Monday 22 May 2017

Soorah Lail 92

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह लैल ९२  - पारा ३० 
(वललैलेइज़ा यगषा) 


ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद मुजाहिदे इस्लाम दुन्या भर में बिरझाए हुए हैं. अब तो वक़्त आ गया है कि भारत में ये अपनी दीवानगी का मुजाहिरा नहीं कर पा रहे हैं ,क्यूंकि पिछले दिनों हुकूमत  ए  हिंद ने सख्त होकर इनको सबक दे दिया था कि अपने मज़हबी जूनून को अपने घर तक सीमित रखो. अब  इनकी इतनी भी ताक़त नहीं बची कि  दूसरे किसी गैर मुस्लिम मुल्क में अपनी दीवानगी का इज़हार करें, ले दे के ये दीवाने मुस्लिम मुमालिक में मुसलामानों को अपनी बुज़दिली, खुद कुश हमले को अंजाम देकर कर रहे हैं. खास कर पकिस्तान में आए दिन खूँ रेज़ी हो रही है.
इस्लाम की तहरीक जेहाद के ज़रीए कमाई का रास्ता बनाओ, अभी तक मुसलमान के मुँह लगा हुवा है. इसके सूत्रधार हैं ओलिमा, यही ज़ात ए नापाक हमेशा आम इंसानों को बहकाती रही है, जो इनके झांसे में आकर इस्लाम क़ुबूल कर लिया करते थे. इस्लाम एक तरीका है, एक फार्मूला है ब्लेक मेलिंग का कि लोगों को मुसलमान बना कर अपने लिए साधन बनाओ, भरण पोषण का. ये इंसान को जेहादी बनाता है, जेहाद का मकसद है लूट मार, वह चाहे गैर मुस्लिम का हो चाहे मुसलामानों का. इतिसस गवाह हैं कि मुसलामानों ने जितना खुद मुसलामानों का खून किया है, उसका सवां हिस्सा भी काफिरों और मुरिकों का नहीं किया. आज पकिस्तान इस्लामी जेहादियों का क़त्ल गाह बना हुवा है. इसको इसकी सज़ा मिलनी भी चाहिए कि इस्लाम के नाम पर किसी देश का बटवारा किया था. इसके नज़रिए को मानने वाले तर्क वतन को मज़हब की बुनियाद पर तरजीह दिया था. इसके बानी मुहम्मद अली जिना को अपने कौम को इस्लामी क़त्ल गाह के हवाले कर देने का अज़ाब, उनकी रूह को इस्लामी जहन्नम में पड़ा होना चाहिए मगर काश कि इस्लामी जन्नत या जहन्नम में कुछ सच्चाई होती.
हिन्दुतान अपनी तहजीब की बुन्यादों पर इर्तेकाई मंजिलों पर गामज़न है. मुसलामानों को चाहिए कि अपनों आँखें खोलें. 
जाहिले मुतलक मुहम्मदी अल्लाह क्या कहता है देखो - - -

"क़सम है रात की जब वह छुपाले,
दिन की जब वह रौशन हो जाए,
और उसकी जिस ने नर और मादा पैदा किया,
कि बेशक तुम्हारी कोशिशें मुख्तलिफ हैं,.
सो जिसने दिया और डरा,
और अच्छी बात को सच्चा समझा,
तो हम उसको राहत की चीज़ के लिए सामान देंगे,
और जिसने बोख्ल किया और बजाए अल्लाह के डरने के, इससे बे परवाई अख्तियार की और अच्छी बात को झुटलाया,
तो हम इसे तकलीफ़ की चीज़ के लिए सामान देंगे."
सूरह लैल ९२  - पारा ३० आयत (१-१०)

"और इसका माल इसके कुछ काम न आएगा,
जब वह बर्बाद होने लगेगा,
वाकई हमारे जिम्मे राह को बतला देना है,
औए हमारे ही कब्जे में है,
आखिरत और दुन्या, तो तुमको एक भड़कती हुई आग से डरा चुका हूँ,
इसमें वही बदबख्त दाखिल होगा जिसने झुटलाया और रूगरदानी की,
और इससे ऐसा शख्स दूर रखा जाएगा जो बड़ा परहेज़गार है,
जो अपना माल इस लिए देता है कि पाक हो जाए,
और बजुज़ अपने परवर दिगार की रज़ा जोई के, इसके ज़िम्मे किसी का एहसान न था कि इसका बदला उतारना हो .
और वह शख्स अनक़रीब खुश हो जाएगा."
सूरह लैल ९२  - पारा ३० आयत(११-२१)

नमाजियों!
हिम्मत करके सच्चाई का सामना करो. तुमको तुम्हारे अल्लाह का रसूल वर्गाला रहा है. अल्लाह का मुखौटा पहने हुए, वह तुम्हें धमका रहा है कि उसको माल दो. वह ईमान लाए हुए मुसलामानों से, उनकी हैसियत के मुताबिक टेक्स वसूल किया करता था. इस बात की गवाही ये क़ुरआनी आयतें हैं. ये सूरह मक्का में गढ़ी गई हैं जब कि वह एक्तेदार पर नहीं था. मदीने में मका मिलते ही भूख खुल गई थी.
मुहम्मद ने कोई समाजी, फलाही,खैराती या तालीमी इदारा कायम नहीं कर रखा था कि वसूली हुई रक़म उसमे जा सके. मुहम्मद के चन्द बुरे दिनों का ही लेकर आलिमों ने इनकी ज़िन्दगी का नक्शा खींचा है और उसी का ढिंढोरा पीटा है. मुहम्मद के तमाम ऐब और खामियों की इन ज़मीर फरोशों ने पर्दा पोशी की है. बनी नुज़ैर की लूटी हुई तमाम दौलत को मुहम्मद ने हड़प के अपने नौ बीवियों और उनके घरों के लिए वक्फ कर लिया था. और उनके बागों और खेतियों की मालगुजारी उनके हक में कर दिया था. जंग में शरीक होने वाले अंसारी हाथ मल कर राह गए थे. हर जंगी लूट मेल गनीमत में २०% मुहम्मद का उवा करता था.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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