Monday 3 April 2017

Soorah Mursalaat 77

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मुर्सेलात 77 - पारा २९   

कुदरत को अगर खुदा का नाम दिया जाए तो इसका भी कोई जिस्म होगा जैसे कि इंसान का एक जिस्म है. 
कुरआन और तौरेत की कई आयतों के मुताबिक खुद बखुद इलाही मुजस्सम साबित होता है. 
इंसान के जिस्म में एक दिमाग है .
 दिमाग रखने वाला खुदा झूठा साबित हो चूका  है. 
कुदरत (बनाम खुदा) के पास कोई दिमाग नहीं है बल्कि एक बहाव है, इसके अटल उसूलों के साथ. इसके बहाव से मखलूक को कभी सुख होता है कभी दुःख. 
ज़रुरत है कुदरत के जिस्म की बनावट को समझने की जैसे कि मेडिकल साइंस ने इंसानी जिस्म को समझा है और लगातार समझने की कोशिश कर रहा है. इनके ही कारनामों से इंसान कुदरत के सैकड़ों कह्र से नजात पा चुका है. मलेरिया, ताऊन, चेचक जैसी कई बीमारियों से और बाढ़, अकाल जैसी आपदाओं से नजात पा रहा है. 
जंगलों और गुफाओं की रिहाइश गाह आज हमें पुख्ता मकानों तक लेकर आ गाई हैं. हमें ज़रुरत है कुदरत बनाम खुदा के जिस्मानी बहाव को समझने की, नाकि उसकी इबादत करने की. इस रस्ते पर हमारे जदीद पैगम्बर साइंस दान गामज़न हैं. यही पैगम्बरान वक़्त एक दिन इस धरती को जन्नत बना देंगे.
इनकी राहों में दीन धरम के ठेकेदार रोड़े बिखेरे हुए हैं. जगे हुए इंसान ही इन मज़हब फरोशों को सुला सकते है.

जागो, आँखें खोलो, अल्लाह के फ़रमान पर गौर करो और मोमिन के मशविरे पर, फैसला करो कि कौन तुमको गुमराह कर रहा है - - -

"क़सम है उन हवाओं की जो नफ़ा पहुँचाने के लिए भेजी जाती हैं"
फिर उन हवाओं की जो तुन्दी से चलती हैं,
और उन हवाओं की जो बादलों को फैलाती हैं,
फिर उन हवाओं की जो बादलों को बिखेरती हैं,
फिर उन हवाओं की जो अल्लाह की याद उठाती हैं,
कि जिस चीज़ का वादा किया गया है वह होने वाली है."

अल्लाह मुसलामानों के साथ एक वादा किए हुए है, 
वादा हमेशा वरदान का होता है और कुछ देने के लिए मुसबत पहलू रखता है, मगर मुसलमान अपने अल्लाह का ऐसा वादा लिए हुए हैं जो नफ़ी पहलू रखता है. 
इसके साथ अल्लाह का क़यामत का वादा है. 
इसके लिए अल्लाह हवाओं की कसमें खाता है वह भी कैसी कैसी हवाओं की. मुसलमान इस हवाई अल्लाह के हवाई वादों से यकलख्त छुटकारा पा सकता है, बस कि वह तर्क इस्लाम कर दे. उसे सच्चा मोमिन बन्ने की सलाह है.
तुम्हारे सीने में आबाद इन किताबों को,
बस एक मुनकिर ओ इनकार की ज़रुरत है.

"सो जब सितारे बेनूर हो जाएँगे,
जब आसमान फट जाएगा,
और जब पहाड़ उड़ते फिरेंगे,
जब सब पैगम्बर वक़्त मुक़र्रर पर जमा किए जाएँगे,
किस दिन के वास्ते पैगम्बरों का मुआमला मुल्तवी रखा जाएगा?
फैसले के दिन के लिए,
और आपको मालूम है कि ये फैसले का दिन कैसा कुछ है?
उस रोज़ झुटलाने वाले की बड़ी खराबी होगी" .

मुसलामानों!
तुम्हारे दिमागों पर मुहम्मद भूत सवार है. अगर वह आज होते तो यकीनन किसी पागल खाने में होते. उनकी जगह पर एक बड़ी इंसानी आबादी पागल खाने में है .
इस्लाम तुम्हारे वजूद का घेरा बंदी करता है जोकि बाहर की आज़ाद दुन्या से तुमको महरूम  रखता है. ख्वाह मख्वाह तुम ससी और सहमी हुई ज़िदगी जी रहे हो. इस क़ैद खाने से बाहर निकलो.

"क्या हम अगले लोगों को हलाक नहीं कर चुके,
फिर पिछले को भी इन्हीं के साथ साथ कर देंगे,
हम मुजरिमों के साथ ऐसा ही कुछ किया करते हैं,
इस रोज़ झुटलाने वालों की बड़ी खराबी होगी,"

जो पैदा होता है वह मरता है, 
उसे न कोई अल्लाह पैदा करता है, न मारता है. 
कानून ए कुदरत को मुहम्मद अपना कानून बनाए हुए है, इन्तेहाई बेहूदा तरीके से.

"क्या हम ने तुम को एक बेक़द्र पानी से नहीं बनाया?
फिर हमने उसको एक वक़्त मुक़रार तक महफूज़ जगह में रख्खा,
ग़रज़ हमने एक अंदाज़ा ठहराया,
सो हम कैसे अंदाज़ा ठहराने वाले हैं,
उस रोज़ झुटलाने वालों की बड़ी खराबी होगी".

ये मुहम्मद का अंदाज़ा है जो उनकी जेहालत में शराबोर है. मुसलमानों इस गन्दगी से बहार निकलो.

"क्या हमने ज़मीन को जिंदा या मुर्दों को समेटने वाली नहीं बनाया,
और हम ने इसमें ऊंचे ऊंचे पहाड़ बनाए,
और हम ने तुमको मीठा पानी पिलाया,
और उस रोज़ झुलाने वाले की बड़ी खराबी होगी".

इन सवाबी आयातों को अपनी ज़बान में बार बार दोहराव  और देखो कि तुम खुद को पागल क़रार देने लगोगे मगर ये ज़बाने गैर में है, इसलिए तुम इसकी गन्दगी को उम्र भर दोहराते हो.

"एक साएबान की तरफ चलो,
जिसकी तीन शाखें हैं,
जिसमें न साया है न गर्मी से बचाता है,
वह अंगारे बरसाएगा जैसे बड़े बड़े महल,
जैसे काले काले ऊँट,
और उस रोज़ झुटलाने वाले की बड़ी खराबी होगी."
सूरह मुर्सेलात ७७ - पारा २९ आयत (१-३४)
(मुसलसल  "और उस रोज़ झुटलाने वाले की बड़ी खराबी होगी." 
तवील सूरह)


पागल की बड़ बड़ के सिवा और कुछ भी नहीं ये कुरआन. इसकी भरपूर मज़म्मत करने वालों की क़तार में खड़े हो जाने की ज़रुरत है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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