Tuesday 4 April 2017

Dharm Darshan 54



 इंसान को मुकम्मल आज़ादी चाहिए 

वयस्क होने के बाद  व्यक्ति को पूरी पूरी आज़ादी चाहिए. 
कुछ लोग वक़्त से पहले ही बालिग़ हो जाते हैं और कुछ को समय ज्यादा लग जाता है. सिन ए बलूगत (वयस्कावस्था) से पहले बच्चों को मानव मूल्यों के लिए टोकना चाहिए न कि अपनी धार्मिकता और मानसिकता को इन पर स्थापित करना चाहिए. मसलन बच्चों को हिंसा से रोकें मगर अहिंसा के पाठ न पढाएँ. 
बड़े बड़े लेक्चर बच्चों को जबरन कंडीशंड कर देते हैं और उनकी अपनी सलाहियत और सोच पर अंकुश लगा देते हैं. 
लिंग भेद के लिए बच्चों को कम से कम टोकना चाहिए.
इससे बच्चों में हानिकारक आकर्षण आ जाता है 
जो कि मानव समाज में बहुधा पाया जाता है, 
पशु इससे बे खबर होते हैं. 
हमारी सभ्य दुन्या ने जिन्स (लिंगीय) के संबंध को बे मज़ा और अप्राकृतिक कर दिया है. लिंगीय सरलता को जटिल कर दिया है. 
इस में मान मर्यादा और अस्मत की ज़हरीली छोंक का समावेश कर दिया है. 
यहाँ तक कि इसे पाप और दागदार क़रार दे  दिया है. 
भाई बहन ही समाज इसे सात पुश्तों के गोत्र तक ले जाता है. 
इस लिंगीय सरलता को इतना कठिन बना दिया गया है कि यह मसला घरों से लेकर समाज तक में ब्योवस्थित हो जाते हैं. 
बड़ी बड़ी जंगें इस लिंगीय कर्म के कारण हुई हैं. 
एक बार दुन्या इस समस्या को आसान करके देखे तो लगेगा यह कोई समस्या ही नहीं है. बल्कि दोनों पक्ष लिंगीय कामना को समर्थन और सम्मान देना चाहिए. 
हाँ मगर बिल जब्र की सूरत में यह जुर्म ज़रूर है.
लिंगीय कामना अगर दोनों तरफ शबाब पर हो तब उनको उँगली उठा कर संकेत देना चाहिए कि अब हम आमादा हैं. 
फिर किसी की मजाल नहीं होना चाहिए कि इनके बीच में आए.
इसका सम्मान होना चाहिए.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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