Friday 1 November 2019

चूतिया=भगुवा

चूतिया=भगुवा

पिछले दिनों किसी लेख में मैंने तथा कथित अप शब्द "चूतिया" 
का इस्तेमाल किया था, 
जिस पर मेरे एक लाजवंत पाठक ने एतराज़ किया था. 
अफ़सोस होता है कि लाज वश या सभ्यता भार से, 
हम लोग अर्ध सत्य में अटक जाते हैं. 
ठीक है कि कुछ शब्द पार्लियामेंट्री दायरे में नहीं आते हैं 
मगर किसी कारण से शब्द को उच्चारित न किया जाए, 
शब्द का गला घोटना है. 
मशहूर शायर और दानिश्वर रघु पति सहाय 'फ़िराक़' गोरखपुरी 
जो नेहरु जी के रूम पार्टनर हुवा करते थे, के छोटे भाई उनकी बेटी के लिए एक रिश्ता लेकर आए और तारीफ़ करते हुए कहा भय्या आप भी जो जानना चाहते हों लड़के से मिल लें. 
फ़िराक साहब ने कहा तुमने देख लिया, यही काफ़ी है 
और कहा लड़का शराबी हो, जुवारी हो या और कोई ऐब हो चलेगा, 
मगर वह चूतिया न हो. 
इस तरह मैंने भी लेखनी में चूतिया को पढ़ा.
चूतिया का शाब्दिक अर्थ है भग़ुवा. 
दोनों शब्दों का छंद विच्छेद करके देख लें अगर ज़र्रा बराबर भी कोई फ़र्क हो.
एक शब्द गाली बन गया और दूसरा पूज्य ? 
मैं और खुल कर आना चाहता हूँ - - - 
हमारी माएं, बहनें और बेटियां सब भग धारी हैं. 
क्या रंगों को इंगित करने के लिए इनकी भग का रंग ही बचा था ? 
हमारे पूर्वज पाषांण युग के, 
आज की सभ्यता से वंचित थे, तो थे, बहर हाल हमारे पूर्वज थे, 
क्या उनकी अर्ध विकसित सोच को हम आज सभ्य समाज में भी ढोते फिरें ? 
मैं भौगोलिक तौर पर हिन्दू हूँ , 
इस्लाम को ढोता हुवा चौदह नस्लों के बाद भी हिन्दू हूँ. 
मेरे रगों में मेरे पूर्वजों का रक्त है, 
मगर मैं उनके वैदिक युग के ज्ञान को नहीं ढो सकता, 
उसे सर से उतार कर नालों में फेंक चुका हूँ 
और क़ुरआनी इल्म को नाली में.
मुझे आधुनिकता और साइंस की रौशन राह चाहिए.
***

No comments:

Post a Comment