Wednesday, 22 December 2010

सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा



(दूसरी किस्त)

मुसलामानों ! तुम्हारे रसूल फरमाते हैं - - -"दौरान नमाज़ जिस पाद में आवाज़ कान तक आ जाए या बदबू नाक में पहुँच जाए तो वज़ू टूट जाता है."
वज़ू ? यानी नमाज़ पढने से पहले पानी से मुँह, हाथ और पैर को धो कर अपने बदन को शुद्ध करना वज़ू बनाना होता है जोकि पाद निष्काषित होने पर टूट जाता है.. यानी कान या नाक तक पाद की पहुँच ना हो तो वज़ू बना रहता है. कभी कभी नमाज़ी दोपहर को वज़ू बनाते हैं तो रात तक वह बना रहता है. इस दौरान पाद निष्काषित होने से वह बचते रहते हैं ताकि वजू बना रहे ।
पाद निष्कासन एक प्राकृतिक परिक्रिया है जिसे रोके रहना पेट को विकार अर्पित करना। " रसूल फरमाते हैं कि - - -
"इस्तेंजा करें तो ताक़ बार यानी ३,५, ७, ९ - - - अर्थात जुफ्त बार४,६,८ वगैरा न हो"इस्तेजा? पेशाब करने के बाद लिंग मुख को मिटटी के ढेले से पोछना ताकि वजू बना रहे. कपडे को पेशाब नापाक न करसके। इसमें ताक़ और जुफ्त की जेहालत है। दूसरी तरफ कहते हैं कि ऐसे टोटके शिर्क है.ऐसी मूर्खता पूर्ण बातों में आम मुसलमान मुब्तिला रहता है जो उसकी तरक्की में बाधा है।



१-अलौकिक-कला
मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - -
"अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को बड़ी मुनासिब तौर पर बनाया, ईमान वालों के लिए इसमें बड़ी दलील है."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४४)
ज़मीन और आसमानों की तकमील हो,
मकडीका बोदा घर हो,
पानी को चीरती हुई कश्तियाँ हों,
ऊँट का बेढंगा डील डौल हो,
या गधे की करीह आवाज़,
जिनको कि आप कुरान में बघारते हैं,
इन सब का तअल्लुक़ ईमान से है क्या? जिसकी शर्त पर आपकी पयंबरी कायम होती है. आपको तो इतना इल्म भी नहीं कि आसमान (कायनात) सिर्फ एक है और इस कायनात में ज़मीनें अरबों है ख़रबों हैं जिनको हमेशा आप उल्टा फरमाते हैं . . "आसमानों (जमा) ज़मीन (वाहिद)""जो किताब आप पर वह्यी की गई है उसे आप पढ़ा कीजिए और नमाज़ की पाबन्दी रखिए. बेशक नमाज़ बेहयाई और ना शाइस्ता कामों से रोक टोक करती हैं और अल्लाह की याद बहुत बड़ी चीज़ है और अल्लाह तुम्हारे सब कामों को जानता है."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४५)ऐ अल्लाह! मुहम्मद नाख्वान्दा हैं, अनपढ़ हैं, कोई किताब कैसे पढ़ सकते हैं? उन्हें थोड़ी सी अक्ल दे कि सोच समझ कर बोला करें." और आप इस किताब से पहले ना कोई किताब पढ़े हुए थे और ना कोई किताब अपने हाथों से लिख सकते थे कि ऐसी हालत में ये हक नाशिनास कुछ शुबहा निकालते, बल्कि ये किताब खुद बहुत सी वाजः दलीलें हैं. उन लोगों के ज़ेहन में ये इल्म अता हुआ है कि हमारी आयतों से बस जिद्दी लोग इंकार किए जाते हैं और ये लोग यूँ कहते हैं कि इन पर रब कि तरफ़ से निशानियाँ क्यूं नहीं नाज़िल हुईं. आप कह दीजिए कि वह निशानियाँ तो अल्लाह के क़ब्ज़े में हैं और मैं तो साफ़ साफ़ एक डराने वाला हूँ"सूरह अनकबूत -२९ २०+२१ वाँ पारा आयत(४८-५०)इस वावत आप थोडा सा सच बोले वह भी झूट के साथ, जिसे जिद्दी नहीं साहबे इल्म ओ फ़िक्र नकारते रहे. दो निशानियाँ आप दिखला चुके हैं १- शक्कुल क़मर और २- मेराज, जिन्हें आप भूल रहे हैं कि खलीफा उमर ने आप को वह फटकार लगाई कि निशानियाँ और मुआज्ज़े आप को भूलना ही पड़ा, मगर आपके चमचों ने उसको कुरआन में शामिल ही कर दिया. आप के बाद आपके मुसाहिबों ने तो सैकड़ों निशानियाँ आपके लिए गढ़ लिए .''निशानियाँ तो अल्लाह के क़ब्ज़े में हैं'' और अल्लाह आप के क़ब्ज़े में था.''क्या इन लोगों को ये बात काफ़ी नहीं क़ि हमने आप पर ये किताब नाजिल फरमाई जो उनको सुनाई जाती रहती है, ईमान ले आने वाले लोगों को बड़ी रहमत और नसीहत है. आप ये कह दीजिए अल्लाह मेरे और तुम्हारे दर्मियान गवाही बस है. इसको सब चीजों की खबर है जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है. जो लोग झूटी बातों पर यकीन रखते हैं और अल्लाह के मुनकिर हैं तो वह लोग ज़ियाँ कर रहे हैं. और ये लोग आप से अज़ाब का तक़ाज़ा करते हैं. और अगर मीयाद मुअय्यन न होती तो इन पर अज़ाब आ चुका होता. वह अज़ाब इनपर अचानक आ पहुंचेगा. और इनको खबर न होगी. ये लोग आप से अज़ाब का तक़ाज़ा करते हैं और इसमें शक नहीं कि जहन्नम इन काफिरों को घेर लेगा. जिस दिन क़ि इनपर अज़ाब उनके ऊपर से और उनके नीचे से घेर लेगा. और अल्लाह तअला फ़रमाएगा कि जो कुछ करते रहे हो अब चक्खो। ऐ मेरे ईमान दार बन्दों! मेरी ज़मीन फ़िराख है सो ख़ालिस मेरी इबादत करो. हर शख्स को मौत का मज़ा चखना है. फिर तुम सब को हमारे पास आना है''.और बहुत से जानवर ऐसे हैं जो अपनी गिज़ा उठा कर नहीं रखते, अल्लाह ही उनको रोज़ी भेजता है और तुमको भी. और वह सब कुछ सुनता है. - - बेशक अल्लाह सब चीज़ के हाल से वाकिफ है. आप उनसे दरयाफ्त करिए वह कौन है जिसने आसमान से पानी बरसाया? तो वह लोग यही कहेंगे की अल्लाह है. आप कहिए कि अलहम्दो लिल्लाह! बल्कि उन में अक्सर समझते भी नहीं. और यह दुनयावी ज़िन्दगी बजुज़ लह्व-लआब के और कुछ भी नहीं और असल ज़िन्दगी आलमे आखरत है. अगर इनको इसका इल्म होता तो ऐसा न करते. फिर जब ये लोग कश्ती पर सवार होते हैं तो खालिस एत्काद करके अल्लाह को ही पुकारते हैं, फिर जब नजात देकर खुश्की की तरफ ले आता है तो वह फ़ौरन ही शिर्क करने लगते हैं.सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४६-69)मुसलामानों! अगर आज कोई शनासा आपके पास आए और कहे कि
" अल्लाह ने मुझे अपना रसूल चुन लिया है"
और इस क़िस्म की बातें करने लगे तो आप का रद्दे-अमल क्या होगा?
जो भी हो मगर इतनी सी बात पर आप अपना आपा इतना नहीं खो देंगे
कि उसे क़त्ल ही कर दें।
फिर धीरे धीरे वह अपने दन्द फन्द से अपनी एक टोली बना ले जैसा कि आज आम तौर पर हो रहा है. उस वक़्त आप उसकी मुखालिफत करेंगे और उसके बारे में कोई बात सुनना पसंद नहीं करेंगे।
उसकी ताक़त बढती जाय और उसके चेले गुंडा गर्दी पर आमादः हो जाएँ तब आप क्या करेंगे?
पुलिस थाने या अदालत जाएँगे, मगर उस वक़्त ये सब नहीं थे, उस वक़्त जिसकी लाठी उसकी भैंस का ज़माना था.
शनासा का गिरोह अपनी ताक़त समाज में बढा ले, यहाँ तक कि जंग पर आमादः हो जाए,
आप लड़ न पाएं और मजबूर होकर बे दिली से उसको तस्लीम कर लें।
वह ग़ालिब होकर आप के बच्चों को अपनी तालीम देने लगे, और आप चल बसे,
आपके बच्चे भी न नकुर के साथ उसे मानने लगें
मगर
उनके बच्चे उस के बाद उस अल्लाह के झूठे रसूल को पूरी तरह से सच मानने लगेंगे. इस अमल में एक सदी की ज़रुरत होगी. आप तो चौदह सदी पार कर चुके हैं. गुंडा गर्दी आपका ईमान बन चुका है मिसाल अलकायदा और तालिबान वगैरा हैं ।
इस तरह दुन्या में इस्लाम और कुरआन मुसल्लत हुवा है.
कुरआन को अपनी समझ से पढ़ें , इस्लाम का नुस्खा खुद बखुद आप कि समझ में आ सकता है।
कुरान खुद इस्लाम की नंगी तस्वीर अपने आप में छुपाए हुए है, जिसकी पर्दा दारी ये मूज़ी ओलिमा किए हुए हैं।


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


2 comments:

  1. जिसको खुदा गुमराह करे उसको कौन राह पर लावे

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