मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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हिन्दू
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हिन्दू
भारत वासियों को यह नाम अरबियों और फारस अर्थात ईरानियो का दिया हुवा है ,
इस तथ्य को ज़माना जानता है कि वह स को उच्चारित नहीं कर पाते थे , उनके लिए सि की जगह हि आसान लगा और सिंधु हिन्दू उच्चारित करने लगे।
सिंधु नदी के पार रहने वालों को हिन्दू कहने लगे।
अरब दुन्या के ग़लबे के बाद इसका दिया हुवा नाम सारी दुन्या में जाना जाने लगा,
हत्ता कि खुद भारतीय अपने आपको हिन्दू कहने लगे।
यहाँ का रूप रंग काला हुवा करता था , ग़रज़ अरबी लुग़ात में इन्हें काला कुरूप लिखा और आर्यन ने इनको डाकू चोर लुटेरे लिखा।
अरबी स्वयंभू ख़ुद को सभ्य क़ौम समझते थे और ग़ैर अरब को अजमी अर्थात अन्धे का नाम दिया। इस्लाम के बाद तो उनका रुतबा और बढ़ गया।, गैर मुस्लिम मुल्को को उन्होंने हर्बी (चाल-घात वाली क़ौम) की संज्ञा दी।
हिन्दुओं की विडम्बना ये है कि उन्होंने अरबों , ईरानियों और अंग्रेज़ों की बख्शी हुई उपाधि को अपने ऊपर थोप लिया जैसे कि क़ज़्ज़ाक़ ने अरबियों का बख्शा हुवा नाम क़ज़्ज़ाक़ (लुटेरे) को न सिर्फ़ अपनाया बल्कि अपने मुल्क का नाम भी रख लिया "क़ज़्ज़ाक़िस्तान"
सुनने में आया है कि अब उनके समझ में बात आई है कि वह क़ज़्ज़ाक़िस्तान का नाम बदल रहे हैं।
शब्द कोष (लुग़ातें) ऐतिहासिक सच्चाइयाँ हैं ,
इस पर हिन्दुओं को इसे पढ़ कर आग बगूला नहीं होना चाहिए बल्कि संतुलन क़ायम रखते हुए कुछ नया क़दम उठाना चाहिए।
खुद आर्यन ने भारत पर प्रभुत्व के बाद असली भारतीयों को राक्षस, पिचाश , असुर और वानर तक लिखा।
वैसे हर क़ौम सुदूर अतीत में असभ्य ही रहे हैं अमानुष से ही मनुष्य बने।
सब को आदमी से इंसान बनने में समय लगा ,
कोई पहले तो कोई बाद में।
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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