मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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हे मनु वादियो !
तुमने पंडित जवाहर लाल नेहरु के सपनो के भारत के मुख पर कालिख मल कर, उनके सपनो को चकना चूर कर दिया है.
तुम ने नेहरु और कांग्रेस के साठ साल की मेहनत पर पानी फेर दिया है.
तुम्हे इंद्रा की कुछ माह की इमरजेंसी तो याद आती है,
अपनी 5000 साल के मार्शल ला नहीं याद आता ?
जो भारत के मूल निवासियों पर लगा रख्का था ?
इंदिरा की इमरजेंसी नेताओं पर लगी थी जिसका जनता से कोई लेना देना नहीं. जनता तो उन ढाई सालों को कभी नहीं भूल सकती,
जब लोग बाएँ तरफ चलना सीख गए थे,
नौकर शाही रिश्वत लेना भूल गई थी,
विदेशी सामाँ घूरो पर पड़े मिलने लगे थे,
अम्न का वह दौर कभी भुलाया नहीं जा सकता.
बहादर खातून ने किसी मुल्ला की तक़रीर के जवाब में एलान कर दिया था,
कि मुझे मुस्लिम वोटों की ज़रुरत नहीं.
कांग्रेस के साठ साला दौर ए हुकूमत में धीरे भारती अवाम धर्म और मज़हब से मुक्त होकर मानवता के जीने चढ़ रहे थे
कि तुमने उनके पांव के नीचे लगी सीढही को खींच लिया
और दोबारा धार्मिक जंतुओं को जीवित कर दिया.
हिदुत्व और इस्लाम के जरासीम दोबारा पनप गए हैं.
तुम वैदिक काल को एक बार फिर मानव समाज पर थोप रहे हो,
यह फ़ाल ए बद है, तुम्हारे लिए ही ज़हर साबित होगा,
तुम अपनी मौत को बुला रहे हो.
पिछले दो सालों में जब कि मनुवाद के देव बोतल से बहर निकना शुरू हुवा,
तुम देखो कि तुम कितनी तेज़ी से ज़वाल पर जा रहे हो,
इन दो सालों में खुद तुम्हारे आकडे बतला रहे हैं कि
कितने दलित और स्वर्ण इस्लाम की गोद में चले गए हैं.
इतनी तेज़ी तो कभी नहीं थी, हत्ता कि मुग़ल और कांग्रेस कालीन युग में भी नहीं.
अगर तुम अपनी नापाक हरकतों से बाज़ नहीं आए तो,
एक बार फिर मैं कहता हूँ कि इस्लाम की नामाकूलियत के मुकाबले में तुम्हारा मनुवाद सौ दर्जे नामाक़ूल है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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