Friday 11 August 2017

Soorah Falak113+ Soorah Naas 114-Last


मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह फ़लक़ - ११३ - पारा - ३० 
(कुल आऊजो बेरब्बिल फलके) 
 
आज मैं खुश हूँ कि क़ुरआन की आख़िरी सूरह पर पहुँच चुका हूँ. 
सूरह अव्वल यानी सूरह फातेहा में मैंने आपको बतलाया था कि 
मुहम्मद ने खुद अपने कलाम को अल्लाह बन कर फ़रमाने की नाकाम कोशिश की, जिसे ओलिमा ने क़लम का ज़ोर दिखला कर कहा कि अल्लाह कभी अपने मुँह से बोलता है, 
कभी मुहम्मद के मुँह से, 
तो कभी बन्दे के मुँह से बोलता है. 
बोलते बोलते देखिए कि आखिर में अल्लाह की बोलती बंद हो गई, 
उसने सच बोलकर अपनी खुदाई के खात्मे का एलान कर दिया है. 

क़ुरआन की ११४ सूरतों का सिलसिला बेतुका सा है, 
कोई सूरह इस्लाम के वक़्त ए इब्तेदा की है तो 
अगली सूरह आखिर दौर की आ जाती है. 
बेहतर यह होता कि इसे मुरत्तब करते वक़्त मुहम्मद की तहरीक के मुताबिक इस का सिसिला होता. 
खैर, 
इस्लाम की तो सभी चूलें ढीली हैं, उनमें से एक यह भी है. 
इस खामी से एक फ़ायदा यह हुवा है कि इन आखिरी दो सूरतों में इस्लाम की वहदानियत की हवा खुद मुहम्मदी अल्लाह ने निकाल दिया है. 
अल्लाह जिब्रील के मार्फ़त जो पैगाम मुहम्मद के लिए भेजता है उसमे मुहम्मद उन तमाम कुफ्र के माबूदों से पनाह माँगते है, अल्लाह की, 
जिसे हमेशा वह नकारते रहे, 
 इस सूरह में अल्लाह तमाम माबूदों को पूजने का मश्विरः देता है क्यूंकि वह बीमारी से निढाल है.
मुहम्मद शदीद बीमार हो गए थे, कहते हैं कि उनका पेट फूल गया था, जिसकी वजेह थी कि कुछ यहूदिनों ने उन पर जादू टोना कर दिया था कि उनकी बजने वाली मिटटी जाम हो गई थी और उनका बजना बंद हो गया था.
(पिछली सूरतों में उन्होंने फ़रमाया है कि इंसान बजने वाली मिटटी का बना हुवा है) 
उनका पेट इतना फूल गया था कि बोलती बंद हो गई थी. 
जिब्रील अलैहिस सलाम वहयी लेकर आए और मंदार्जा जेल आयतें पढनी शरू कीं, तब जाकर धीरे धीरे उनका जाम खुलने लगा, 
उनसे जिब्रील ने कहलवाया कि - - - 
"तुम गाठों पर पढ़ पढ़ कर फूंकने वाली वालियों को तस्लीम करो कि उनकी भी एक हस्ती है तुम्हारे अल्लाह जैसी ही." 
"हसद करने वाले भी दमदार हैं जो अपना असर अल्लाह की तरह रखते हैं, जब वह हसद करने पर आ जाएं." 
"आदमियों के मालिक, बादशाहों का भी अल्लाह की तरह ही कोई मुक़ाम है." 
"आदमियों के मुखालिफ़ माबूदों ; लात, मनात और उज्जा वगैरा को भी तस्लीम करो कि वह भी अल्लाह की तरह ही कोई ताक़त हैं." 
"वुस्वुसा डालने के वहेम को भी अपना माबूद तस्लीम करो जब तुम वुस्वुसे में आओ." 
"जिन्न को तो तुम पहले से ही अल्लाह दो नम्बरी माने बैठे हो. तो ठीक है . . . ." 
एन हफ्ते की मामूली बीमारी ने मुहम्मद को ऐसा सबक़ सिखलाया कि इस्लाम का मुँह काला हो गया. 
मुहम्मद के फूले हुए पेट से मुहम्मदी अल्लाह की सारी हवा ख़ारिज हो गई,

मुसलमान सिर्फ इन ग्यारह आयतों की दो सूरतों को ही पढ़ कर संजीदगी से मुहम्मद को समझ लें तो मुहम्मदी अल्लाह को समझ पाना आसान होगा. 

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सूरह फ़लक़ - ११३ - पारा - ३० 
(कुल आऊजो बेरब्बिल फलके) 

"आप कहिए कि मैं सुब्ह के मालिक की पनाह लेता हूँ,
तमाम मख्लूकात के शर से,
और अँधेरी रत की शर से,जब वह रात आ जाए,
और गाठों पर पढ़ पढ़ कर फूँकने वालियों की शर से,
और हसद करने वालों के शर से, जब वह हसद करने लगें."
(सूरह फ़लक़ - ११३ - पारा - ३० आयत (१-५)

सूरह नास ११४ - पारा - ३० 
(कुल आऊजो बेरब्बिंनासे) 

"आप कहिए,
कि मैं आदमियों के मालिक और आदमियों के बादशाह,
और आदमियों के माबूद से पनाह लेता हूँ,
वुस्वुसा डालने, पीछे हट जाने वाले के शर से,
जो आदमियों के दिलों में वुस्वसा डालता है,
ख्वाह वह जिन हो या आदमी." 
(सूरह फ़लक़ - ११३ - पारा - ३० आयत (१-६)

नमाज़ियो !
सूरह फ़लक और सूरह नास के बारे में वाक़िया है कि यहूदिनों ने मुहम्मद पर जादू टोना करके उनको बीमार कर दिया था, तब अल्लाह ने यह दोनों सूरतें बयक वक़्त नाजिल कीं, घर की तलाशी ली गई, एक ताँत (सूखे चमड़े की रस्सी) की डोरी मिली, जिसमे ग्यारह गाठें थीं. इसके मुकाबिले में जिब्रील ने मंदार्जा ग्यारह आयतें पढ़ीं, हर आयत पर डोरी की एक एक गाठें खुलीं, और सभी गांठें खुल जाने पर मुहम्मद चंगे हो गए.
जादू टोना को इस्लामी आलिम झूट क़रार देते हैं, जब कि इसके ताक़त के आगे रसूल अल्लाह की अमाँ चाहते हैं. 
यह क़ुरआन क्या है?
राह भटके हुए मुहम्मदी अल्लाह की भूल भुलय्या ? या 
मुहम्मद की, अल्लाह का पैगम्बर बन्ने की चाहत ? 

मुसलमानों! 
मैं तुम्हारा और तुम्हारी नस्लों का सच्चा ख़ैर ख्वाह हूँ , इस लिए कि दुन्या की कोई कौम तुम जैसी सोई हुई नहीं है. माजी परस्ती तुम्हारा ईमान बन गया है, जब कि मुस्तकबिल पर तुम्हारे ईमान को क़ायम होना चाहिए. 

हमारी तहकीकात और हमारे तजुरबे, हमारे अभी तक के सच है, इन पर ईमान लाओ. कल यह झूट भी हो सकते हैं, तब तुम्हारी नस्लें नए फिर एक बार सच पर ईमान लाएँगी, उनको इस बात पर लाकर कायम करो, और इस्लाम से नजात दिलाओ. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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