Saturday, 29 October 2016

Hindu Dharam Darshan 19

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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Pawan Prajapati
*वाल्मीकि ब्राह्मण था, अछूत नही*
( कृपया इतिहास जानने पूर्ण पढ़िए )
साथियों .......
काफी समय से यह चर्चा का विषय रहा है कि आखिर वाल्मीकि कौन थे ?? ब्राह्मण या अछूत ?? अब पूरी तरह सिद्ध हो चुका हैं कि महाकवि वाल्मीकि ब्राह्मण था, उनका अछूतों और दलितों से किसी भी प्रकार का दूर- दूर तक क़ोई सम्बन्ध ही नही था , और न है ।
महाकवि वाल्मीकि का खानदान इस प्रकार है ।
ब्रह्मा ---------@ प्रचेता ------ @वाल्मीकि 
वाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड सर्ग 16 श्लोक में कहाँ है " राम मैं प्रचेता का दशवाँ पुत्र हुँ ।" मनुस्मृति में लिखा है प्रचेता ब्रह्मा का पुत्र था ।रामायण के नाम से प्रचलित कई पुस्तको में भी महाकवि वाल्मीकि ने अपना जन्म ब्राह्मण कुल में बताया है ।
साथियों........ ** चूहड़ा (भंगी)* जाति को वाल्मीकि कब बनाया गया, इसके पीछे लगभग 80 वर्षो पुराना इतिहास है । जब डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर ने घोषणा की ** मैं हिन्दू पैदा हुआ , यह मेरे वश में नही था , लेकिन मैं हिन्दू के तौर पर मरूँगा नही । और अछूतों को हिन्दू धर्म का त्याग कर देना चाहिए क्योकि हिन्दू धर्म में रहते हुए ऊँची जाति की नफ़रत और भेदभाव से छुटकारा नही मिल सकता ।**
बाबा साहब डॉ अम्बेडकर की इस घोषणा से गैर हिन्दुओ के मुह में अछूतों को अपने धर्म में शामिल करने मुह में पानी आता रहा। वही हिन्दू धर्म के ठेकेदारो के पैरो के निचे से जमींन खिसकने लगी थी ।
अपनी योजना के अधीन सन् 1922 में हिन्दू आर्य समाजी नेताओ ने ** चूहड़ा ** जाति के लिए महाकवि वाल्मीकि को खोज निकाला । और चमारो को उनके जाति में पैदा होने के कारण रविदास जी (रविदासिया आदि धर्म) के अनुयायी बनने प्रेरित किया ।
आर्य समाज ने अपनी इस योजना को सफल बनाने लाहौर में वेतनभोगी कुछ वर्कर नियुक्त किये इनमें पृथ्वीसिंह आजाद ,स्वामी शुद्रानंद और प्रो. यशवंत राय प्रमुख थे ।इन लोगो ने लाहौर ट्रेनिग से वापस आकर वाल्मीकि को चूहड़ा जाति के ऊपर थोप दिया ।
हिन्दुओ की नफरत से बचने के चूहड़ा जाति ने आर्य समाज के प्रचारको के प्रभाव में आकर अपनी जाति का नाम बदलकर वाल्मीकि रख दिया ।किन्तु हिन्दुओ की नफ़रत में कोई अंतर नही आया भेदभाव और नफ़रत पहले जैसे ही बरक़रार है ।
आज कल के शिक्षित नौजवान इस सडयंत्र को समझने लगे है । वे मानते है कि वाल्मीकि यदि शुद्र था तो उनको संस्कृत पड़ने लिखने का आधिकर उस काल में किसने दिया ?? वाल्मीकि शुद्र थे तो रामायण में शूद्रों के प्रति इतनी नफ़रत क्यों लिख मारी ।
ये नौजवान न अपने आप को वाल्मीकि कहलाने से इंकार कर रहे है बल्कि वे वाल्मीकि रामायण की कठोर शब्दों में आलोचना भी करते है । 

साथियों .... आप खुद सोचिये और अपना भविष्य उज्जवल करने अम्बेडकर मिसन से जुड़ जाइये । आप ही को तय करना है कि हमें रोशनी और उन्नति की ओर जाना है या दलदल और अँधेरे में फसकर अपना जीवन बर्बाद करना है ।


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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