Saturday 30 November 2019

मुग़ीरा इब्ने शोअबा


मुग़ीरा  इब्ने शोअबा

मुहम्मद का साथी सहाबी की हदीस है कि इन्होंने (मुग़ीरा इब्ने शोअबा) एक क़ाफ़िले का भरोसा हासिल कर लिया था फिर ग़द्दारी और दग़ा बाज़ी की मिसाल क़ायम करते हुए उस क़ाफ़िले के तमाम लोगो को सोते में क़त्ल करके मुहम्मद के पनाह में आए थे और वाक़ेआ को बयान कर दिया था, फिर अपनी शर्त पर मुसलमान हो गए थे. (बुखारी-1144)
मुसलमानों ने उमर द ग्रेट कहे जाने वाले ख़लीफ़ा के हुक्म से जब ईरान पर 
लुक़मान इब्न मुक़रन की क़यादत में हमला किया तो ईरानी कमान्डर ने 
बे वज्ह हमले का सबब पूछा था तब  
इसी मुग़ीरा ने क्या कहा ग़ौर फ़रमाइए - - -
''हम लोग अरब के रहने वाले हैं. हम लोग निहायत तंग दस्ती और मुसीबत में थे. 
भूक की वजेह से चमड़े और खजूर की ग़ुठलियाँ चूस चूस कर बसर औक़ात करते थे. 
दरख़्तों  और पत्थरों की पूजा किया करते थे. 
ऐसे में अल्लाह ने अपनी जानिब से हम लोगों के लिए एक रसूल भेजा. 
इसी ने हम लोगों को तुमसे लड़ने का हुक्म दिया है, 
उस वक़्त तक कि तुम एक अल्लाह की इबादत न करने लगो या 
हमें जज़िया देना न क़ुबूल करो.
 इसी ने हमें परवर दिगार के तरफ़ से हुक्म दिया है कि जो जेहाद में क़त्ल हो जाएगा 
वह जन्नत में जाएगा और जो हम में ज़िन्दा रह जाएगा 
वह तुम्हारी गर्दनों का मालिक होगा.
(बुखारी 1289)
हम मुहम्मद की अंदर की शक्ल व सूरत उनकी बुनयादी किताबों क़ुरआन और हदीस में अपनी खुली आँखों से देख रहे हैं. मेरी आँखों में धूल झोंक कर उन नुतफ़े-हराम ओलिमा की बकवास पढ़ने की राय दी जा रही है 
जिनको पढ़ कर उबकाई आती है कि झूट और इस बला का. 
मुझे तरस आती है और तअज्जुब होता है कि 
यह अक़्ल से पैदल मुसलमान उनकी बातों को सर पर लाद कैसे लेते हैं ?
***मुग़ीरा  इब्ने शोअबा
मुहम्मद का साथी सहाबी की हदीस है कि इन्होंने (मुग़ीरा इब्ने शोअबा) एक क़ाफ़िले का भरोसा हासिल कर लिया था फिर ग़द्दारी और दग़ा बाज़ी की मिसाल क़ायम करते हुए उस क़ाफ़िले के तमाम लोगो को सोते में क़त्ल करके मुहम्मद के पनाह में आए थे और वाक़ेआ को बयान कर दिया था, फिर अपनी शर्त पर मुसलमान हो गए थे. (बुखारी-1144)
मुसलमानों ने उमर द ग्रेट कहे जाने वाले ख़लीफ़ा के हुक्म से जब ईरान पर 
लुक़मान इब्न मुक़रन की क़यादत में हमला किया तो ईरानी कमान्डर ने 
बे वज्ह हमले का सबब पूछा था तब  
इसी मुग़ीरा ने क्या कहा ग़ौर फ़रमाइए - - -
''हम लोग अरब के रहने वाले हैं. हम लोग निहायत तंग दस्ती और मुसीबत में थे. 
भूक की वजेह से चमड़े और खजूर की ग़ुठलियाँ चूस चूस कर बसर औक़ात करते थे. 
दरख़्तों  और पत्थरों की पूजा किया करते थे. 
ऐसे में अल्लाह ने अपनी जानिब से हम लोगों के लिए एक रसूल भेजा. 
इसी ने हम लोगों को तुमसे लड़ने का हुक्म दिया है, 
उस वक़्त तक कि तुम एक अल्लाह की इबादत न करने लगो या 
हमें जज़िया देना न क़ुबूल करो.
 इसी ने हमें परवर दिगार के तरफ़ से हुक्म दिया है कि जो जेहाद में क़त्ल हो जाएगा 
वह जन्नत में जाएगा और जो हम में ज़िन्दा रह जाएगा 
वह तुम्हारी गर्दनों का मालिक होगा.
(बुखारी 1289)
हम मुहम्मद की अंदर की शक्ल व सूरत उनकी बुनयादी किताबों क़ुरआन और हदीस में अपनी खुली आँखों से देख रहे हैं. मेरी आँखों में धूल झोंक कर उन नुतफ़े-हराम ओलिमा की बकवास पढ़ने की राय दी जा रही है 
जिनको पढ़ कर उबकाई आती है कि झूट और इस बला का. 
मुझे तरस आती है और तअज्जुब होता है कि 
यह अक़्ल से पैदल मुसलमान उनकी बातों को सर पर लाद कैसे लेते हैं ?
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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