Monday 10 October 2016

सूरह सजदा - ४१-पारा २४ -1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह  सजदा - ४१-पारा २४  
किस्त -1

भारत के मुस्तकबिल करीब में मुसलामानों की हैसियत बहुत ही तशवीश नाक होने का अंदेशा है. अभी फ़िलहाल जो रवादारी बराए जम्हूरियत बक़रार है, बहुत दिन चलने वाली नहीं. इनकी हैसियत बरक़रार रखने में वह हस्तियाँ है जिनको इस्लाम मुसलमान मानता ही नहीं और उन पर मुल्ला फतवे की तीर चलाते रहते हैं. उनमे मिसाल के तौर पर डा. ए पी. जे अब्दुल  कलाम, तिजारत में अज़ीम प्रेम जी, सिप्ला के हमीद साहब वगैरा ,फ़िल्मी  दुन्या के ए. आर. रहमान, आमिर खान, शबाना आज़मी. और दिलीप कुमार, फ़नकारों में फ़िदा हुसैन, बिमिल्ला खान जैसे कुछ लोग हैं. आम आदमियों में सैनिक अब्दुल हमीद जैसी कुछ फौजी हस्तियाँ भी हैं जो इस्लाम को फूटी आँख भी नहीं भाते. मैंने अपने कालेज को एक क्लास रूम बनवा कर दिया तो कुछ इस्लाम ज़दा कहने लगे की यही पैसा किसी मस्जिद की तामीर में लगते तो क्या बात थी, वहीँ उस कालेज के एक टीचर ने कहा तुमने मुसलामानों को सुर्खुरू कर दिया, अब हम भी सर उठा कर बातें कर सकते है.
कौन है जो सेंध  लगा रहा है आम मुसलामानों के हुकूक़ पर?
कि सरकार को सोचना पड़ता  है कि इनको मुलाज़मत दें या न दें?
आर्मी को सोचना पड़ता है कि इनको कैसे परखा जाय?
कंपनियों को तलाश करना पड़ता कि इनमें कोई जदीद तालीम का बंदा है भी?
बनिए और बरहमन की मुलाजमत को इनके नाम से एलर्जी है.
इसकी वजेह इस्लाम है और इसके गद्दार एजेंट जो तालिबानी ज़ेहन्यत रखते हैं.
यह भी हमारी गलतियों से खता के शिकार हैं. 
हमारी गलती ये है कि हम भारत में मदरसों को फलने फूलने का अवसर दिए हुए है जहाँ वही पढाया जाता है जो कुरआन में है.

अब शुरू करिए शैतानुर्रज़ीम  के नाम से - - -    

"हा मीम"
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (१)

जी हाँ! यह भी एक बात कही है अल्लाह ने, जिसे आप समझ नहीं पाएंगे. जो बात अल्लाह की आपके समझ में आती हैं वो ही कौन सी बेहतर बात है. ज़िन्दगी को कौन सा मज़ा देती हैं.

"ये कलाम रहमान और रहीम की तरफ़ से नाज़िल किया जाता है."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (२)

मुहम्मद के जेहन में पहली बार रहमान और रहीम नाज़िल हुए हैं यही बात हिदुस्तानी रवा दारी में जब कही जाती है तो राम रहीम हो जाती है .

"बशारत देने वाला और डर सुनाने वाला और वह लोग सुनते ही नहीं, और मुँह फेर कर चले जाते हैं .''
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (४)

जो आयतें ज़िन्दगी को मुर्दनी बनाएँ उनको कौन सुनना गवारा करेगा? जब तक कि इस्लामी तलवार सर पर न हो. हम धीरे धीरे कोफ़्त को सुनने के आदी हो गए हैं, वह भी ज़बाने गैर में. ये आयतें बशारत नहीं खबासत और कराहियत देती हैं अगर अपनी ज़बान में इसका इल्म हो, इसका ख़ालिस तर्जुमा हो .

"और कहते हैं कि जिस बात की तरफ़ आप हमें दावत देते हो हमारे दिल में उस के लिए कोई जगह नहीं और हम ने अपने कान भी बंद कर लिए, आप के और हमारे बीच पर्दा पद गया है, हमारी समझ में कुछ नहीं आता, बस तुम अपना काम करो और हम अपना काम जारी रखेंगे."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (५)

ये बातें लोग उल्टा मुहम्मद के मुँह पर तअने के तौर पर वापस मारते हैं. अल्लाह की आयतें बार बार दोहराई जाती हैं कि ये काफ़िर समझने वाले नहीं हमने इनके कानों में डाट लगा दी कई और आँखों पर पर्दा डाल दिया है. सुम्मुम, बुक्मुम फ़हुम लायारजऊन. है जिसे बार बार वह कुरआन में गाया करते है.

"सुनो! मैं भी तुम्हारी तरह ही एक बशर हूँ, मुझ पर ये वह्यी नाज़िल होती है कि तुम्हारा माबूद एक ही माबूद है सो इसकी तरफ़ सीध बाँध लो और इससे माफ़ी माँगो, वर्ना शरीक करने वालों की बड़ी बर्बादी होगी."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  २४ (६)

खुदा न करे कि कोई बशर तुम जैसा मक्कार दूसरा हो. ये मक्र भरी तुम्हारी वहियाँ इस धरती के करोड़ों  इंसानों का खून पी चुकी हैं फिर भी तुम्हारे अल्लाह की प्यास अभी बुझी नहीं.

"और उसने ज़मीन में उसके ऊपर पहाड़ बना दिए हैं,
और उसमें फायदे की चीज़ रख दीं,
और इसमें इसकी गिज़ाएँ तजवीज़ कर दीं.
चार दिन में पूरे हैं, पूछने वालों के लिए.
फिर आसमान की तरफ़ तवज्जो फ़रमाई और वह धुवाँ सा था,
सो इससे और ज़मीन से फ़रमाया कि तुम दोनों ख़ुशी से आओ या ज़बरदस्ती से.
दोनों ने अर्ज़ किया हम दोनों हाज़िर हैं,
सो दो रोज़ में इसके सात आसमान बनाए और हर आसमान में इसके मुताबिक अपना हुक्म भेज दिया और हमने इस करीब वाले आसमान को सितारों से ज़ीनत दी और हिफाज़त दी.
ये तजवीज़ है ज़बरदस्त वाक़िफ़ ए कुल की."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (१०-१२) 

हर जुमला मुहम्मद की मूर्खता का बखान करते हैं - -
तौरेती इलाही छ दिन में दुनिया की तकमील करता जिसकी फूहड़ नक़ल उम्मी ने की "चार दिन में पूरे हैं, पूछने वालों के लिए.'' 
आसमान धुवाँ था तो ज़मीन क्या थी? और कहाँ थी? कि अल्लाह उनको धमका रहा है किसी उजड पहेलवान की तरह
"सो इससे और ज़मीन से फ़रमाया कि तुम दोनों ख़ुशी से आओ या ज़बरदस्ती से."
दोनों भाई बहनों से अर्ज़ करवा रहा है उम्मी 
"दोनों ने अर्ज़ किया हम दोनों हाज़िर हैं, "
अपने अल्लाह का नया नाम तराशते हुए कहता है,"वाक़िफ़ ए कुल '' किसी ने सुझा दिया होगा कि उसका ये नाम दो. नाम भर रखने से क्या फ़ायदा, जब पूरा मज़मून ही गुड गोबर हो.

"उनसे कह दीजिए कि मैं तुमको ऐसे आफ़त से डरता हूँ जैसे आद ओ सुमूद पर आफ़त आई थी जब कि इनके पास इनके आगे से भी इनके पीछे से भी पैगम्बर आए थे."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (१३)

दुन्या में लाखों हुक्मरान आए हैं आदिलो मरदूद, मगर मुहम्मदी अल्लाह को दस पाँच नाम ही याद हैं जिन्हें बार बार दोहराता है.

"जिस दिन अल्लाह के दुश्मन दोज़ख की तरफ़ जमा कर के ले जाए जाएंगे, यहाँ तक कि जब इसके करीब आ जाएंगे तो इन के कान, इनकी आँखें और इनकी खालें इन पर इनके आमाल की गवाही देंगे. और उस वक़्त वह लोग अपने अअज़ा से कहेगे तुमने हमारे ख़िलाफ़ गवाही क्यों दिया ? वह कहेंगे कि अल्लाह ने हमें गोयाई दी, जिसने हर चीज़ को गोयाई दी."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (१९-२१) 

ए रसूल तेरा अल्लाह चालबाज़ है, ज़ालिम है, क़ह्हार है, अय्यार है, मक्कार है और मुन्तकिम है जैसा कि तूने कई बार बतलाया तो उसे इन बनाए गए गवाहों की क्या ज़रुरत है?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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