पूजा
किसी की नक्ल में पूजा के अंकुर जब मन में फूटते हैं तो यह पाप की शुरुआत सहायक होती है. अकसर पूजा अर्चना और इबादत बच्चे को विरासत में मिलती है.
यह सूरदास की तरह अंधी होती है.
कानो से सुन सुन कर परवान चढ़ती है, फिर प्रतिस्परधा में आकर नामवर हो जाती है. कृष्ण प्रेम कथा सुन सुन कर सुनने वाला इसका शायर बन कर सूरदास और मीरा बन जाता है और कभी कभी रसखान.
इन दीवानों ने कितना देखा और समझा कृष्ण को ? बस सुना भर है.
पूजा आस्था से शुरू होती है और पूजा से ही पाप का जन्म होता है.
हमारे गाँव से बच्चे कस्बे के स्कूल आते थे,
रास्ते में सरपत के पेड़ हुवा करते थे, जिनकी लंबी लंबी पत्तियां होती है.
बच्चे पत्तियों को मोड़ कर फंदा बना देते कि
'अगर आज स्कूल में मार न खाया, या परीक्षा का परचा हल न हुवा तो तुमको फंदा में पड़े रहना और यदि हल कर लिया तो मुक्त कर देगे वरना नहीं.
इस बचकानी आस्था से पाप का आरम्भ होता है कि पेड़ पौदों के साथ ज़ुल्म होता है.
इसी तरह आस्थावान होकर पूज्य से कोई मानता का मन बनाया
और ख्वाहिश पूरी न हुई ,
दो चार बार ऐसा हुवा तो आस्था अनास्था में बदल जाती है,
ग़लत काम करने का हौसला बढ़ जाता है.
चोरी और बे ईमानी की शुरुआत होती है
जो बड़ी होती होती रिश्वत में बदल जाति है.
इसे आस्था की जगह मारल साइंस से बच्चे का दिमाग़ स्थापित किया जा सकता है.आस्था रेत कीदीवार है जो अन्त्ततः ढय जाती है.
भारतीय सभ्यता इसी रेत की दीवार पर कायम है जो अन्दर से खोखली है.
इसी वजह से भारत दुन्या के आखिरी पायदानों पर मुसलसल नज़र आता है.
अगर आस्था है कि गंगा परवाह करने से मृतक मुक्त होगा .
इसके आगे लाख गंगा की सफाई होती रहे.
जहाँ बार बार आस्थाएँ नाकाम होती हैं वहां पुख्ता अनास्था का जन्म होता है. फिर धड़ल्ले से हर ग़लत काम होते रहते हैं.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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