Sunday 10 November 2019

एक कहानी, नाना के ज़ुबानी

 एक कहानी, नाना के ज़ुबानी               
महमूद गजनवी सोमनाथ को जब सोलवहीं बार लूट पाट करके वापस गजनी पहुंचा तो उसकी बीवी ने दरयाफ़्त किया कि हमला कैसा रहा ?  
महमूद ने जवाब दिया बदस्तूर पहले जैसा, 
जितनी दौलत चाही महंतों ने दे दिया. कोई हमला, न ख़ून ख़राबा. 
बीवी बोली - - - गोया वसूली करके चले आए ?
यानी बुतों को उनके हाथ बेच कर चले आए? 
महमूद ने पूछा, कहना क्या चाहती हो ? 
बीवी बोली बुरा तो नहीं मानेंगे ? 
नहीं कह भी डालो. महमूद बोला 
बीवी बोली क़यामत के रोज़ अल्लाह तअला तुमको 
महमूद बुत फ़रोश के नाम से जब पुकारेगा तो कैसा लगेगा? 
महमूद ने ग़ैरत से आँखें झुका लीं. 
दूसरे रोज़ सुबह अपने सत्तरह घुड सवारों को लिया और सोमनाथ को कूच कर दिया . इस बार भी महंत जी फिरौती लिए खड़े थे, 
महमूद ने तलवार की नोक से नज़राने की थाली को हवा में उडा दिया. 
पुजारी समेत मंदिर का पूरा अमला सोमदेव के सामने दंडवत होकर लेट गया  
कि कोई चमत्कार कर दो महाराज ! 
उनको विश्वाश था कि यवण भस्म हो जाएँगे. 
मंदिर के सैकड़ों रक्षकों ने लुटेरों से मुक़ाबिला करने का साहस नहीं किया . 
महमूद के सिर्फ़ 17 सिपाहियों ने मंदिर को तहेस नहेस कर के ख़ज़ाने तक पहुँचने में कामयाबी हासिल की. 
ख़ज़ाना देख कर उनकी आँखें ख़ैरा हो गईं. 
सोना चाँदी हीरे जवाहरात का अंबार. 
महमूद ने ऊँट गाड़ी तलाश किया और सोमनाथ की अकूत दौलत ऊंटों पर लाद कर गजनी ले गया. 
महमूद गजनी पहुँच कर सब से पहले अपनी बीवी के आँचल पर दो रिकातें नमाज़ शुकराना अदा किया. 
महमूद सोमनाथ के कुछ अवशेष भी साथ ले गया जो आज भी गजनी मी एक मस्जिद में प्रवेश द्वार के जीनों में लगे हुए हैं .
नाना की ज़बान से यह कहानी, 
इस वजेह से दोहराने की ज़रुरत पड़ी कि हमारे हिंदू मित्र मनन और चितन करें 
कि मंदिरों की मानसिकता क्या होती है? 
सैकड़ों सालों बाद आज भी कोई फर्क नहीं पड़ा. 
आज भी भारत की मंदिरों में बेशुमार दौलत निष्क्रीय पड़ी हुई है. 
लोगों का अनुमान है कि भारत सरकार के पास इतना सोना नहीं है, 
जितना भारत के मंदिरों में जाम पड़ा हुवा है. 
कौन भगवान है ? इस दौलत को वह क्या करेगा ?  
यह मनु विधान की एक व्योवस्था है जो उनको महफूज़ और मज़बूत किए हुए है.
महमूदों की सुल्तानी गई, अरबी बद्दुओं की लूट पाट का दौर भी गया, 
मनुवाद और शुद्र वाद अपनी जगह पर क़ायम हैं.
अब भारत को एक माओत्ज़े तुंग की ज़रुरत है 
जो इन मठा धीशों का काम तमाम करके देश की 40% आबादी को 
ग़रीबी रेखा से निकाल कर भारत का भाग्य बदले .        
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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