Thursday 14 July 2011

क़ुरआन सार

मेरी तहरीर में - - -




क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।




नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.





क़ुरआन सार


आठवीं आखिरी किस्त




* शराब और जुवा में बुराइयाँ हैं और अच्छइयां भी.


*खैर और खैरात में उतना ही खर्च करो जितना आसान हो.


* यतीमों के साथ मसलेहत की रिआयत रखना ज्यादा बेहतर है.


*काफिर औरतों के साथ शादी मत करो भले ही लौंडी के साथ कर लो.


*काफिर शौहर मत करो, उस से बेहतर गुलाम है.


*हैज़ एक गन्दी चीज़ है हैज़ के आलम में बीवियों से दूर रहो.


*मर्द का दर्जा औरत से बड़ा है. *सिर्फ दो बार तलाक़ दिया है तो बीवी को अपना लो चाहे छोड़ दो.


*तलाक के बाद बीवी को दी हुई चीजें नहीं लेनी चाहिएं, मगर आपसी समझौता हो तो वापसी जायज़ है. जिसे दे कर औरत अपनी जन छुडा ले.


*तीसरे तलाक़ के बाद बीवी हराम है.


*हलाला के अमल के बाद ही पहली बीवी जायज़ होगी.


*माएँ अपनी औलाद को दो साल तक दूध पिलाएं तब तक बाप इनका ख़याल रखें. ये काम दाइयों से भी कराया जा सकता है.


*एत्काफ़ में बीवियों के पास नहीं जाना चाहिए.


*बेवाओं को शौहर के मौत के बाद चार महीना दस दिन निकाह के लिए रुकना चाहिए. *बेवाओं को एक साल तक घर में पनाह देना चाहिए


*मुसलमानों को रमजान की शब् में जिमा हलाल हुवा.
वगैरह वगैरह सूरह कि खास बातें
,


इस के अलावः नाकाबिले कद्र बातें जो फुजूल कही जा सकती हैं भरी हुई हैं.


तमाम आलिमान को मोमिन का चैलेंज है.
मुसलमान आँख बंद कर के कहता है क़ुरआन में निजाम हयात (जीवन-विधान) है.


नमाज़ियो!


ये बात मुल्ला, मौलवी उसके सामने इतना दोहराते हैं कि वह सोंच भी नहीं सकता कि ये उसकी जिंदगी के साथ सब से बड़ा झूट है. ऊपर की बातों में आप तलाश कीजिए कि कौन सी इन बेहूदा बातों का आज की ज़िन्दगी से वास्ता है. इसी तरह इनकी हर हर बात में झूट का अंबार रहता है. इनसे नजात दिलाना हर मोमिन का क़स्द होना चाहिए .


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

3 comments:

  1. जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान जी ! इस महत्वपूर्ण लेखमाला का आद्योपांत वाचन किया. आपका सदप्रयास सराहनीय है . मैं आपकी भावना को भी समझ रहा हूँ ......आप जिस बात को लेकर चल रहे हैं उसे यदि सभी मुसलमान समझ लें तो सम्प्रदायगत झंझट ही समाप्त हो जाय. सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत के लोगों के लिए वे ही आदर्श व्यावहारिक और उपयोगी हैं जो यहीं विकसित हुए हैं न कि विदेशी धरती से आयातित. नमाज में प्रयुक्त भाषा आम भारतीय, अफ्रीकी या किसी मंगोलियन की समझ से परे है .....वह क्या इबादत कर रहा है उसे नहीं पता. भारत की धरती पर अनेकों महापुरुषों ने जन्म लिया है जिनके आदर्श हमारे लिए अनुकरणीय हैं ...इसके लिए विदेशियों का अनुकरण करने की क्या आवश्यकता ? ...यह बात लोगों को समझनी होगी. लोगों को अपना इतिहास भी समझना होगा ...उसे याद करना होगा ...उन्हें यह भी स्मरण करना होगा कि मात्र कुछ लोगों के अतिरिक्त भारत में रहने वाले शेष सभी मुस्लिम और ईसाई हिन्दुओं के ही वंशज हैं.......अन्ततः उन सभी के लिए भारत की धरती ..भारत के आदर्श ...भारत का अन्न ही श्रेयस्कर होगा. आपकी राष्ट्रीय भावनाओं और सत्यान्वेषण के पवित्र प्रयास के लिए एक बार पुनः साधुवाद ! समाज और राष्ट्र को जागृत करने का प्रयास करते रहें ...हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं ......

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  2. कौशलेन्द्र जी!

    आपका आभार.

    मुश्किल ये है कि मुस्लिम पाठक मेरे विचारों को पढने से डरता है कि इससे वह गुनाहगार हो जायगा. उसे अपने नारकीय जीवन से ज्यादह दोज़ख का खौफ रहता है, वर्ना सत्य से कौन मुंह मोड़ेगा.

    अगर आप बुरा न मानें तो मेरी राय है कि विचारों को लौकिक और वैश्विक सीमा तक ले जाइए . सच्चाई भारत, अरब और मंगोलिया तक सीमित नहीं है.

    महा पुरुष पैदा करने के लिए हमारी धरती आज़ाद है. हम को ऐतिहासिकता को आधार बना क्रर स्वयं सीमित हो जाते हैं . सत्य को सत्यता का ही आधार मानें.

    मोमिन

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