बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
मेरे एक मित्र शमीम शेख लिखते हैं - - -
"आप ईमानदारी से सच लिखते हैं, ऐसा सच लिखने की हिम्मत करोड़ों में किसी किसी को हासिल है, काश मुस्लिम भी सच को मानते, और अपना दिमाग ईमानदारी से खर्च करते।"
मगर मुझे आश्चर्य हो रहा है कि
सच बोलना दुन्या का सब से आसान काम है,
झूट बोलने के लिए सोचना पड़ता है,
नापना तौलना पड़ता है.
सच बोलने में एक सेकेण्ड लगता है.
मेरा दावा है कि अगर दुन्या सच बोलने पर राज़ी हो जाए
और सच को समझने पर तय्यार रहे तो
दुन्या में कोई भी मसअला बाक़ी न बचे .
एक अग्रेज़ी दानिश्वर को मैंने कालेज कोर्स में पढ़ा था कि
एक माँ को अपने बेटे से इश्क़ हो गया औए एक बेटी को अपने बाप से .
इन माँ और बेटियों की सदाक़त की पैरवी में
दानिश्वर ने ला जवाब कर दिया था कि उनकी सदाक़त में कोई झूट नहीं था.
कुछ चूतिए प्रति क्रिया में मेरी माँ बहन करेगे .
मगर अब नहीं.
जो हमें होना चाहिए, वह हूँ.
मेरा कोई धर्म नहीं, कोई मज़हब नहीं, कोई देश नहीं.
मैं भारत माता का नहीं धरती माता का बेटा हूँ और अपनी माँ की औलाद हूँ.
भारत हो या ईरान, सब अंतर राष्ट्रीय घेरा बंदीयां हैं,
इन अंतर राष्ट्रीय सीमा बंदीयों के खानों में क़ैद,
मैं अवाम हूँ.
हुक्मरानों के एलान में क़ैद,
हम देश प्रेमी है, या देश द्रोही हैं ?
या उनके मुताबिक अपराधी?
जो हमें होना चाहिए, मैं वह हूँ.??
इन सीमा बंदियों में रहने के लिए हम महज़ किराए दार मात्र हैं.
इसी सीमा में हम और हमारा कुटुम्भ और क़बीला रहता है.
इन्हीं हुक्मरानों ने हमारी सुरक्षा का वादा किया है, दूसरे हुक्मरानों से.??
मैं, अपने हम को लेकर, इस धरती के टुकड़े पर रहने का वादा कर लिया है.
इस देश के लिए हमें Tex भरने में ईमान दार होना चाहिए,
किसी देश की यह पहली शर्त है.
और ज़रुरत पड़े तो इसके लिए हमें जान माल समर्पित कर देना चाहिए.
नक़ली देश प्रेम के नाम का नारा लगा कर लुटेरे अपनी तिजरियाँ भरते है
और किसी मानव समूह को तबाह करने की साज़िश में क़हक़हे लगाते हैं.
देश प्रेम नहीं कर्तव्य पालन की चाहत हमारे दिलों में होनी चाहिए.
और धरती प्रेम की आरज़ू.
तभी हम एक ईमान दार और नेक इंसान बन सकते हैं.
मेरी दिली चाहत है कि मैं धरती माता के उस हिस्से का वासी बन जाऊं
जहाँ मानव मूल्य परवान चढ़ रहे हों.
और खुद को उस देश को अपने जान माल के साथ समर्पित करदूं.
मगर भौगोलिकता हमारी कमजोरी है,
भारत का बंदा नार्वे में तो सहज नहीं हो सकता.
भौगोलिक स्तर पर वह देश मेरा प्रदेश है जिसे कुदरत ने भरपूर नवाज़ा है.
और पाखंडी धूर्तों ने उसे लूटा है.
मेरी दिली तमन्ना है कि धरती का यह भू भाग नार्वे और स्वीडन को पछाड़ कर
पहले नंबर पर पहुंचे.
इसके लिए मैं अपने शारीर का हर एक अंग समर्पित कर चुका हूँ ,
जैसे कि जानवर समर्पित करते हैं.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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