Saturday 16 July 2011

सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा
पहली किस्त

एक हदीस मुलहिज़ा फरमाएँ - - -

इस्लाम के दूसरे सूत्राधार अली मौला से रवायत है कि

''एक ऊंटनी बद्र के जंगी माले-गनीमत(लूट)में मुझे मिली और एक रसूल ने तोह्फतन दी. इन दोनों को एक अंसार के सेहन में बाँध कर मैं सोंच रहा था कि इन पर अज़ख़ुर घास लाद कर लाया करूंगा और बेचूगा, इस तरह कुछ पैसा जमा कर के फातमा का वलीमा करूंगा जो कि अभी तक मुझ पर उधार था. इसी घर में हम्ज़ा बिन अब्दुल मतलब मुहम्मद के चचा शराब पी रहे थे, साथ में एक लौंडी ग़ज़ल गा रही थी जो कुछ इस तरह थी - - -


चल ऐ हम्ज़ा इन मोटे ऊंटों पे जा,

बंधे हैं सेहन में जो सब एक जा,

चला इनकी गर्दन पे जल्दी छुरा,

मिला इनको तू खून में और लुटा,

बना इनके टुकड़ों से उम्दा जो हों,

गज़क गोश्त का हो पका और भुना।



उसकी ग़ज़ल सुन कर हम्ज़ा ने तलवार उठाई और ऊटों की कोखें फाड़ दीं. अली यह मंज़र देख कर मुहम्मद के पास भागे हुए गए और जाकर शिकायत की, जहाँ ज़ैद बिन हार्सा भी मौजूद थे. तीनों अफराद जब हम्ज़ा के पास पहुंचे तो वह नशे में धुत्त था. उन सभों को देख कर गुस्से के आलम में लाल पीला हो रहा हो गया, बोला,

'' तुम लोग हो क्या? मेरे बाप दादों के गुलाम हो.''

यह सुन कर मुहम्मद उलटे पाँव वापस हो गए

(देखें हदीस ''मुस्लिम - - - किताबुल अशर्बता'' + बुखारी १५७)

यह मुहम्मद का बहुत निजी मामला था, एक तरफ दामाद, दूसरी तरफ खुदा खुदा करके हुवा, मुसलमान बहादुर चचा हम्ज़ा ? होशियार अल्लाह के खुद मुख़्तार रसूल को एक रास्ता सूझा,

दूसरे दिन ही अल्लाह की क़ुरआनी आयत नाज़िल करा दी कि शराब हराम हुई.

मदीने में मनादी करा दी गई कि अल्लाह ने शराब को हराम क़रार दे दिया है.

जाम ओ पैमाना तोड़ दिए गए, मटके और खुम पलट दिए गए,

शराबियों के लिए कोड़ों की सजाएं मुक़रर्र हुईं.

कल तक जो शराब लोगों की महबूब मशरूब थी, उस से वह महरूम कर दिए गए. यकीनन खुद मुहम्मद ने मयनोशी उसी दिन छोड़ी होगी क्यूं कि कई क़ुरआनी आयतें शराबियों की सी इल्लत की बू रखती हैं.

लोगों की तिजारत पर गाज गिरी होगी, मुहम्मद की बला से, उनका तो कौल थाकि सब से बेहतर तिजारत है जेहाद जिसमे लूट के माल से रातो रात माला माल हो जाओ.

गौर करें की मुहम्मद ने अपने दामाद अली के लिए लोगों को शराब जैसी नेमत से महरूम कर दिया. शराब ज़ेहन इंसानी के लिए नेमत ही नहीं दवा भी है, दवा को दवा की तरह लिया जाए न के अघोरियों की तरह. शराब जिस्म के तमाम आज़ा को संतुलित रखती है आज की साइंसी खोज में इसका बड़ा योगदान है. यह ज़ेहन के दरीचों को खोलती है जिसमे नए नए आयाम की आमद होती है. इसकी लम्स कुदरत की अन छुई परतें खोलती हैं. शराब इंसान को मंजिल पाने के लिए मुसलसल अंगड़ाइयां अता करती है.

आलमे इस्लाम की बद नसीबी है कि शराब की बे बरकती ने इसे कुंद जेहन, कौदम, और गाऊदी बना दिया है. इस्लाम तस्लीम करने के बाद कोई मुस्लिम बन्दा ऐसा नहीं हुवा जिस ने कि कोई नव ईजाद की हो. हमारे मुस्लिम समाज का असर हिन्दू समाज पर अच्छा खासा पड़ा है. इस समाज ने मुस्लिम समाज के रस्मो-रिवाज, खान पान, लिबासों, पोशाक, और तौर तरीकों को अपनाया और ऐसा नहीं कि सिर्फ हिन्दुओं ने ही अपनाया हो, मुसलामानों ने भी अपनाया। यूं कहें कि इस्लाम कुबूल करने के बाद भी अपने रस्मो रिवाज पर कायम रहे. मसलन दुल्हन का सुर्ख लिबास हो या जात बिरादरी. मगर सोमरस जो कि ऋग वेद मन्त्र का पवित्र उपहार है, हिदू समाज में हराम कैसे हो गया,

मोदी का गुजरात इसे क्यूं क़ुबूल किए हुए है?

गांधी बाबा इसके खिलाफ क्यूं सनके? यह

तो वाकई आबे हयात है.

किसी के लिए मीठा और चिकना हराम है तो किसी के लिए नमक और मिर्च. ज्यादा खाना नुकसान देह हो तो हराम हो जाता है और गरीब को कम खाना तो मजबूरी में हराम होता ही है.

यह हराम हलाल का कन्सेप्ट ही इस्लामी बेवकूफियों में से एक है.

हराम गिज़ा वह होती है जो मुफ्त और बगैर मशक्क़त की हो,

दूसरों का हक हो लूट पाट की हो.


मुसलमानों!

माले गनीमत बद तरीन हराम गिज़ा है.


आइए तीसरे पारे आले इमरान की बखिया उधेडी जाए - - -


"अलम"

"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयत (1)यह लफ्ज़ मोहमिल (यानी अर्थ शून्य) है जिसका मतलब अल्लाह ही जनता है. ऐसे हर्फों या लफ्ज़ों को कुरानी मंतिक़यों ने हुरूफे मुक़त्तेआत का नाम दिया है. यह सूरत के पहले आते हैं. यहाँ पर यह एक आयत यानी कोई बात, कोई पैगाम की हैसियत भी रखता है. इस अर्थ हीन शब्द के आगे + गल्लम लगा कर किसी अक्ल मंद ने इसे अल्लम गल्लम कर दिया, गोया इस का पूरा पूरा हक अदा कर दिया, अल्लम गल्लम. क़ुरआन का बेहतरीन नाम अल्लम गल्लम हो सकता है.

" अल्लाह तआला ऐसे हैं कि उन के सिवा कोई काबिल माबूद बनाने के नहीं और वह ज़िन्दा ओ जावेद है."

सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयत (२)

यहाँ पर मैं फिर आप को एक बार याद दिला दूँ कि कुरआन कलाम अल्लाह नहीं कलाम मुहम्मद है, जैसा कि वह अल्लाह के बारे में बतला रहे हैं, साथ साथ उसकी मुशतहरी भी कर रहे हैं. इस आयत में बेवकूफी कि इत्तेला है. अल्लाह अगर है तो क्या मुर्दा होगा ? मुस्लमान तो मुर्दा खुदाओं का दामन थाम कर भी अपनी नय्या पार लगा लेता है. यह अल्लाह के ज़िन्दा होने और सब कुछ संभालने की बात मुहम्मद ने पहले भी कही है आगे भी इसे बार बार दोहराते रहेंगे.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

5 comments:

  1. ketne sundar lekhate hai , dath dane padege

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  2. निसारुल जी ! सोमरस का उल्लेख ऋग्वेद में नहीं "अथर्ववेद" में है. यह हिमालयन बेल्ट में पायी जाने वाली एक वनौषधि है जो कि अब unidentified plants के अंतर्गत आती है. इसका रस ही सोमरस कहलाता है.कुछ वर्ष पूर्व वनस्पतिशास्त्रियों ने सोम बूटी की खोज की है पर वह अथर्व वेदोक्त सोम न होकर ephedra है. अद्भुत औषधीय गुणों के अतिरिक्त दुर्लभ और अत्यल्प मात्रा में पायी जाने के कारण सोम बूटी का महत्त्व अधिक था. शराब के लिए हमारे यहाँ मद्य शब्द प्रचलित था .....इस पर अनेकों अनुसंधान भी किये गए थे सुरा, वारुणी और सीधु आदि इसके प्रकार थे. इन सबके औषधीय प्रयोग ही शास्त्रसम्मत हुआ करते थे.

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  3. अब परेशानी यह है कि किताब में लिखी हुई बातों को कसौटी पर परखना चाहिये, लेकिन कोई ऐसा करना ही नहीं चाहता और बिना जांचे-परखे ही कोई काम करना नादानी है.

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  4. @ निसारुल ईमान जी.
    इसमें कोई दो राय नहीं की आप सबके लिए इन्साफ तलबगार इंसान हो. आपके ज्ञान कोष में बहुत कुछ है. किसी भी आस्था के गिरफ्त से बाहर आकर ही निष्पक्ष सोच के साथ कोई चर्चा की जा सकती है. आपका पोस्ट चिंतन मांगता है.
    भारतीय नागरिक जी के कथन से सहमत.

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