Wednesday 2 August 2017

Hindu Dharm Darshan 84



गीता और क़ुरआन

क़ुरआन मैं ५०सालों से पढ़ रहा हूँ, गीता बहुत पहले एक बार पढ़ी थी, 
मगर हिन्दू धर्म शाश्त्रों के विरोध में ज़बान नहीं खोली कि 
यह हिन्दू मुस्लिम मुआमला हो जाएगा.
मैं डरता था और सोचता था कि सिर्फ मुसलामानों को जगाया जाए, 
हिन्दुओं के तो बहुतेरे समाज सुधारक हैं. 
मगर एक दिन अन्दर से आवाज़ आई कि मैं तो डरपोक और पक्षपाती हूँ.
आज का पाठक भी बहुत समझदार हो गया है , वह विषय में तथ्य को तलाशता है हिन्दू मुस्लिम संकीर्णता को नहीं. 
जो बुनयादी तौर पर कपटी हैं उनकी बात अलग है.
बहुत पहले मनुवाद और गीता पढ़ी थी, दोबारा फिर पढ़ रह हूँ. 
अब इनको समय के हिसाब से उदर पोषक लेखकों ने छल कपट के आभूषण से  और सजा दिया है. 
क़ुरआन में ओलिमा ने अपनी बात डालने के लिए 
"अल्लाह के कहने का मतलब यह है - - - " का सहारा लिया है . 
अल्लाह कहता है क़ुरआन सुन कर जिन्नों ने कहा इसमें तो निरा जादू है, मुतरज्जिम कहता है लाहौलविलाकूवत (धिककार) जादू तो झूट होता है , 
इससे तो क़ुरआन झूट साबित होता है, 
" अल्लाह के हहने का मतलब यह है  - - - " 
फिर वह क़ुरआनी आयतों में मनमानी भरता है.
गीता में में इसी " अल्लाह के कहने का मतलब यह है  - - - " 
को तात्पर्य का सहारा लिया गया है. 
श्लोक के बाद "तात्पर्य" लगा कर अपनी गन्दी मानसिकता उंडेलते हैं.
गोया यह किराय के टट्टू भगवान् के गुरु बन जाते हैं. 
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आधार ;-
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद A C भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद संसथापकाचारी अंतर राष्ट्रीय कृष्णा भावनामृत संघ 
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गीता और क़ुरआन
भगवान कृष्ण कहते  हैं ---
 क्षत्रिय होने के नाते अपने अशिष्ट धर्म का विचार करते हुए 
तुम्हें जानना चाहिए कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़ कर तुमहारे लिए अन्य को कार्य नहीं है 
अतः तुम्हें संकोच करने की कोई आवश्यता नहीं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय २ श्लोक  31
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद A C भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद संसथापकाचारी अंतर राष्ट्रीय कृष्णा भावनामृत संघ 
और 
कुरआन कहता है ---
''ऐ ईमान वालो! जब तुम काफिरों के मुकाबिले में रू बरू हो जाओ तो इन को पीठ मत दिखलाना और जो शख्स इस वक़्त पीठ दिखलाएगा, अल्लाह के गज़ब में आ जाएगा और इसका ठिकाना दोज़ख होगा और वह बुरी जगह है. सो तुम ने इन को क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ने इनको क़त्ल किया और ताकि मुसलामानों को अपनी तरफ से उनकी मेहनत का खूब एवज़ दे. अल्लाह तअला खूब सुनने वाले हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१५-१६-१७)

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. Dharm in Gita means for morality , ethics, rightful conduct, for truth, for good human values like compassion etc.


    Gita was said 5156 yrs before, there was only one religion Sanatan Dharma (Hinduism).

    So there is no question of any religious war against any other religion.

    In Mahabharat Kaurav had taken rightful Kingdom through deceit from Pandava & their chief was very evil man.

    So Lord Krishna telling Arjuna being a military man that it is his duty to fight evil, when they are forcing war.

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