Wednesday 9 November 2016

Hindu Dharam Darshan 22

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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धर्म मुक्त धरती 

अन्न और घी को आग में झोंक कर कायनात को शुद्ध करने वाले मूरख अपनी नीदें खोलें, उनको गलत फहमी है कि सदियों बाद उनका साम्राज्य स्थापित होने जा रहा है। बार बार उनके कान में फूंका जा रहा है कि शब्द हिन्दू, आक्रमण कारी विजेताओं, अरबियों और फारसियों की बख्शी हुई उपाधि है, जो उनकी भाषा में कुरूप काले चोर उचक्कों को कहा जाता है 
और तथा कथित हिन्दू परिषद फिर भी अपने इस अपमान पर गर्व करता है ?? 
कैसा आस्चर्य है कि शायद यही हिन्दू परिषद की नियति है। 
दक्षिण भारत में "द्रविण मुन्नैत्र" शुद्घ शब्द है जोकि हिन्दू का बदल हो सकता है , 
मगर यहाँ पर स्वर्ण फिर भी फंस जाते हैं कि वह आर्यन है और उनका मूल रूप ईरान है। इस ऐतिहासिक सत्य को कभी भी ढका नहीं जा सकता। 
दर अस्ल हिंदुत्व और इस्लाम एक ही सिक्के दो पहलू हैं। 
हिंदू अपने आधीनों को कभी भी मार नहीं डालता , 
उसके यहाँ तो जीव हत्या पाप है 
चाहे वह बीमारी फ़ैलाने वाले जीव जंतु ही क्यों न हों। 
आधीन उसके लिए"सवाब जरिया" (सदयों जारी रहने वाला पुण्य) होते हैं जिन्हें वह कभी मारता है, और न मोटा होने देता है। 
मनुवाद को ईमान दारी से पढ़िए। 
इस्लाम क़त्ल और गारतगरी पर ईमान रखता है , 
यहूदियत की तरह। 
हिन्दू परिषद वालो सावधान ! 
देश की अवाम जाग चुकी है , 
तुमको हमेशा की तरह एक बार भी बड़ी ज़िल्लत उठानी पड़ेगी।  
मानवता अपने शिखर विंदू को छूने वाली है। 
जिसके तुम दुश्मन हो. 
इस्लाम खुद अपने ताबूत में आखरी कील ठोंक रहा है। 
सऊदी की जाम गटरों से क़ुरआन की जिल्दें निकाली जा रही हैं।  
बहुत हो चुकी धर्म व् मज़हब की धांधली ,
अब मानव समाज को धर्म मुक्त धरती चाहिए 
जो फ़ितरी सदाक़तो और लौकिक सत्य पर आधारित हो। 
अल्लाह कुछ और नहीं यही कुदरत है , कहीं और नहीं , सब तुम्हारे सामने मौजूद है, अल्लाह के नाम से जितने नाम सजे हुए हैं सब तुम्हारा वह्म है और साज़िश्यों की तलाश है . 
कुदरत जितना तुम्हारे सामने मौजूद है उससे कहीं ज्यादा तुम्हारे नज़र और जेहन से परे है. उसे साइंस तलाश कर रही है. जितना तलाशा गया है वही सत्य है,   बाक़ी सब इंसानी कल्पनाएँ हैं .
आदनी आम तौर पर अपने पूज्य की दासता चाहता है, ढोंगी पूज्य पैदा करते रहते हैं और हम उनके जाल में फंसे रहते हैं. हमें दासता ही चाहिए तो अपनी ज़मीन की दासता करे, इसे सजाएं, संवारें. इसमें ही हमारे पीढ़ियों का भविष्य निहित है. मन की अशांति का सामना एक पेड़ की तरह करें जो झुलस झुलस कर धूप में खड़ा रहता है, वह मंदिर और मस्जिद नहीं ढूंढता, आपकी तरह ही एक दिन मर जाता है .
हमें खुदाई हकीकत को समझने में अब देर नहीं करनी चाहिए, वहमों के ख़ुदा इंसान को अब तक काफी बर्बाद कर चुके हैं अब और नहीं। 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. you have written very well , Hinduism very blind religion

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