Saturday 15 October 2016

Hindu Dharam Darshan 15

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है। 


नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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धर्मांध आस्थाएँ 

मोक्ष की तलाश में गए जन समूह को पहाड़ों की प्राकृति ने लील लिया आस्था कहती है उनको मोक्ष मिल गया, वह सीधे स्वर्ग वासी हो गए, सरकार और मीडिया इसे त्रासदी क्यों मानते है . 
समाज में भगवन का दोहरा चरित्र क्यों है .? 
यह मामला धर्म के धंधे बाजों की ठग विद्या है, इनकी दूकानों का पूरे भारत में एक जाल है. इन लोगों ने हमेशा जगह जगह पर अपने छोटे बड़े केंद्र स्थापित कर रखे हैं और भोली भाली नादान जनता इनका आसान शिकार हैं . 
सब कुछ गँवा चुकने के बाद भी जनता के मुंह से कल्पित भगवानों के विरोध में शब्द नहीं फूटते हैं. मठाधिकारी आड़म्बरों के उपाय सुझाते फिर रहे हैं और अपने अपने गद्दियों के लिए लड़ रहे होते हैं,जनता सब कुछ देख कर भी अंधी बनी हुई है . 
मुस्लिम वहदानियत और निरंकार के हवाई बुत को लब बयक कहने के लिए मक्का जाते हैं और शैतान के बुत को कन्कडियाँ मार कर वापस आते हैं. बरसों से यह समाज अरबियों की सहायता हज के नाम पर करता चला आ रहा है. अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार होता है . 
कब यह मानव जाति जागेगी ? 
कब तक समाज का सर्व नाश होता रहेगा . 
अलौकिक विशवास को आस्था का नाम दे दिया गया है और गैर फ़ितरी यकीन को अकीदत का मुकाम हासिल है. 
बनी नॊअ इन्सान के हक में दोनों बातें तब असली सूरत ले सकती हैं 
जब मुसलामानों को केदार नाथ और हिन्दुओं को हज यात्रा पर जबरन भेज जाए. 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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