Sunday 11 September 2016

Hindu Dharm Darshan 5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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हिन्दू धर्म दर्शन 
ब्रह्मा विष्णु महेश 
तीसरी किस्त 

ब्रह्मा और विष्णु के बाद आर्यन ने एक ईश्वर हिदुस्तानी को चुना है , वह हैं महेश यानी शिव जी .यह महाशय ब्रह्मा के शरीर अंगों से संचालित विष्णु के सृष्टि का सर्व नाश कर देते हैं .
इन तीनों ईश्वरों का कार्य काल ढाई अरब वर्ष का होता है .
शिव जी भी हिन्दू धर्म के अजीब व् ग़रीब हस्ती हैं . 
कहते हैं कि शिव जी जब क्रोधित होते थे तो डमरू वादन करते , उनके ताण्डव नृत से 
 पर्वत हिल जाते , जैसे क़ुरान कहता है कि दाऊद अलैहिस्समन के साथ पहाड़ सजदा करते थे .
शिवजी बहुत गुस्सैल हुवा करते थे .
उनकी एक खूबी और भी है कि वह शांत होने पर अपनी जड़ी बूटी  (भांग और गांजा )खा पी कर , शरीर पर भभूत लगा कर पार्वती के बगल में बैठ जाते  .
इनका वस्त्र हिरन की खाल होती और भूषन नाग देवता .
आज भी  शिवजी की वेश भूषा में लाखों साधक  भारत के शहरों और सड़कों पर देखे जा सकते हैं . यह जनता से दंड स्वरूप भिक्ष वसूलते हैं .
अनोखे शिव लिंग (तानासुल ) की चर्चा इतनी ही काफी है कि इसे देश भर में मंदिरों में देखे जा सकते हैं जिसकी पूजा नर नारी सभी करते है .
शिव लिंग के विषय में मेरा ज्ञान अधूरा हैं , इतना ही सुना है कि क्रोधित होकर शिव जी ने अपना लिंग काट कर ज़मीन पर फेंक दिया था, जनता से कुछ न बना तो इसे पूजने लगी .
भारत की एक विचित्र जंतु नागा साधु होते हैं . शिव जी मात्र हिरन खाल शरीर पर लपेटते , नागा जीव उस से भी मुबर्रा होती है . मादर जाद नंगे , 
शिव बूटी ग्रहण करने के लिए चिलम एक मात्र इनकी संपति होती है .
मैं कुरआन के रचनाकार पर गरजता रहता हूँ , 
कोई इस गाथा पर बरसने वाला है ? 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. मोमिन साहब, हिन्दू धर्म में जितना आत्मचिंतन और परिमार्जन हुआ है उतना किसी अन्य धर्म में नहीं। २५०० साल पहले ही इसमें अनेकों संप्रदाय बन चुके थे।शैव, वैष्णव, बौद्ध, जैन, सिख सभी अपने भिन्न विचारों और हिन्दू धर्म में सुधार हेतु ही बने थे और इसके कारण हिन्दू धर्म में अनेको कुरीतियां ख़त्म हो चुकी है। आर्य समाज ने मूर्तिपूजा और कर्मकांडों को नकार कर केवल ईश्वर की उपासना पर बल दिया। हिन्दू धर्म में परिवर्तन और संशोधन पर हिंसक प्रतिक्रिया नहीं होती न ही यह किसी पर बाध्यकारी होते हैं। मैं घोर नास्तिक होते हुए भी हिन्दू हो सकता हूँ। यह अन्य धर्मों में संभव नहीं है। हिन्दू धर्म मूलतः अध्यात्म पर आधारित है। कर्मकांड तो अपनी इच्छा पर होता है। यह किसी पर बाध्यकारी नहीं है। आप इस्लाम की कमियों की और इशारा कर कुरीतियों को दूर करने की आवाज़ उठाकर एक साहसी कार्य कर रहे हैं। इस समय ऐसा करने वाले बहुत काम हैं जबकि इसकी आवश्यकता बहुत अधिक है। आप इस कार्य को बखूबी करते रहें। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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