Sunday 19 December 2010

सूरह अनकबूत -२९, २० वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी

'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


राहुल गाँधी ने अगर ये कहा है कि हिदू आतंक वाद ज्यादह खतरनाक है, बनिस्बत मुस्लिम आतंक वाद के, तो उनको संकुचित राज नीतिज्ञों से डरने की कोई ज़रुरत नहीं। उन्हों ने इक दम नपा तुला हुवा सच बोला है. उनके बाप स्वर्गीय राजीव गाँधी को बम से चीथड़े करके शहीद करने वाले मुस्लिम आतंक वाद नहीं था, बल्कि लिट्टे वाले थे, जो बहरहाल हिदू हैं. उनकी दादी श्री मती इंदिरा गाँधी को गोलियों से भून कर शहीद करने वाले सिख थे, जो बहरहाल हिन्दू होते हैं जैसा कि भगुवा ग्रुप मानता है. महात्मा गाँधी, बाबा ए कौम को इन आतंक वादी शैतानो ने अपना सांकेतिक हथियार त्रिशूल भोंक कर, तीन गोलियां से उनकी छाती छलनी करके आतंक का मज़ा लिया था. मुस्लिम आतंक वाद को आगे करके ये ज़हरीले प्राणी अपना वजूद कायम किए हुए हैं. मुस्लिम आतंक वाद अपने आप में विशाल भारत के लिए चूहों के झुड से ज्यादह कुछ भी नहीं हैं. मुस्लिम आतंक वादी दुन्या के कोने कोने में कुत्तों की मौत मारे जा रहे हैं. मुस्लिम आतंक वाद खुद सब से बड़ा दुश्मन मुसलामानों का है जो कि मुसलमान समझ नहीं पा रहे हैं, जिनको मैं कुरआन की आयतों की धज्जियां उड़ा उड़ा कर समझा रहा हूँ. राहुल गाँधी को थोड़ी और जिसारत करके मैदान में आना चाहिए कि हिन्दू आतंक वाद ५००० साल, वैदिक काल से भारत के मूल्य निवासियों पर ज़ुल्म ढा रहा है, मुस्लिम आतंक वाद तो सिर्फ १४ सौ सालों से पूरी दुन्या को बद अम्न किए हुए है, और हिदू आतंक वाद भारत के आदिवासियों और मूल निवासियों को (सिर्फ हिन्दुओं को) अपना शिकार बनाए हुए है. मुस्लिम आतंक वाद जितना गैरों को तबाह करता है उससे कहीं ज्यादा खुद तबाह होता चला आया है. हिन्दू आतंक वाद जोंक का स्वाभव रखता है अपने शिकार को ताउम्र मरने नहीं देता जिसे वह अपना गुलाम बना कर रखता है. हिन्दू आतंक वाद कई गुना घृणित है जो कि भारत में फला फूला हुवा है.


(पहली किस्त)



सूरह में इस्लाम के शुरूआती दौर के नव मुस्लिमों की ज़ेहनी कशमकश की तस्वीरें साफ़ नज़र आती हैं. लोग खुद साख्ता रसूल की बातों में आ तो जाते हैं मगर बा असर काफिरों का गलबा भी इनके जेहन पर सवार रहता है. वह उनसे मिलते जुलते हैं, इनकी जायज़ बातों का एतराफ़ भी करते हैं जो खुद साख्ता रसूल को पसंद नहीं, मुखबिरों और चुगल खोरों से इन बातों की खबर बज़रीआ वह्यीय ख़ुद साख्ता रसूल को हो जाती है और खुद साख्ता रसूल कहते हैं "अल्लाह ने इन्हें सारी खबर देदी है " वह फिर से लोगों को पटरी पर लाने के लिए क़यामत से डराने लगते हैं, इस तरह कुरआन मुकम्मल होता रहता . मुहम्मद के फेरे में आए हुए लोगों को मुहम्मद ज़हीन अफराद समझते हैं - - -"ये शख्स मुहम्मद, बुजुर्गों से सुने सुनाए किस्से को क़ुरआनी आयतें गढ़ कर बका करता है. इसकी गढ़ी हुई क़यामत से खौफ खाने की कोई ज़रुरत नहीं. चलो तुमको अंजाम में मिलने वाले इसके गढ़े हुए अज़ाबों की ज़िम्मेदारी मैं अपने सर लेने का वादा करता हूँ, अगर तुम इसके जाल से निकलो"माजी के इस पसे-मंज़र में डूब कर मैं पाता हूँ कि दौरे-हाज़िर के पीरो मुर्शिद, स्वामियों और स्वयंभू भगवानों की दूकानों को, जो बहुत करीब नज़र आती हैं और बहुत पास मिलते हैं वह सादा लौह, गाऊदी, अय्यर मुसाहिब और लाखैरे की भीड़ और मुरीदों के ये चेले. ऐसे ही लोग मुहम्मद के जाल में आते, जिनको समझा बुझा कर राहे-रास्त पर लाया जा सकता था.मैं खुद साख्ता रसूल की हुलिया का तसव्वुर करता हूँ । . .
नीम दीवाना, होशियार,
मगर गज़ब का ढीठ।
झूट को सच साबित करने का अहेद बरदार,
सौ सौ झूट बोल कर आखिर कार
" हज़रात मुहम्मद रसूल अल्लाह सललललाह अलैहे वसल्लम" बन ही गया।
वह अल्लाह जिसे खुद इसने गढ़ा, उसे मनवा कर, पसे पर्दा खुद अल्लाह बन बैठा.
झूट ने माना कि बहुत लम्बी उम्र पाई मगर अब और नहीं.मुहम्मद के गिर्द अधकचरे जेहन के लोग हुवा करते जिन्हें सहाबाए-कराम कहा जाता है, जो एक गिरोह बनाने में कामयाब हो गए. गिरोह में बेरोजगारों की तादाद ज्यादह थी. कुछ समाजी तौर पर मजलूम हुवा करते थे, कुछ मसलेहत पसंद और कुछ बेयारो मददगार. कुछ लोग तफरीहन भी महफ़िल में शरीक हो जाते. कभी कभी कोई संजीदा भी जायजा लेने की गरज़ से आकर खड़ा हो जाता और अपना ज़ेहनी जायका बिगाड़ कर आगे बढ़ जाता और लोगों को समझाता . . .
इसकी हैसियत देखो, इसकी तालीम देखो, इसका जहिलाना कलाम देखो, बात कहने की भी तमीज नहीं, जुमले में अलफ़ाज़ और कवायद की कोताही देखो. इसकी चर्चा करके नाहक ही इसको तुम लोग मुकाम दे राहे हो, क्या ऐसे ही सिडी सौदाई को अल्लाह ने अपना पैगामबर चुना है?बहरहाल इस वक़्त तक मुहम्मद ने तनाज़ा, मशगला और चर्चा के बदौलत मुआशरे में एक पहचान बना लिया था. एक बार मुहम्मद मक्का के पास एक मुकाम तायाफ़ के हाकिम की के पास अपनी रिसालत की पुड्या लेकर गए. उसको मुत्तला किया कि
"अल्लाह ने मुझे अपना रसूल मुक़रार किया है।"
उसने इनको सर से पावन तक देखा और थोड़ी गुफ्तुगू की और जो कुछ पाया उस पैराए में इनसे पूछा " ये तो बताओ कि मक्का में अल्लाह को कोई ढंग का आदमी नहीं मिला कि एक अहमक को अपना रसूल बनाया? "
धक्के देकर इन्हें बाहर निकला और लोगों को माजरा बतलाया. लोगों ने लात घूसों से इनकी तवाज़ो किया, बच्चों ने पागल मुजरिम की तरह इनको पथराव करते हुए बस्ती से बहार किया. क़ुरआनी आयतें लाने वाले जिब्रील अलैहस्सलाम दुम दबा कर भागे, और अल्लाह आसमान पर बैठा ज़मीन पर अपने रसूल का तमाशा देखता रहा.'मगर साहब ! मुहम्मद अपनी मिटटी के ही बने हुए थे, न मायूस हुए न हार मानी. जेहाद की बरकत माले-गनीमत' का फार्मूला काम आया. फतह मक्का के बाद तो तायाफ़ के हुक्मरान जैसे उनके क़दमों में पड़े थे.मुलाहिजा हो मुहम्मद की अल्लम गल्लम - - -

"अल्लम"सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(१)ये लफ्ज़ मुह्मिल है जिसके कोई मानी नहीं होते. ऐसे हर्फों को क़ुरआनी इस्तेलाह में हुरूफे मुक़त्तेआत कहते है. इसका मतलब अल्लाह ही जनता है. ऐसे लफ्ज़ मुह्मिल को कुरआन में मुहम्मद पहले लाते हैं। कुरआन की आयातों को सुनकर शायद किसी ने कहा होगा " क्या अल्लम-गलत बकते हो?" तब से ही अरबी, फ़ारसी और उर्दू में ये मुहवेरा कायम हुआ.


"क्या इन लोगों ने ये ख़याल कर रक्खा है कि वह इतना कहने पर छूट जाएँगे कि हम ईमान ले आए और उनको आज़माया न जायगा और हम तो उन लोगों को भी आज़मा चुके हैं जो इसके पहले हो गुज़रे हैं, सो अल्लाह इनको जान कर रहेगा जो सच्चे थे और झूटों को भी जान कर रहेगा."हर अमल का गवाह अल्लाह कहता है कि वह ईमान लाने वालों को जान कर रहेगा? मुहम्मद परदे के पीछे खुद अल्लाह बने हुए हैं जो ऐसी तकरार में अल्लाह को घसीटे हैं. वरना आलिमुल गैब अल्लाह को ऐसी लचर बात कहने की क्या ज़रुरत है? अल्लाह को क्या मजबूरी है कि वह तो दिलों की बात जनता है. इस्लाम कुबूल करने वाले नव मुस्लिम खुद आज़माइश के निशाने पर हैं. मुहम्मद इंसानी ज़हनों पर मुकम्मल अख्तियार चाहते हैं कि उनको तस्लीम इस तरह किया जाए कि इनके आगे माँ, बहेन, भाई, बाप कोई कुछ नहीं. इनसे साहब सलाम भी इनको गवारा नहीं.सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(२-३)

"हम ने इन्सान को अपने माँ बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है और अगर वह तुझ पर इस बात का ज़ोर डालें कि तू ऐसी चीज़ को मेरा शरीक ठहरा जिसकी कोई दलील तेरे पास नहीं है तो उनका कहना न मानना. तुझको मेरे ही पास लौट कर आना है. सो मैं तुमको तुम्हारे सब काम बतला दूंगा."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(८)मुहम्मदी अल्लाह के पास क्या दलील है कि वह सही है? अभी तो उसका होना भी साबित नहीं हुवा.
मुहम्मदी अल्लाह की ये गुमराही के एहकाम औलादों के लिए है तो दूसरी तरफ मान बाप को धौंस देता है कि अगर उनकी औलादें इस्लाम के खिलाफ गईं तो जहन्नम की सज़ा उनके लिए रक्खी हुई है. ये है मुसलमानों की चौ तरफ़ा घेरा बंदी
.


"अल्लाह ईमान वालों को जान कर ही रहेगा और मुनाफिकों भी."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(११)मुहम्मद अपने अल्लाह को भी अपनी ही तरह उम्मी गढ़े हुए हैं, कितनी मुताज़ाद बात है कुदरत के ख़िलाफ़ कि वह सच्चाई को ढूंढ रही है.

''कुफ्फर मुसलामानों से कहते हैं कि हमारी राह पर चलो, और तुम्हारे गुनाह हमारे जिम्मे, हालाँकि ये लोग इनके गुनाहों को ज़रा भी नहीं ले सकते, ये बिकुल झूट बक रहे हैं और ये लोग अपना गुनाह अपने ऊपर लादे हुए होंगे."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(१२)ये आयत उस वाकिए का रद्दे अमल है कि कोई शख्स मुसलमान हुवा था उसे दूसरे ने वापस पुराने दीन पर लाने में कामयाब हुवा, जब उसने इस बात कि तहरीरी शक्ल में लिख कर दिया कि अगर गुनाह हुवा तो उसके सर. मज़े की बात ये कि ज़मानत लेने वाले ने उससे कुछ रक़म भी ऐंठी. ऐसे गाऊदी हुवा करते थे सहबाए किरम .गुनाह और सवाब ?
आम मुसलमान उम्र भर इन दो भूतिए एहसास में डूबे रहते है, जब कि इंसान पर भूत इस बात का होना चाहिए कि उसका हिस और ज़मीर उस पर सवार हो.


"और हमने नूह को उनकी कौम की तरफ भेजा सो वह उनमें पचास बरस कम हज़ार साल रहे और कौम को समझाते रहे, इन को तूफ़ान ने आ दबाया और वह बड़े ज़ालिम लोग थे."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(१४)
अनपढ़ और गंवार मुहम्मदी अल्लाह पचास कम हज़ार हज़ार कहता है क्यूंकि वह नौ सौ पचास के हिन्दसे को नहीं कह पता. मुहम्मद का अल्लाह गलत बयानी कर रहा है. माजी बईद में आज के मुकाबिले में उम्रें कम ही हुवा करती थीं, ये बात साइंसी इन्केशाफ़ है, वैसे भी पहले ज़िदगी दुश्वार गुज़ार हुवा करती थी, ये हादसात का शिकार हो जाती थी. नूह का वक़्त आजसे ५००० साल पहले का है अगर अल्लाह की बात पर यकीन किया जाए तो नूह की तरह लम्बी उम्र पाने वाली उनकी छटवीं पुश्त आज दुनिया में कहीं न कहीं मौजूद होती. ऐसे ही हदीस में मुहम्मद एक जगह कहते हैं कि पहले इन्सान की लम्बाई साठ हाथ हुवा करती थी.


"और हमने आद और सुमूह को भी हलाक किया और ये हलाक होना तुमको उनके रहने के मकान से नज़र आ रहा है और शैतान ने उनके आमाल को उनकी नज़र में मुस्तःसिन कर रखा था और उनको राह से रोक रखा था और वह लोग होशियार थे. हमने कारून, फिरौन और हामान को भी हलाक किया और इनके पास मूसा खुली दलीलें लेकर आए थे, फिर ज़मीन पर इन्हों ने सरकशी की और भाग न सके. सो हमने हर एक को इसके गुनाह की सज़ा में पकड़ लिया. सो इनमें से बअज़ों पर तो हमने तुन्द हवा भेजी और इनमें से बअज़ों को हौलनाक आवाज़ ने आ दबाया और इनमें से बअज़ों को हमने में धँसा दिया और इनमे से बअज़ों को हमने डुबो दिया और अल्लाह ऐसा न था कि इन पर ज़ुल्म करता बल्कि यही लोग अपने ऊपर ज़ुल्म करते थे."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(३८-४०)ये है मुहम्मदी अल्लाह, अल्लाह हलाकुल्लाह जिसके सजदे नादान मुसलमान करते हैं, इसके गुर्गों के बहकावे में आकर तालिबान बन जाते हैं या हिजबुल्लाह के मुजाहेदीन जो अक्सर मुसलमानों का ही क़त्ले आम करते हैं। क्या अल्लाह ने मुहम्मद को हलाक़ नहीं किया? उनकी नस्लों को नेस्त नाबूद नहीं किया?

नादान मुसलामानों! जागो, तुम मुहम्मदी अल्लाह के गुमराहों में बे यारो मददगार पड़े हुए हो. तुमको ये कुरानी जेहालत कहीं का भी नहीं रखेगी. अपनी नस्लों पर रहेम खाओ. जंग जद्दाल, खून खराबा, हलाक़त और तबाही के सिवा कुरान में तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा.''जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा कोई और साज़गार तजवीज़ कर रखे हैं उन लोगों की मिसाल मकड़ी की सी मिसाल है जिसने एक घर बनाया, और सब जानते हैं सब घरों में बोदा घर मकड़ी का घर होता है. अगर वह जानते तो. अल्लाह सब कुछ जानता है जिसको वह लोग अल्लाह के सिवा सोच रहे हैं और वह ज़बरदस्त हिकमत वाला है और इन मिसालों को लोगों के लिए बयान करते हैं और इन मिसालों को इल्म वाले ही समझते हैं.''सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४२-४३)वाह वाह! अल्लाह के रसूल, कलाम आपका और बयान आपका. मकड़ी के इस कद्र मज़बूत और खूब सूरत जाल को कोई बेहिक्मत अल्लाह ही बोदा घर कह सकता है। उसके जाल को उसका घर समझे? रहती तो वह ज़मीन के अन्दर बिलों में. आपके समझ का जवाब नहीं. समझो और अपनी उम्मत को समझ दो कि मकड़ी के जाल सा बारीक धागा अगर स्टील का बने तो मकड़ी के जाल का मुकाबिला नहीं कर सकता. मामूली कीड़ा ज़बरदस्त दस्तकारी का मुजाहिरा करता है. आपकी तरह फूहड़ आयतों का नहीं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान 
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx

1 comment:

  1. जिसको खुदा गुमराह करे उसको कौन राह पर लावे

    ReplyDelete