Saturday 6 August 2011

सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह निसाँअ ४ चौथा पारातीसरी किस्त


लोहे को जितना गरमा गरमा कर पीटा जाय वह उतना ही ठोस हो जाता है। इसी तरह चीन की दीवार की बुन्यादों की ठोस होने के लिए उसकी खूब पिटाई की गई है, लाखों इंसानी शरीर और रूहें उसके शाशक के धुर्मुट तले दफ़न हैं. ठीक इसी तरह मुसलमानों के पूर्वजों की पिटाई इस्लाम ने इस अंदाज़ से की है कि उनके नस्लें अंधी, बहरी और गूंगी पैदा हो रही हैं.(सुम्मुम बुक्मुम उम्युन, फहुम ला युर्जून) इन्हें लाख समझाओ यह समझेगे नहीं.मैं कुरआन में अल्लाह की कही हुई बात ही लिख रह हूँ जो कि न उनके हक में है न इंसानियत के हक में मगर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं, वजेह वह सदियों से पीट पीट कर मुसलमान बनाए जा रहे है, आज भी खौफ ज़दा हैं कि दिल दिमाग और ज़बान खोलेंगे तो पिट जाएँगे, कोई यार मददगार न होगा.

यारो! तुम मेरा ब्लॉग तो पढो, कोई नहीं जान पाएगा कि तुमने ब्लॉग पढ़ा,फिर अगर मैं हक बजानिब हूँ तो पसंद का बटन दबा दो, इसे भी कोई न जान पाएगा और अगर अच्छा न लगे तो तौबा कर लो,तुम्हारा अल्लाह तुमको मुआफ करने वाला है।

अली के नाम से एक कौल शिया आलिमो ने ईजाद किया है

''यह मत देखो कि किसने कहा है, यह देखो की क्या कहा है.''

मैं तुम्हारा असली शुभ चितक हूँ, मुझे समझने की कोशिश करो.

" फिर जब उन पर जेहाद करना फ़र्ज़ कर दिया गया तो क़िस्सा क्या हुआ कि उन में से बअज़् आदमी लोगों से ऐसा डरने लगे जैसे कोई अल्लाह से डरता हो, बल्कि इस भी ज़्यादह डरना और कहने लगे ए हमारे परवर दीगर ! आप ने मुझ पर जेहाद क्यूँ फ़र्ज़ फरमा दिया? हम को और थोड़ी मुद्दत देदी होती ----"

सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (77)

आयात गवाह है कि मुहम्मद को लोग डर के मारे "ऐ मेरे परवर दिगर" कहते और वह उनको इस बात से मना भी न करते बल्कि खुश होते जैसा की कुरानी तहरीर से ज़ाहिर है। हकीक़त भी है क़ुरआन में कई ऐसे इशारे मिलते हैं कि अल्लाह के रसूल से वोह अल्लाह नज़र आते हैं. खैर - - -

खुदा का बेटा हो चुका है, ईश्वर के अवतार हो चुके है तो अल्लाह का डाकिया होना कोई बड़ा झूट नहीं है। मुहम्मद जंगें, बशक्ले हमला लोगों पर मुसल्लत करते थे जिस से लोगों का अमन ओ चैन गारत था। उनको अपनी जान ही नहीं माल भी लगाना पड़ता था. हमलों की कामयाबी पर लूटा गया माले गनीमत का पांचवां हिस्सा उनका होता. जंग के लिए साज़ ओ सामान ज़कात के तौर पर उगाही मुसलमानों से होती. उस दौर में इसलाम मज़हब के बजाए गंदी सियासत बन चुका था. अज़ीज़ ओ अकारिब में नज़रया के बिना पर आपस में मिलने जुलने पर पाबंदी लगा दी गई थी। तफ़रक़ा नफ़रत में बदलता गया.

बड़ा हादसती दौर था. भाई भाई का दुश्मन बन गया था. रिश्ते दारों में नफ़रत के बीज ऐसे पनप गए थे कि एक दूसरे को बिना मुतव्वत क़त्ल करने पर आमादा रहते, इंसानी समाज पर अल्लाह के हुक्म ने अज़ाब नाजिल कर रखा था. नतीजतन मुहम्मद के मरते ही दो जंगें मुसलमानों ने आपस में ऐसी लड़ीं कि दो लाख मुसलमानो ने एक दूसरे को काट डाला, गलिबन ये कहते हुए कि इस इस्लामी अल्लाह को तूने पहले तसलीम किया - - -

नहीं पहले तेरे बाप ने - -

" ऐ इंसान! तुझ को कोई खुश हाली पेश आती है, वोह महेज़ अल्लाह तअला की जानिब से है और कोई बद हाली पेश आवे, वोह तेरी तरफ़ से है और हम ने आप को पैगम्बर तमाम लोगों की तरफ़ से बना कर भेजा है और अल्लाह गवाह काफ़ी है."

सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (79)

यह मोहम्मदी अल्लाह की ब्लेक मेलिंग है। अवाम को बेवकूफ बना रहा है. आज की जन्नत नुमा दुनिया, जदीद तरीन शहरों में बसने वाली आबादियाँ, इंसानी काविशों का नतीजा हैं, अल्लाह मियां की रचना नहीं.

अफ्रीका में बसने वाले भूके नंगे लोग कबीलाई खुदाओं और इस्लामी अल्लाह की रहमतों के शिकार हैं.

आप जनाब पैगम्बर हैं, इसका गवाह अल्लाह है, और अल्लाह का गवाह कौन है?

और आप ?

बे वकूफ मुसलमानों आखें खोलो।

" पस की आप अल्लाह की राह में कत्ताल कीजिए. आप को बजुज़ आप के ज़ाती फेल के कोई हुक्म नहीं और मुसलमानों को प्रेरणा दीजिए . अल्लाह से उम्मीद है कि काफ़िरों के ज़ोर जंग को रोक देंगे और अल्लाह ताला ज़ोर जंग में ज़्यादा शदीद हैं और सख्त सज़ा देते हैं।"

सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (84)

कैसी खतरनाक आयात हुवा करती थी कभी ये गैर मुस्स्लिमो के लिए और आज खुद मुसलामानों के लिए ये खतरनाक ही नहीं, शर्मनाक भी बन चुकी है जिसको वह ढकता फिर रहा है।

मुहम्मद ने इंसानी फितरत की बद तरीन शक्ल नफ़रत को बढ़ावा देकर एक राहे हयात बनाई थी जिसका नाम रखा इसलाम. उसका अंजाम कभी सोचा भी नहीं, क्यूंकि वोह सच्चाई से कोसों दूर थे. यह सच है कि उनके कबीले कुरैश की सरदारी की आरजू थी जैसे मूसा को बनी इस्राईल की बरतरी की, और ब्रह्मा को, ब्रह्मणों की श्रेष्टता की.

इसके बाद उम्मत यानी जनता जनार्दन कोई भी हो, जहन्नम में जाए. आँख खोल कर देखा जा सकता है, सऊदी अरब मुहम्मद की अरब क़ौम कि आराम से ऐशो आराइश में गुज़र कर रही है और प्राचीन बुद्धिष्ट अफगानी दुन्या तालिबानी बनी हुई है, सिंध और पंजाब के हिन्दू अल्कएदी बन चुके हैं, हिदुस्तान के बीस करोड़ इन्सान मुफ़्त में साहिबे ईमान (खोखले आस्था वान) बने फिर रहे है, दे दो पचास पचास हज़ार रुपया तो ईमान घोल कर पी जाएँ.

सब के सब गुमराह। होशियार मुहम्मद की कामयाबी है यह, अगर कामयाबी इसी को कहते हैं।
 
''क्या तुम लोग इस का इरादा रखते हो कि ऐसे लोगों को हिदायत करो जिस को अल्लाह ने गुमराही में डाल रक्खा है और जिस को अल्लाह ताला गुमराही में डाल दे उसके लिए कोई सबील नहीं।"सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (84)गोया मुहम्मदी अल्लाह शैतानी काम भी करता है, अपने बन्दों को गुमराह करता है. मुहम्माद परले दर्जे के उम्मी ही नहीं अपने अल्लाह के नादाँ दोस्त भी हैं, जो तारीफ में उसको शैतान तक दर्जा देते हैं. उनसे ज्यादा उनकी उम्मत, जो उनकी बातों को मुहाविरा बना कर दोहराती हो कि " अल्लाह जिसको गुमराह करे, उसको कौन राह पर ला सकता है"?



" वह इस तमन्ना में हैं कि जैसे वोह काफ़िर हैं, वैसे तुम भी काफ़िर बन जाओ, जिस से तुम और वोह सब एक तरह के हो जाओ। सो इन में से किसी को दोस्त मत बनाना, जब तक कि अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और अगर वोह रू गरदनी करें तो उन को पकडो और क़त्ल कर दो और न किसी को अपना दोस्त बनाओ न मददगार"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (89)कितना जालिम तबा था अल्लाह का वह खुद साख्ता रसूल? बड़े शर्म की बात है कि आज हम उसकी उम्मत बने बैठे हैं. सोचें कि एक शख्स रोज़ी की तलाश में घर से निकला है, उसके छोटे छोटे बाल बच्चे और बूढे माँ बाप उसके हाथ में लटकती रिज्क़ की पोटली का इन्तेज़ार कर रहे हैं और इसको मुहम्मद के दीवाने जहाँ पाते हैं क़त्ल कर देते हैं?

एक आम और गैर जानिबदार की ज़िन्दगी किस क़दर मुहाल कर दिया था मुहम्मद की दीवानगी ने. बेशर्म और ज़मीर फरोश ओलिमा उल्टी कलमें घिस घिस कर उस मुज्रिमे इंसानियत को मुह्सिने इंसानियत बनाए हुए हैं.

यह क़ुरआन उसके बेरहमाना कारगुजारियों का गवाह है और शैतान ओलिमा इसे मुसलमानों को उल्टा पढा रहे हैं. हो सकता है कुछ धर्म इंसानों को आपस में प्यार मुहब्बत से रहना सिखलाते हों मगर उसमें इसलाम हरगिज़ नहीं हो सकता.

मुहम्मद
तो उन लोगों को भी क़त्ल कर देने का हुक्म देते हैं जो अपने मुस्लमान और काफिर दोनों रिश्तेदारों को निभाना चाहे.
आज तमाम दुन्या के हर मुल्क और हर क़ौम, यहाँ तक कि कुरानी मुस्लमान भी इस्लामी दहशत गर्दी से परेशान हैं. इंसानियत की तालीम से नाबलाद, कुरानी तालीम से लबरेज़ अल्कएदा और तालिबानी तंजीमों के नव जवान अल्लाह की राह में तमाम इंसानी क़द्रों पैरों तले रौंद सकते हैं, इर्तेकई जीनों को तह ओ बाला कर सकते हैं। सदियों से फली फूली तहजीब को कुचल सकते हैं. हजारों सालों की काविशों से इन्सान ने जो तरक्की की मीनार चुनी है, उसे वोह पल झपकते मिस्मार कर सकते हैं। इनके लिए इस ज़मीन पर खोने के लिए कुछ भी नहीं है एक नाकिस सर के सिवा, जिसके बदले में ऊपर उजरे अजीम है। इनके लिए यहाँ पाने के लिए भी कुछ नहीं है सिवाए इस के की हर सर इनके नाकिस इसलाम को कुबूल करके और इनके अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद के आगे सजदे में नमाज़ के वास्ते झुक जाए। इसके एवाज़ में भी इनको ऊपर जन्नतुल फिरदौस धरी हुई है, पुर अमन चमन में तिनके तिनके से सिरजे हुए आशियाने को इन का तूफ़ान पल भर में पामाल कर देता है।




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. bhartiya naagrik7 August 2011 at 10:14

    kya khoob baat kahi hai. mere muslim sathiyo ise padho aur samjho..

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