Thursday 28 November 2019

हिंदुत्व का बंजर भविष्य


हिंदुत्व का बंजर भविष्य 

अरब के असभ्य कबीलाई बददू  आज भी अपनी पुरानी ख़सलतों के मालिक हैं.
इनकी फ़ितरत में जन्मा इस्लाम बहुत से अपने क़बीलाई रंग ढ़ंग रखता है. 
लड़ाई झगड़े, लूट मार, जंग जदाल इनकी ख़ू  हुवा करती है. 
यह समझते हैं कि इनकी बहादुरी, 
इन्हीं तलवार बाजियों के दम पर क़ायम रहती है. 
अगर अपने इस रवय्ये को यह छोड़ दें तो एक दिन ग़ुलाम बन जाएँगे. 
ग़ुलामी को यह मौत से बदतर समझते हैं. 
इनकी फ़ितरत क़ब्ल इस्लाम हज़ारों साल पहले से लेकर आज तक क़ायम है. 
इनको अपनों के मर जाने का कोई ग़म नहीं होता, 
तीन दिन से ज़्यादः किसी की मौत का शोक मनाना इनमें हराम होता है.
इनमें नस्ल अफ़जाई की भी बला की क़ूवत होती है. 
दर्जन भर बच्चे पैदा करना इनकी आम औसत है. 
बस ख़ुश हाली और सत्ता इन्हें दरकर है, 
जिसके लिए वह हर वक़्त आमादा ए जंग रहते हैं. 
अलकायदा, जैश ए मुहम्मद, हुर्रियत, तालिबान और ISIS तक, 
इनके वर्तमान के नमूने हैं.  

इसके बर अक्स हम बर्र ए सग़ीर के लोग अरबियों से उलटी फ़ितरत के हुवा करते हैं. हर हाल में अम्न और अहिंसा पसंद होते हैं. 
मार लो, काट लो, लतया लो, घुसया लो, दास बना लो, दासियाँ बना लो, 
मुंह में थुकवा लो, हम हर हाल में जिंदा रहना चाहते हैं. 
इसका नया रूप सहिष्णुता है.
यह मुसलमान कहे जाने वाले हमारी उन बहन बेटियों की संताने हैं, 
जिन्हें हमारे अहिंसक पूर्वजों ने मुस्लिम लड़ाकों को समर्पित कर दिया था. 
यह सब दोग़ले हैं हिन्दू कायरता और अरबी वह्शत गरदी का मुरक्कब. 
यह शाका हारी, मांसा हारी हो गए अपने मातृ पूर्वजों के करण, 
जंग जू हो गए अपने पितृ पूर्वजों के कारण. 
इनकी खेती बाड़ी ज़रखेज़ होती है. 
यह मुट्ठी भर दोग़ले जिस ज़मीन पर छिड़क दिए जाएं, 
देखते ही देखते हरी भरी फ़सल बन जाते हैं. 
यह अपनी तान के तंबू तानते हुए दो दो पकिस्तान बना लेते हैं.  
इंशा अल्लाह बचे हुए भारत में भी एक दिन इनका तम्बू तन जाएगा. 
हिन्दू कुश की हिन्दू कुशी करते हुए भारत को यह  हिन्दुस्तान बन लेंगे. 
भारत योगी भूमि, स्वामी भूमि, साधु और साधुवी भूमि, ब्रहम चर्य भूमि 
बनते बनते एक दिन हिंदुत्व की बंजर भूमि बन जाएगी. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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