Tuesday 4 October 2016

Hindu Dharam Darshan 12

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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वेद दर्शन-3 

                         खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हवन करने के लिए ब्राह्मण अपने पोंगा पंडित लगाते हैं, 
यह ब्राह्मण के निठल्ले कपूत होते हैं जो राज काज में निपुणता से परे माने जाते हैं. 
यह समाज में हवन यज्ञ का माहौल बनाए रहते हैं. 
यजमान (हवन का भार उठाने वाला) को पटाया करते हैं, 
हवन की उपयोगता को समझाते है कि इस से वायु मंडल शुद्ध, सुरक्षीत और सुशोभित रहता है. यह पोंगे सैकड़ों देवताओं को यजमान के घर में मन्त्र उच्चारण से  बुलाते हैं जैसे देवता गण इनके मातहत हों.  
यह हराम खोर यजमान से सोमरस तैयार कराते हैं 
औए फिर देवताओं को आमंत्रित करते हैं कि आओ अश्वनी कुमारो ! 
सोमरस तैयार है, आकर पियो.
सोमरस शराब नहीं होती, क्योंकि यह पत्थर से कूट कर 
फिर कपडे से छान कर बनाई जाती है. 
यह गालिबन भांग होती है जिसके दीवाने शंकर जी हुवा करते थे. 
यह सोमरस देवताओं के नाम पर नशा खोरी का जश्न हुवा करता था.

ऋग वेद में नामित देव गण - - - 
इंद्र देवता, अग्नि देवता, वायु देवता, अश्वनी कुमार, मरुदगण, रितु देवता, ब्राह्मणस्पति देवता, वरुण देवता, ऋभुगण देवता एवं 
सविता , पूषा , उषा , सूर्य , सोम विश्वेदेव , रात्रि , भावयव्य , मित्र , विष्णु ऋभु , मारूत , ध्यावा पृथ्वी जल देवता गण आदि . इन दवताओं के कोई न कोई ईष्ट होता है, इनकी वल्दियत भी दर्जा है अगर आप इसे कल्पित मानते हैं. आदि.

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मैं इस यज्ञ में इंद्र और अग्नि को बुलाता हूँ एवं इन्हीं दोनों की स्तुति करने की इच्छा रखता हूँ. 
सोम पान करने के अत्यंत शौक़ीन वह दोनों सोमरस पिएँ . (1)
हे मनुष्यों ! इस यज्ञ में उन्हीं इंद्र और अग्नि की प्रशंशा करो एवं उन्हें अनेक प्रकार से सुशोभित करो. 
गायत्री छंद का सहारा लेकर उन्हीं दोनों की स्तुत्याँ गाओ. (2)
हम मित्र देव की प्रशंशा के लिए इंद्र और अग्नि को इस यज्ञ में बुला रहे हैं. (3)
हम शत्रु नाशन में क्रूर उन्हीं दोनों को इस सोमरस पीने के लिए बुला रहे हैं. 
इंद्र और अग्नि इस यज्ञ में आएँ. (4)
ये गुण संपन्न एवं सभा पलक ! इंद्र और अग्नि राक्षस जाति की क्रूरता को समाप्त कर दें. 
नर भक्षण करने वाले राक्षस इन दोनों की कृपा से संतान हीन हो जाए. (5)
हे इंद्र और अग्नि जो स्वर्ग लोक हमारे कर्मो को प्रकाशित करने वाला है, 
वहीँ तुम इस यज्ञ के निमित्त जाओ और हमें सुख प्रदान करो. (6)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
आप तलाश करें कि वेदों में कोई तत्व है क्या ?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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