मेरी तहरीर में - - -
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा
(दूसरी क़िस्त)
"अल्लाह तअला तुमसे एक मज्मूने-अजीब, तुम्हारे ही हालात में बयान फ़रमाते हैं, क्या तुम्हारे गुलामों में कोई शख्स तुम्हारा उस माल में जो हमने तुम्को दिया है, शरीक है कि तुम और वह इस में बराबर के हों, जिनका तुम ऐसा ख्याल करते हो जैसा अपने आपस में ख़याल किया करते हो? हम इसी तरह समझदार के लिए दलायल साफ़ साफ़ बयान करते हैं "
"सो जिसको खुदा गुमराह करे उसको कौन राह पर लावे"
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२९)
ये आयत कुरआन में मुहम्मद का तकिया कलाम है जो बार बार आती है, नतीजतन मुसलमान इसे दोहराते रहते हैं, बगैर इस पर गौर किए कि आयत कह क्या रही है, कि अल्लाह शैतान से भी बड़ा शैतान है कि सीधे सादे अपने बन्दों को ऐसा गुमराह करता है कि उसका राह पर आना मुमकिन ही नहीं है.
"जिन लोगों ने अपने दीन के टुकड़े टुकड़े कर रखे है और बहुत से गिरोह हो गए हैं, हर गिरोह अपने तरीक़े पर नाज़ाँ है जो उसके पास है - - -
''सो आप मुर्दों को नहीं सुना सकते और बहरों को आवाज़ नहीं सुना सकते जब कि पीठ फेर कर चल दें, आप अंधों को उनकी बेराही से राह पर नहीं ला सकते, आप तो बस उनको सुना सकते हैं जो हमारी आयातों पर यकीन रखते हैं, बस वह मानते हैं.सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (३०-५७)
"और हमने इस कुरआन में तरह तरह के उम्दा मज़ामीन बयान किए हैं. और अगर आप उनके पास कोई निशानी ले आवें तब भी ये काफ़िर जो हैं, यही कहेंगे कि तुम सब निरा अहले बातिल हो. जो लोग यकीन नहीं करते अल्लाह तअला उनके दिलों में यूँ ही मुहर लगा देता है. तो आप सब्र कीजिए, बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है, और ये बद यकीन लोग आपको बेबर्दाश्त न कर पाएँगे."सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (६०-७५)खुद खुद अल्लाह से मुहर लगवाते हैं और फिर चाहते हैं कि सब लोग उसको तोड़ें भी।
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा
अब आ जाएँ क़ुरआनी राग माले पर - - -
"और इसी निशानियों में से ये है कि वह तुम्हें बिजली दिखाता है जिस से डर भी होता है और उम्मीद भी होती है और वही आसमान से पानी बरसता है, फिर उसी से ज़मीन को उस मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है. इसमें इन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो अक्ल रखते हैं. और इसी निशानियों में से ये है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं. फिर जब तुमको पुकार कर ज़मीन से बुलावेगा तो तुम यक बारगी पड़ोगे और जितने आसमान और ज़मीन हैं, सब उसी के ताबे हैं. और वही रोज़े अव्वल पैदा करता है और वही दोबारा पैदा करेगा, और ये इसके नजदीक ज्यादा आसान है. "सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२४-२७)मुसलमानों अल्लाह को बाद में जानो, पहले निज़ामे कुदरत को समझो. पेड़ पौदों की तरह क्या इंसान ज़मीन से उगने शुरू हो जाएँगे? ज़मीन न मुर्दा होती है न जिंदा, पानी ही ज़िदगी है. बेतर ये होता कि अल्लाह एक बार इंसान को पानी की बूँदें की तरह योम हश्र बरसता. ये थोडा छोटा झूट होता.
"और इसी निशानियों में से ये है कि वह तुम्हें बिजली दिखाता है जिस से डर भी होता है और उम्मीद भी होती है और वही आसमान से पानी बरसता है, फिर उसी से ज़मीन को उस मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है. इसमें इन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो अक्ल रखते हैं. और इसी निशानियों में से ये है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं. फिर जब तुमको पुकार कर ज़मीन से बुलावेगा तो तुम यक बारगी पड़ोगे और जितने आसमान और ज़मीन हैं, सब उसी के ताबे हैं. और वही रोज़े अव्वल पैदा करता है और वही दोबारा पैदा करेगा, और ये इसके नजदीक ज्यादा आसान है. "सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२४-२७)मुसलमानों अल्लाह को बाद में जानो, पहले निज़ामे कुदरत को समझो. पेड़ पौदों की तरह क्या इंसान ज़मीन से उगने शुरू हो जाएँगे? ज़मीन न मुर्दा होती है न जिंदा, पानी ही ज़िदगी है. बेतर ये होता कि अल्लाह एक बार इंसान को पानी की बूँदें की तरह योम हश्र बरसता. ये थोडा छोटा झूट होता.
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२८)क्या अल्लाह की इस ना मुकम्मल बकवास में कोई दम है, अलबत्ता ये अजीबो गरीब ज़रूर है.
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२९)
ये आयत कुरआन में मुहम्मद का तकिया कलाम है जो बार बार आती है, नतीजतन मुसलमान इसे दोहराते रहते हैं, बगैर इस पर गौर किए कि आयत कह क्या रही है, कि अल्लाह शैतान से भी बड़ा शैतान है कि सीधे सादे अपने बन्दों को ऐसा गुमराह करता है कि उसका राह पर आना मुमकिन ही नहीं है.
इंसान को कम से कम ज़ेहनी आज़ादी थी कि अपने आस्था के मुताबिक़ अपना खुदा चुने हुए था. वह इरतेकाई हालत के सहारे आज इंसान बन गया होता, अगर इस्लाम ने इसके पैर में बेड़ियाँ न डाली होती.
क्या उनको मालूम है कि अल्लाह तअला जिसको चाहे ज़्यादः रोज़ी दे देता है जिसको चाहे कम देता है. इसमें निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं.- - -
क्या उनको मालूम है कि अल्लाह तअला जिसको चाहे ज़्यादः रोज़ी दे देता है जिसको चाहे कम देता है. इसमें निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं.- - -
अल्लाह तअला नहीं बल्कि बन्दों के घटिया निजाम के चलते इंसानों की शहेन शाही और गदा गरी हुवा करती है, आज भी भारत में हर इंसान को लूट की आज़ादी है, चाहे देश में कोई तबक़ा भूकों मरे. दुन्य को चीन और डेनमार्क जैसे निज़ाम की ज़रुरत है.अल्लाह ही वह है जिसने तुम को पैदा किया, फिर रिज्क़ दिया फिर मौत देता है, फिर तुमको जिलाएगा. क्या तुम्हारे शरीकों में कोई ऐसा है?- - -
पहले अल्लाह को तलाशी, साबित करिए, फिर उसकी करनी तय करिए. अल्लाह तो मुहम्मद जैसे घाघ बजोर लाठी बने बैठे हैं और मुसलमानों को जेहालत पर ठहराए हुए है.खुश्की और तरी में लोगों के आमाल के सबब बलाएँ फ़ैल रही हैं ताकि अल्लाह तअला उनके बअज़ आमाल का मज़ा उनको चखा दे ताकि वह बअज़ आएँ,
मुसलमानों का अल्लाह इस इंतज़ार में रहता है कि कब मौक़ा मिले और कब इन बन्दों पर क़हर बरसाएं.
वाकई अल्लाह तअला काफिरों को पसंद नहीं करता - - -
वाकई अल्लाह तअला काफिरों को पसंद नहीं करता - - -
मुहम्मदी अल्लाह इंसानों में नफ़रत फैलता है और सियासत दान प्रचार करते हैं कि इस्लान ख़ुलूस, मुहब्बत, प्रेम और भाई चारे को फैलता है. काफिरों से नफ़रत का पैगाम ही मुसलामानों को बदनाम और कमज़ोर किए हुए है.''और हमने आप से पहले बहुत से पैगम्बर इनके कौमों के पास भेजे और वह उनके पास दलायल लेकर आए सो हमने उन लोगों से इन्तेकाम लिया जो मुर्तकाब जरायम हुए थे और अहले ईमान को ग़ालिब करना हमारा ज़िम्मा था.''
ईसाइयत का खुदा हमेशा अपने बन्दों को माफ़ किए रहता है और कभी अपने बन्दों पर ज़ुल्म नहीं करता, इंतेक़ाम लेना तो वह जानता ही नहीं, नतीजतन वह दुन्या की सफ़े अव्वल की कौम बन गई है. इन्तेकाम के डर से मुसलमान हमेशा चिंतित रहता है और अपना क़ीमती वक़्त इबादत में सर्फ़ करता है,जिसे कि उसे अपनी नस्लों को सुर्खरू करने में लगाना चाहिए. इस अकीदे के बाईस वह बुजदिल भी है. जो अल्लाह बदला लेता हो उस पर लानत है.
''सो आप मुर्दों को नहीं सुना सकते और बहरों को आवाज़ नहीं सुना सकते जब कि पीठ फेर कर चल दें, आप अंधों को उनकी बेराही से राह पर नहीं ला सकते, आप तो बस उनको सुना सकते हैं जो हमारी आयातों पर यकीन रखते हैं, बस वह मानते हैं.सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (३०-५७)
मुहम्मद को अपना राग अवाम को सुनाने का मरज़ था, वह राग जो बेरागा था. आज की नई क़द्रें ऐसे लोगों को पसंद नहीं करतीं, पहले भी इनको पसंद नहीं किया जाता था मगर लखैरों को माल ग़नीमत की लालच ने इस जुर्म को सफल बनाया, जिसका अंजाम बहर हाल आज का आईना है जिसे मुसलमान देखना ही नहीं चाहते.
सिडीसौदाइयों की तरह क्या क्या बक रहे हो, अल्लाह मियां? ये कौन लोग निरे अहले बातिल हैं? बद यकीन हैं? ये कौन लोग है जो आपको बेबर्दाश्त नहीं कर परहे है? ये बेबर्दाश्त क्या होता है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
अरे!!!! वाह!!!!! यह तो भयंकर सच है।
ReplyDeleteआपकी यह सच खोलती साईट पहली बार देखी।
ला-जवाब!! माशाअल्लाह!!
यह है असली कुरआन का सच???? लाहोल विला कुवत!!
यह भेद खोलते रहें और लोगों को राह दिखाएं।
ReplyDeletecooll :)))
"सो जिसको खुदा गुमराह करे उसको कौन राह पर लावे"
ReplyDelete"जिन लोगों ने अपने दीन के टुकड़े टुकड़े कर रखे है और बहुत से गिरोह हो गए हैं, हर गिरोह अपने तरीक़े पर नाज़ाँ है जो उसके पास है kya aap bhi koi nya giroh bana rahe hain? aap ke giroh ka naam kya hai? aap ka maqsad kya hai aap ka lekh to aur adhik bharam paida karne wala lagta hai aur ye shabd aap ne kis se seekhe hain, aap ko gyan kis ne diya . aap kahna kya chahte hain kuch samajh me nahi aata hai
ReplyDeleteमुहम्मद को अपना राग अवाम को सुनाने का मरज़ था, aur ab lagta hai wahi marz aap ko lg gya hai,kiasi ki aalochna karna akele me baith kar bahut aasaan kaam hai, agar wastav me aap insanon ki bhlayee ke liye kuch karna chahte hain to apni party banayen aur uski sabse pahli membership mujhe dene ka kast karen
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