Thursday 31 August 2017

Hindu Dharm Darshan 90



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
किन्तु यदि तुम युद्ध करने से स्वधर्म को संपन्न नहीं करते तो तुम्हें निश्चित रूप से अपने कर्तव्य की उपेक्षा करने का पाप लगेगा और तुम योद्धा के रूप में भी अपना यश खो दोगे. 
लोग सदैव तुम्हारे अपयश का वर्णन करेंगेऔर सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्यु से भी बढ़ कर है. 
तुम्हारे शत्रु अनेक प्रकार के कटु शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेगे. तुम्हारे लिए इससे दुखदायी क्या हो सकता है.
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 33 -34 -36 

और क़ुरआन कहता है - - - 

''तुम में हिम्मत की कमी है इस लिए अल्लाह ने तख्फीफ (कमी) कर दी है,
सो अगर तुम में के सौ आदमी साबित क़दम रहने वाले होंगे तो वह दो सौ पर ग़ालिब होंगे.
नबी के लायक नहीं की यह इनके कैदी रहें,
जब कि वह ज़मीन पर अच्छी तरह खून रेज़ी न कर लें.
सो तुम दुन्या का माल ओ असबाब चाहते हो और अल्लाह आख़िरत को चाहता है
और अल्लाह तअला बड़े ज़बरदस्त हैं और बड़े हिकमत वाले हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (६७)

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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