Sunday 26 December 2010

सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का ही,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा


इस सूरह का नाम रोम इस लिए पड़ा कि फारस (ईरान) ने मुहम्मद काल में रोम को फतह कर लिया था, जिसके बारे में क़ुरआनी अल्लाह ने अपने कुरआन में पेशीन गोई की थी कि फारस का यह गलबा तीन से नौ सालों के अन्दर ख़त्म हो जाएगा और रोम फिरसे आज़ाद हो जाएगा, बस कि ऐसा हो भी गया. दर अस्ल बात ये थी कि रोमी ईसाई थे जो कि मुसलामानों के किताबी भाई हुए और फ़ारस वाले उस वक़्त काफ़िर थे, उस वक़्त कुफ्फर मक्का ने इस्लामियों को तअने दिए थे कि हम अहले कुफ्र, अहले किताब पर ग़ालिब हो गए. जब रोम फ़ारस के गलबे से नजात पा गए तो ये सूरह मुहम्मदी अल्लाह को सूझी.
इस वाक़िए के सिवा इस सूरह में और कुछ नहीं है. मुहम्मदी अल्लाह का शुक्र है कि इस सूरह में इब्राहीम, नूह, मूसा और ईसा अलिस-सलामान की दस्ताने नहीं हैं. सिर्फ क़यामत की धुरी पर सूरह घूम रही है. हर आलमी और फितरी सच्चाइयों को कुरआन अपनी ईजाद बतलाता है, जिस पर मुसलमानों का ईमान है . एक साहब ने मुझे टटोलने के लिए पूछा कि आप नमाज़ क्यूँ नहीं पढ़ते? मैं ने जवाब दिया कि इंसानियत ही मेरा दीन है. कहने लगे कि इंसानियत सिखलाई किसने/ उनका मतलब था " मुहम्मद" उम पर तरस खाते हुए मैं खामोश रहा, बात तो ज़ेहन में आई गिना दूं ईसा, गौतम महावीर और सुकरात बुकरात के नाम मगर मसलहतन चुप रहा.
सूरह रोम में भी सूरह क़सस की तरह मुहम्मद की झक नहीं है, इस सूरह का मुसन्निफ़ कोई और है और साहिबे क़लम है. इसने सलीके के साथ कुरआन सार पेश किया है
मुलाहिजा हो - - -"अहले रोम करीब के मौके पर मगलूब हो गए और वह अपने मगलूब होने के बाद अनक़रीब तीन साल से नौ साल के अन्दर ग़ालिब आ जौएँगे. पहले भी अख्तियार अल्लाह का था और पीछे भी और उस वक़्त मुसलमान अल्लाह की इस इमदाद से खुश होंगे."सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२-४)अब ये कोई तिलावत की चीज़ या बात है ? कि मुसलमान नियत बाँध कर इन बातों को नमाज़ों में दोहराते हैं.

"ये लोग ज़मीन पर चलते फिरते नहीं, जिसमें देखते भालते कि जो लोग इनसे पहले हो गुज़रे हैं, उन पर अंजाम क्या हुवा है? वह उन से कूवत में भी बढे चढ़े हुए थे और उन्हों ने ज़मीन को बोया जोता था और जितना इन्हों ने इस को आबाद कर रखा है, उससे ज़्यादा उन्हों ने इसको आबाद कर रखा था और उनके पास भी उनके पैगम्बर मुआज्ज़े लेकर आए थे.सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (९)मुहम्मद माजी के लोगों की मौतें अज़ाबे इलाही का अंजाम कहते हैं. अगर उन पर अज़ाब न होता तो शायद वह ज़िदा होते. आज के लोगों को समझा रहे हैं कि उनकी बात मानो जो कि अल्लाह की मर्ज़ी है, तो अज़ाब में नहीं पड़ोगे. इन ओछी बातों से लोग गुमराह हुए, मगर आज के लोग इन बातों में सवाब ढूढ़ते हैं तो ये अफ़सोस का मुक़ाम है.

"और जब रोज़े क़यामत कायम होगी, उस रोज़ मुजरिम लोग हैरत ज़दा हो जाएँगे और उनके शरीकों में कोई उनका सिफारशी न होगा और ये लोग अपने शरीकों से मुनकिर हो जाएगे. और जस रोज़ क़यामत कायम होगी उस रोज़ आदमी जुदा जुदा हो जाएँगे यानी जो लोग ईमान लाए थे और अच्छे काम किए थे, वह तो बाग़ में मसरूर होंगे और जिन्हों ने कुफ्र किया था और हमारी आयातों को और आखरत के पेश आने को झुटलाया था, वह अजाब में होंगे."सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (१२-१६)कयामत तो आप के मरते ही आप के खानदान पर आ गई थी मुहम्मद साहब!
आप कि छोटी बेगम आयशा और आप के दामाद में मशहूर जंग ए जमल हुई तो एक लाख ताजः ताजः मुसलमान हुए लोग मारे गए थे. आप के सभी खलीफा और सहाबा ए किराम आपसी रंजिश में एक दूसरे का क़त्ल कर रहे थे . बात कर्बला तक पहुंची तो आपका खानदान एक एक क़तरह पानी के लिए तड़प तड़प कर मरा . आपकी झूटी रिसालत के बाईस आपके खानदान का बच्चा बच्चा भूक और प्यास के साथ मारा गया. काश कि इस अंजाम तक आप ज़िन्दा होते और सच्चाइयों के आगे तौबा करते और सदाक़त का पैर पकड़ कर रहेम की भीक तलब करते. याद करते अपने जेहादी नअरे को कि खैबर में क़त्ले आम करने से पहले जो आपने दिया था
"खैबर बर्बाद हुवा! क्यूं कि हम जब किसी कौम पर नाज़िल होते हैं तो उसकी बर्बादी का सामान होता है."क़यामत पूरे अरब और आजम में आप के झूट की से फ़ैल चुकी है, आपसी झगड़ों से मुसलामानों पर आग ज्यादह बरसी, गैर मुस्लिम भी जंगी चपेट में आए मगर ख़सारे में रहे वह जिन्हों ने आप की ज़हरीली पैगम्बरी को तस्लीम किया. आपके बोए हुए पैगम्बरी के ज़हर को दुन्या की २०% आबादी काट रही है. मुसलमानों को आप के इस्लाम ने पस्मान्दः कौम बना दिया है. किसी कौम की आलमी ज़िल्लत से बढ़ कर दूसरी क़यामत और ज़िल्लत क्या होगी.


मुहम्मदी अल्लाह का कुदरत से मुतालिक़ जानकारी मुलाहिजा हो - - -

"वह जानदार चीजों को बेजान को निकाल लेता है ( यानि मुर्गी से अण्डा?) और बेजान चीजों से जानदार चीजों (यानि अंडे से मुर्गी?) से निकल लेता है और ज़मीन को इसके मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है और इसी से तुम लोग निकलते हो."सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (१९)यह आयत कुरआन में बार बार आती है जिसको कि कोई आम मुसलमान कुरआन का नमूना बना कर पेश नहीं करता, ओलिमा की तो छोड़िए कि इनका आल्लाह परिंदों के अण्डों को जानदार मानता और मानता है. कोई जाहिल कहलाना पसँद नहीं करता. मुहम्मद बार बार अपने इस वैज्ञानिक ज्ञान को को दोहराते रहे , सहाबाए इकराम और उनके खलीफाओं ने भी कभी न टोका कि या रसूल लिल्लाह अंडे जानदार होते हैं. इस बात से ये साबित है कि उनके गिर्द सब के सब जाहिल और उम्मी हुआ करते थे.
अभी तक इंसान अपनी मान के पेट से निकलता रहा है जिसे अल्लाह के रसूल भुइव फुडवा बना रहे हैं.
यही जेहालत इस्लाम मुसलामानों को बाँट रहा है.

"और उसी की निशानियों में ये है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियाँ बनाईं ताकि तुमको उनके पास आराम मिले और तुम मिया बीवी में मुहब्बत और हमदर्दी पैदा की. इसमें उन लोगों के लिए निशामियाँ हैं जो फिक्र से काम लेते हैं. और उसी की निशानियों में से ज़मीन और आसमान का बनाना है. और तुम्हारे लबो लहजे और नुक़तों का अलग अलग होना है. इसी में दानिश मंदी के लिए निशानियाँ हैं."सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२१-२२)मुहम्मदी अल्लाह कहता है तुम्हारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियां बनाईं? कुछ तर्जुमान ने लिखा कि तुम्हारे लिए तुम्हारी हम जिन्स बीवियां बनाईं. दोनों बातें एक ही है. मुहम्मदी अल्लाह चूँकि उम्मी है वह कहना चाहता है तुम्हारे लिए जिन्स ए मुख़ालिफ़ बीवियां बनाईं और उसमे लुत्फ़ डालकर जोड़ों में मुहब्बत पैदा की. मुहम्मद की ये लग्ज़िसें चीख चीख कर मुसलमानों को आगाह करती हैं कि कुरआन और कुछ भी नहीं, सिर्फ़ अनपढ़ मुहम्मद के कलाम के.
फिर सवाल ये उठता है कि कुदरत की इन बातों को कौन नहीं जनता था और कौन नहीं मानता था, उस वक़्त अरब की तारिख में बड़े बड़े दानिश्वर हुवा करते थे। इंसान तो इंसान, हैवान भी अपने जोड़े के लिए जान लेलेते हैं और जन दे देते हैं. तालिबानी जेहालत समझती है कि इन बातों को उनके नबी ने जानकर हमें बतलाया. जाहिलों की जमाअत समझती है कि इंसानों का रोज़ अव्वल रसूल की आमद के बाद से शुरू होता है और कुदरत के तमाम इन्केशाफात उनके रसूल ने किया है. उनको सुकरात बुकरात,गौतम, ईसा, कन्फ्यूसेस, ज़ेन, ज़र्तुर्ष्ट और महावीर कोई नज़र ही नहीं आता, जो मुहम्मद से पहले हो चुके है, अलावा लाल बुझक्कड़ के.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. बहुत खूब साहब, सच को क्या खूब सामने लाये हैं. शुक्रिया..

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  2. जिसको खुदा गुमराह करे उसको कौन राह पर लावे

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