मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह लुकमान ३१-२१ वां परा
कहते हैं कि हकीम लुक़मान खेतों में, बागों और जंगलों में सैर करने जाते तो पौदों और पेड़ उनको आवाज़ देकर बुलाते कि हकीम साहब मैं फलाँ बीमारी का इलाज हूँ . और यह बात भी मशहूर है कि अल्लाह मियाँ ने उनको पैगम्बरी की पेश काश की थी जिसे उन्हों ने ठुकरा दिया था कि मुझे हिकमत पसन्द है. ये तो खैर किंवदंतियाँ हुईं. हकीम साहब आला ज़र्फ़ इंसान रहे होंगे और समझ दार भी, साथ साथ मेहनत कश और हलाल खोर भी. बस यूँ समजें कि आज के परिवेश में एक सच्चा डाक्टर जो इन कुकुरमुत्तों की औलादों बाबा, स्वामी, पीर, गुरू और योगी वगैरह से महान होता है, हकीम साहब ने लाखों इंसानी ज़िंदगियाँ बचाईं और उनके नुस्खे यूनानी इलाज के बुनियाद बने हुए हैं. पैगम्बर ने लाखों जिंदगियों को मौत के घाट उतरा और उनके मज़हब मुसलसल इंसानियत का खून किए जा रहे हैं.
सूरह में देखें कि मुहम्मदी अल्लाह ने उस अज़ीम हस्ती को उल्लू का पट्ठा बनाए हुए है. मुहम्मद जिस क़दर मूसा ईसा को जानते थे उतना ही लुकमान हकीम को और ठोंक दी एह सूरह उनके नाम की भी." आलम"
सूरह में देखें कि मुहम्मदी अल्लाह ने उस अज़ीम हस्ती को उल्लू का पट्ठा बनाए हुए है. मुहम्मद जिस क़दर मूसा ईसा को जानते थे उतना ही लुकमान हकीम को और ठोंक दी एह सूरह उनके नाम की भी." आलम"
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत (१)मुहम्मदी छू मंतर. मतलब अल्लाह जाने.
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ परा आयत(२-४)वाजेह हो कि मुहम्मदी अल्लाह की नज़र में नेक कार नमाज़, ज़कात और आखरत पर यकीन रखना ही है जोकि दर असल कोई कार ही नहीं है. नेक कार है हक हलाल की रोज़ी, खून पसीना बहा कार कमाई गई रोटी, इनसे परवरिश पाया हुवा परिवार, इस कमाई से की गई मदद. अल्लाह के बन्दों के लिए रोज़ी के ज़राए पैदा करना. धरती को सजा संवार कर इससे खाद्य निकालना, सनअत क़ायम करना.
कुरान अगर पुर हिकमत किताब होती तो मुसलमान हिकमत लगा कर बहुत सी ईजादों के मूजिद होते. कोई ईजाद इन नमाजियों ने नहीं की.
कुरान अगर पुर हिकमत किताब होती तो मुसलमान हिकमत लगा कर बहुत सी ईजादों के मूजिद होते. कोई ईजाद इन नमाजियों ने नहीं की.
अफ्रीका के क़बीलों में जहाँ अभी तालीम नहीं पहुँची ऐसी आयतों पर अक़ीदा बंधे हुए हैं जब कि मुसलमान योरोप में भी रकार नहीं बदले उनका अकीदा भी यही है कि अल्लाह ने आसमानों की छतें बगैर ख़म्बे के बनाए हुए है और ज़मीन में पहाड़ों के खूँटे गाड़ कार हमें महफूज़ किए हुए है.
मुहम्मद अल्लाह की बखान कभी खुद करते हैं और कभी खुद अल्लाह बन कर बोलने लगते हैं. गौर करें कि कहते हैं "अल्लाह ने आसमान को - - - " फिर कहते हैं " हम ने आसमान से पानी बरसाया- - - "इसे मुसलमान अल्लाह का कलाम मानते हैं, गोया मुहम्मद को जुज़वी तौर पर अल्लाह मानते हैं. ओलिमा इस पर गढ़ी हुई दलील पेश करते हैं कि अल्लाह कभी खुद अपने मुँह से बात करता है तो कभी मुहम्मद के मुँह से. ओलिमा सारी हकीक़त जानते हैं और ये भी जानते हैं कि इनको इनका अल्लाह ग़ारत नहीं कार सकता, क्यूंकि अल्लाह वह भी मुहम्मदी अल्लाह हवाई बुत है जैसे मुशरिकों के माटी के बुत होते हैं.
बन्दा नाशुक्री करता रहे और अल्लाह खूबियाँ बटोरता रहे? है न मुहम्मद की उम्मियत का असर.
ज़ुल्म वही इंसानी अमल है जिसके करने से किसी को जानी नुक़सान हो रहा हो, या फिर ज़ेहनी नुक़सान के इमकान हों, या तो माली नुकसान पहुँचाना हो. शिर्क करने से कौन घायल होता है? किसको ज़ेहनी अज़ीयत होती है या फिर किसकी जेब कटती है? आम मुसलमान कुफ्र और शिर्क को ज़ुल्म मानता है क्यूंकि कुरआन बार बार इस बात को दोहराता है. कुरान ने अलफ़ाज़ के मानी बदल रक्खे हैं.
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