौम बेदार हो जाए. आला तर जदीद इंसानी क़द्रें इस के लिए आँखें बिछाए बैठी हुई है।



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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