Tuesday 7 November 2017

Dharm Darshan 109


वर्ग विशेष 
मुसलमानों को वर्ग विशेष का दर्जा हिन्दू समाज ने कब से और क्यूँ दे रख्खा है, यह खोज का विषय है. 
उस समय मुस्लिम प्रतिष्ठित अपने धर्म के कारण ही रहे होंगे जिसे कि बहु संख्यक समाज को भी कहना पड़ता था कि वह हम से बरतर हैं. 
इस बात को इस प्रचलित विशवास से भी देखा जा सकता है कि मस्जिद में नमाजियों से नमाज़ के बाद हिन्दू औरतें अपने बच्चों को गोदों में लिए नमाजियों से फूंक डलवाने के लिए लाइन से खड़ी रहती है. पचास साल पहले मैं इस बात का गवाह हूँ, अब माहौल बदला होगा पता नहीं . 
इस तरह के बहुत से विश्वास और सुलूक मुसलमानों के हैं जो इसे वर्ग विशेष बनाते है. 
इस्लामी नज़रिए की निराकार कोई एक ताक़त जिसे अल्लाह कहा जाता है, साकार मूर्तियों और देवों की भीड़ पर ग़ालिब हो गई, जिसे अब बाक़ी हिन्दू भी जाने अनजाने मानने लगे है. 
सब इंसान अल्लाह के बन्दे समान दर्जा रखते है. ज़ात-पात, छुवा-छूत से मुसलमान परे हैं यह बात अलग है कि हिन्दू समाज के असर में थोड़े बहुत हैं.
कोई बेहतर न कोई मेहतर. 
दुन्या की आधी आबादी यानी स्त्री का दर्जा मुस्लिम समाज में कहीं बेहतर है बनिस्बत हिन्दू समाज के.
विधवा और अबला को यह समाज पहले अपनाता है.
अपनी माँ बहेन बेटियों को आश्रम के हवाले नहीं करता. 
यह बात भी सच है कि क़ुरान एक मर्द की गवाही की जगह दो औरतों की गवाही चाहता है जब कि हिन्दू धर्म ग्रन्थों में औरतों को कोई मकाम ही नहीं है.
 मुसलमानों की ज़िन्दगी में हराम और हलाल का बड़ा दख्ल़ है जिसका हिन्दू समाज को ज्ञान ही नहीं. 
इंसान का हर नवाला हराम और हलाल के पैमाने से तुला हुवा होता है, 
खुराक ही नहीं, हर अमल हराम और हलाल की राह से गुज़रता है. 
शराब और जुए से निस्बतन दूर. 
मांसाहार भी इसकी माक़ूलियत है.
हिन्दू समाज मुसलमानों को वर्ग विशेष इस लिए कहता है कि वह इन हकीकतों को देखता है, मगर अपने समाज की जंजीरों में जकड़ा हुवा है.
इसके बावजूद आधा अखंड भारत इस्लाम के शरण में चला गया.

मुसलमान इनको ग़ैर मुस्लिम कहता है. ग़ैर अर्थात पराया. गोया हिन्दू इनके लिए पराए होते हैं. सच तो यह है कि मुसलमान ग़ैर को अपनाता है और हिन्दू अपनों को वहिस्कृत करता है.
इन विरोध भाषी प्रचलन के साथ लगभग एक हज़ार साल गुज़र गए. 
और यह अब भी प्रचलित है. इसके असर में भारत आज भी प्रभावित है, 
किसी दबाव के चलते कौमी स्तर पर धमकियां आया करती हैं कि अगर हमारी बात न मानी गई तो हम इस्लाम कुबूल कर लेंगे. 
कोई वर्ग विशेष नाम का प्राणी नहीं जो कभी धमकाए कि वह हिन्दू धर्म स्वीकार कर लेगा . 
हर रोज़ कोई न कोई हिन्दू इस्द्लाम को कुबूल करता हुवा देखा जा सकता है मगर पचास वर्ष की अपनी व्यसक आयु में मैंने सिर्फ एक बार पढ़ा कि कोई मुस्लिम हिन्दू बन कर सुमन नाम रख्खा है.
मैं हर धर्म और मज़हब को दुन्या की बद तरीन वजूद मानता हूँ 
वह चाहे इस्लाम हो या दूसरा कोई. 
मगर जो देख रहा हूँ वह लिख रहा हूँ.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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