Tuesday 9 August 2011

निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं।
निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा पाँचवीं किस्त


हलाकू के समय में अरब दुन्या का दमिश्क शहर इस्लामिक माले गनीमत से खूब फल फूल रहा था. ओलिमाए दीन (धर्म गुरू)झूट का अंबार किताबों की शक्ल में खड़ा कर रहे थे. हलाकू बिजली की तरह दमिश्क पर टूटा, लूट पाट के बाद इन ओलिमाओं की खबर ली, सब को इकठ्ठा किया और पूछा यह किताबें किस काम आती हैं?

जवाब था पढने के। फिर पूछा -

सब कितनी लिखी गईं?

जवाब- साठ हज़ार ।

सवाल - - साठ हज़ार पढने वाले ? ? फिर साठ हज़ार और लिखी जाएंगी ???। इस तरह यह बढती ही जाएंगी.

फिर उसने पूछा तुम लोग और क्या करते हो?

ओलिमा बोले हम लोग आलिम हैं हमारा यही काम है।

हलाकू को हलाक़त का जलाल आ गया । हुक्म हुवा कि इन किताबों को तुम लोग खाओ.

ओलिमा बोले हुज़ूर यह खाने की चीज़ थोढ़े ही है।

हलाकू बोला यह किसी काम की चीज़ नहीं है, और न ही तुम किसी कम की चीज़ हो। हलाकू के सिपाहिओं ने उसके इशारे पर दमिश्क की लाइब्रेरी में आग लगा दी और सभी ओलिमा को मौत के घाट उतर दिया. आज भी इस्लामिक और तमाम धार्मिक लाइब्रेरी को आग के हवाले कर देने की ज़रुरत है.क़ज़ज़ाक़ लुटेरे और वहशी अपनी वहशत में कुछ अच्छा भी कर गए.

हलाकू का ही पोता चंगेज़ खान जिसने इस्लाम को क़ज़ज़ाक़ की परम्परा में अपनाया।

मुसलमान होने के बाद उसने दो मुल्लाओं को नौकरी पर रख लिया कि वह समय समय पर उसकी रहनुमाई किया करें कि हमारी शर्तों पर इस्लाम क्या कहता है - - -

उनमें एक थे बड़े मुल्ला और दुसरे छोटे मुल्ला, दोनों एक दुसरे के छुपे दुश्मन।

एक दिन अचनाक चंगेज़ कि बूढी माँ मर गई। बड़े मुल्ला इस्लामिक तौर तरीके बतलाने के लिए तलब किए गए, बाक़ी मंगोली कबीलाई एतबार से जो होता है वह होगा, उस से इस्लाम का कोई लेना देना नहीं.

माँ के साथ साथ उसके तमाम नौकर चाकर, साजो सामान, कुछ दिनों का खाना पीना दफन करना तय हवा। मौक़ा मुनासिब था कि बड़े मुल्ला छोटे को इसी बहाने निपटा दें.

चंगेज़ को राय दिया कि हुज़ूर कब्र में मुनकिर नकीर मुर्दे को ज़िदा करके सवाल जवाब के लिए आते है, एक मुल्ला की वहां ज़रुरत पड़ेगी, अम्माँ बेचारी कहाँ जवाब दे पाएगी ? बेहतर है कि छोटे मुल्ला को इन के हमराह कर दें। वह बहुत काबिल भी है.

चंगेज़ को बात मुनासिब लगी और हुक्म हुवा कि छोटे मुल्ला को अम्माँ के साथ दफ़न कर दिया जाए। हुक्म सुन कर छोटे मुल्ला की जान निकल गई कि यह कारस्तानी बड़े की है. भाग कर चंगेज़ के पास गया और बोला यह क्या नादानी कर रहे हैं आप?.

आप ने सुना नहीं कि बड़ा होकर भी उसने मेरी तारीफ की। मैं यकीनन उस से ज्यादा काबिल हूँ.आप मुझको अपने लिए बचा के क्यूं नहीं रखते, आप के सर लाखों के खूनों का गुनाह है मैं बखूबी मुनकिर नकीर से निम्टूगा, अम्माँ के लिए इस बूढ़े मुल्ला को भेज दें,ये मुनासिब होगा.

चंगेज़ को बात समझ में आ गई और बड़े मुल्ला जी बुढिया के साथ दफ़न कर दिए गए।

क़ज़ज़ाक़ों का क़ज़ज़ाकिस्तान इस्लाम के असर में आकर एक इस्लामी मुल्क बन गया था।७९ साल तक रूस की लामजहबयत ने उसे मुसलमान से इंसान बनाया फिर वह आज़ाद हुए.

आज़ाद क़ज़ज़ाकिस्तान के सामने मुस्लिम मुमालिक ने फिर इस्लामी लानत के टुकड़े फेंके जिसे उस जगी हुई कौम ने ठुकरा दिया।चंगेज़ का पोता तैमूर लंग हुवा जिसकी ज़ुल्म की कहानी दिल्ली कभी नहीं भूलेगी। तैमूर का पोता बाबर, बाबर के पोते दर पोते बहादुर शाह ज़फर और उनकी पोती आज कोलकोता की गली में चाय कि फुटपथी दूकान पर झूटी प्यालियाँ धोती है.


अब अल्लाह की २+२+५ की बातों पर आओ और मुसलमान बने रहो या फिर आँखें खोलो और बहादुर और ईमान दार मोमिन बन कर जीने का अहेद करो । मोमिन जिसका कि इस्लाम ने इस्लामी करण करके मुस्लिम कर दिया है और अपने झूट को सच का जामा पहना दिया


" यह तो कभी न हो सकेगा कि सब बीवियों में बराबरी रखो, तुम्हारा कितना भी दिल चाहे।"

सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (129)

यह कुरानी आयत है अपनी ही पहली आयात के मुकाबले में जिसमें अल्लाह कहता है दो दो तीन तीन चार चार बीवियां कर सकते हो मगर मसावी सुलूक और हुकूक की शर्त है, और अब अपनी बात काट रहा है,

कुरानी कठमुल्ले मुहम्मदी अल्लाह की इस कमजोरी का फायदा यूँ उठाते है की अल्लाह ये भी तो कहता है।

" ऐ ईमान वालो! इंसाफ पर खूब कायम रहने वाले और अल्लाह के लिए गवाही देने वाले रहो।"

सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (135)

मुसलमानों सोचो तुम्हारा अल्लाह इतना कमज़ोर की बन्दों कि गवाही चाहता है? अगर तुम पीछे हटे तो वोह मुक़दमा हार जाएगा। उस झूठे और कमज़ोर अल्लाह को हार जाने दो। ताक़त वर जीती जागती क़ुदरत तुम्हारा इन्तेज़ार अपनी सदाक़त की बाहें फैलाए हुए कर रही है।


" जब एहकामे इलाही के साथ इस्तेह्ज़ा (मज़ाक) होता हुवा सुनो तो उन लोगों के पास मत बैठो - - - इस हालत में तुम भी उन जैसे हो जाओगे।''

सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (140)

मुहम्मद की उम्मियत में बला की पुख्तगी थी, अपनी जेहालत पर ही उनका ईमान था जिसमें वह आज तक कामयाब हैं। जब तक जेहालत कायम रहेगी मुहम्मदी इसलाम कायम रहेगा। इस आयात में यही हिदायत है कि तालीमी रौशनी में इस्लामी जेहालत का मज़ाक बनेगा।

मुसलमानों को हिदायत दी जाती है कि उस में बैठो ही नहीं. वैसे भी मुल्लाजी के लिए दुम दबा कर भागने के सिवा कोई रास्ता नहीं रह जाता जब "ज़मीन नारंगी की तरह गोल और घूमती हुई दिखती है, रोटी की तरह चिपटी और कायम नहीं है."


एहकामे इलाही में ज़्यादा तर इस्तेहज़ा के सिवा है क्या? इस में एक से एक हिमाक़तें दरपेश आती हैं। इन के लिए जेहनी मैदान की बारीकियों में जेहद की जमा जेहाद के काबिल तो कहीं पर क़दम ज़माने की जगह मिलती नहीं आप की उम्मत को.अक्सर अहले रीश नमाज़ के बहाने खिसक लेते हैं जब देखते हैं कि इल्मी, अकली, या फितरी बहस होने लगी.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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