Saturday 19 November 2016

Hindu Dharam Darshan 25

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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मनु वाद का ज़हर ---(1)

जंगल में आज़ाद हाथियों को राम करके पालतू बनाने में सब से ज्यादा खुद हाथियों का किरदार होता है. जानवर ही नहीं इंसान भी पालतू हाथी ही हुवा करते हैं. 
35 करोर भारतीयों को एक लाख अँगरेज़, इन्हीं शरीर और ज़मीर के ग़ुलाम हिन्दुस्तानियों के बदौलत हमें गुलाम बना कर वर्षों आका बने रहे. 
यह शरीर और ज़मीर के ग़ुलाम इतिहास के पन्नो में बहुतेरे देखने को मिल जाएँगे. औरंगजेब के सिपाह सालार हिन्दू हुवा करते थे तो शिवाजी के मुस्लिम.
ज़माना लद गया और यह गुलामी इतिहास के पन्नो में दफ्न हुई, मगर नहीं, 
दुन्या की सब से बड़ी दास प्रथा मनुवाद आज तक भारत भूमि पर अमर बेलि की तरह फल फूल रही है. इसी से मुतास्सिर होकर इकबाल ने कहा था, 
क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, 
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहाँ हमारा. 
मनुवाद की बुन्याद झूट के ठोस बुन्यदों पर राखी हुई है. 
जिस में पुनर जन्म का चक्र ऐसा चक्र है कि इसको एक बार चला दिया जाए तो यह चलता ही रहता है, बेचारा दास अपनी ज़िन्दगी को पूर्व जन्म के पाप का परिणाम समझने लगता है, मनु वंश इन पापियों पर भरपूर नफरत बरसता है और तमाम सुख-सुविधओं के साथ तमाशा देखता रहता है. 
मनुवाद की तस्वीर भारत में आज भी खुली आँखों से देखी जा सकती है. 
आर्यन भारत में पश्चिम की ओर से आते और भारत के मूल निवासियों को अपना गुलाम बनाते, जो मूल निवासी भागने में कामयाब हो जाते वह भारत के दक्छिन में पनाह पाते. आर्यन हमला तो लगातार बना रहता, 
मगर उनके यलगार मुख्यता चार बार हुए हैं जिसके रद-ए-अमल में हर बार मूल निवासी पच्छिम से दच्छिन की तरफ पनाह पाकर बसते गए. 
आज द्रविड़ मुंनैत्र कड़गम जैसी मूल निवासी मानव श्रृंखला इसके सुबूत हैं. 
कुछ आर्यन दख्खन में भी  पहुचे मगर वहां मूल निवासियों के जमावड़े के आगे वह भीगी बिल्ली बने हुए है,
उत्तर भारत में आर्यन का पूरा पूरा साम्राज कायम हुवा जहाँ वर्ण व्योवस्था की बुन्याद जो पड़ी तो आज सत्तर साल  देश आज़ाद होने के बाद भी कायम है. 

मनु वाद का ज़हर ---(2)
हालांकि वैदिक कालीन 5000 वर्षों में आखिर एक हज़ार वर्षों में, 
इस्लाम की आमद से और फिर ईसाई मिशनरीज़ की कोशिशों के बदौलत, 
दलित, दमित मजलूमों को मनुवाद से मुक्त होने का मौक़ा मिला, 
इनकी बरकतों से भारत की आधी आबादी मनुवाद के चंगुल से मुक्त हुई. 
भारत आज़ाद हुवा डा. भीमराव आंबेडकर के विचार धारा के साथ, 
मनुवाद के हाथों से तोते उड़ गए. 
नेहरु की निगरानी में नए भारत का उदय हुवा, 
साठ सालों में भारत का भाग्य बदला, 
मेरा बाल काल था, मैं इस बात गवाह हूँ कि भारत के इस सपूत नेहरु ने मानव जीवन को नया आयाम दिया, मेरी बस्ती जहाँ दो चार घर पक्के हुवा करते थे, 
वहां आज दो चार घर ही कच्चे बाकी बचे हुए है.
पूरा भारत बदहाली का शिकार था, आज खुश हाली से मालामाल हो रहा है. 
मनुवाद जिस पर पाबंदी जैसी अवस्था लगा दी गई थी, 70 साल बाद फिर जीवित और जवान हो चुका है. 
फिर खुलेआम शूद्रों पर मज़ालिम की शुरुआत हो गई है, 
खास कर उस आबादी पर जो शूद्र से मुसलमान या ईसाई हो गए थे, 
उन्हें मनुवाद घर वापसी के लिए मजबूर कर रहा है.
मनुवाद ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना करके नागपुर से पूरे देश को कंट्रोल करता है, 
हमेशा की तरह यह किंग मेकर बना हुवा है, 
और किंग से अपने पैर पुजवाता है. 
अतीत में इसके पास हनुमान की निगरानी में वानर सेना (शूद्रों की)  हुवा करती थी, 
आज भी RRS के स्वयं सेवक यानी सिपाही वही दैत्य हैं. 
जंगल में मुक्त हाथियों को पालतू दास बनाने में इन्हीं पालतू हाथियों को RRS इस्तेमाल कर रहा है.

इतिहास का अपना चेहरा  होता है, देखते जाइए कि इतिहास क्या क्या रूप दिखलाए. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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