Saturday 27 May 2017

Hindu Dharm Darshan 68




मोदी +योगी =मनुवाद 

मूल भारतीयों का मानव समूह पांच हज़ार साल  तक शूद्र अवस्था में रहने केबाद 
इनमे डा. भीम राव अम्बेडकर का उदय हुवा. 
हिन्दुतान में जमहूरियत आई, 
एक मौक़ा था कि मनुवाद द्वारा नामित शूद्र उठते मगर वह दलित बन कर ही रह गए. शूद्र हो या हरिजन या फिर दलित, इन बदलाओं से क्या हासिल हुवा? 
उन्हें डांगर निक्याने और मल ढोने से नजात कहाँ मिली ? 
कुछ शूद्र महा शूद्र ज़रूर हो गए हैं, 
जैसे राम बिलास पासबान, उदित नारायण और माया वती नमूने के तौर पर देखे जा सकते हैं. 
यह महान शूद्र मनुवाद के शरण में आकर या शूद्रों का ही दोहन करके बरहमन नुमा शूद्र ज़रूर बन गए हैं. 
कितनी घिनावनी दलील है पासबान की कि कहते हैं, 
क्या नाम कि टूटी चप्पल और फटे पायजामे ही क्या दलितों की पहचान है ? 
बहन जी अपने करोड़ों की सम्पति को 
उन टूटी चप्पल और फटे पायजामे के गरीबों से ही अर्जित किया है. 
इनको शर्म नहीं आती कि एक बनिया इनसे बेहतर था जिसने बैरिस्टर के सूट बूट को  त्याग कर महात्मा बन गया था, 
सोने की चम्मच मुंह में लेकर पैदा होने वाला बरहमन नेहरू, 
इन के लिए सब कुछ त्याग दिया था और बार बार जेल जाकर अपनी नस्लों के लिए सिर्फ अपने किताबों की रायल्टी छोड़ी.
पांच हज़ार तक आर्यन लुटेरे मनुवादियों ने भारत के मूल निवासी को शूद्र बना कर रख्खा और इनको चीन की दीवार की तरह इतना कूटा और धुरमुटयाया कि बेचारे शूद्र इन मनु वादियों के बनाए हुए फ्रेम में खुद बखुद फिट हो होकर चरण दास बन गए. खुद को जनम जात पापी समझने लग गए हैं.
 इनका ज़मीर, इनकी ग़ैरत और इनका आत्म सम्मान सब मर चुके है. यह मनुवादियों के कमांडरों के स्वयं सेवक बन गए है जैसे कि रामायण राम की सेना में हनुमान नुमा वानर सेना का वर्णन मिलता है. 
भारत में बौद्ध धर्म का उदय मनु वादियों के शाशन काल में ही हुवा था. 
गौतम के असर को अशोक ने कुबूल किया, बौध धर्म की कामयाबी सर चढ़ कर बोलने लगी. मनुवादियों को बड़ा खतरा दिखने लगा. 
शाम दाम दंड भेद का फार्मूला चला कर इन्हों ने बौद्धों का नर संहार किया और कुछ दिनों बाद ही इसे देश निकाला मिल गया. 
भारत निष्कासित होकर कर बौध धर्म मानव मूल्यों को लेकर पूरे एशिया का बड़ा धर्म बन गया. 
मनुवादियों ने बौध धर्म के पैग़म्बर को अपना पैग़म्बर बना लिया और उसको  विष्णु का अवतार कहा गरज़ कि विष्णु की दोहरी पूजा होने लगी. 
आज भी आज़ाद भारत में कुछ ऐसा ही हो रहा है, 
अम्बेडकर को मनुवाद सर आँखों पर रख रहे हैं, आशा है कि वह उन्हें ब्रह्मा का अव तार घोषित कर देंगे और शूद्रों की चमड़ी उधड़ते रहेगे. 
संवेदना हीन मनुवाद कहता है, पेट में दाना सूद उताना, 
अतः शूद्र को कभी भर पेट खाना न दिया जाए. 
यहीं तक नहीं, 
हमारे बुज़ुर्ग कहते कि सड़ गल जाए सूद न खाए, सूद का खावा कुंवारत जाए. 
यहाँ पर मैं जोकि इस्लाम दुश्मन होते हुए भी इस्लाम का शुक्र गुज़ार हूँ कि इसकी शरण में आकर लगभग चालीस करोड़ मानव समूह मनुवाद के चंगुल से मुक्त है. केवल एक व्यक्ति जिसे इतिहास में काला पहाड़ का नाम दिया गया है, शूद्रता को छोड़ कर इस्लाम की पनाह ली और दोनों बंगाल +आसाम बिहार की आधी आबादी मनुवाद मुक्त है, यही नहीं एक देश बंगला देश की मालिक भी है. काला पहाड़ का नाम मनुवादियों ने इतिहास के सफहों से उड़ा दिया. इसकी आंधी ऐसी चली कि डर के मारे बरहमनों ने भी इस्लाम को स्वीकार कर लिया था. शेख मुजीबुर रहमान इन्ही में आते हैं.
मनुवादियों ने अपनी जड़ें बहुत गहराई तक फैला रखी हैं. भारत के तमाम मंदिर  इनका रिज़र्व बाँक हैं जहाँ इतनी दौलत है कि वह एक बार भारत सरकार को भी खीद सकते हैं. 
अहिंसा का प्रयोग दुन्या के तमाम मुल्कों के सिवा सिर्फ भारत में हुवा है जिश्के नतीजे में केवल मनुवा ही आज़ाद हुवा , इसे नए सिरे से आज़ादी मिली है. केंद्र में मोदियों और राज्यों में योगियों का ग़लबाकायम हो चूका है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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