Friday 26 August 2011

अलमायदा 5 सातवाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह मायदा -5  
चौथी किस्त

अन्ना का गन्ना

अन्ना हज़ारे की नियत शुद्ध नहीं है, न ही वह मकूलियत की परिभाषा ही समझते हैं. उनको ग़लत फ़हमी हो गई है कि वह गाँधी नंबर २ बन सकते है और इस हठ धर्मी की मौत को ख़रीद कर महात्मा बन सकते हैं. उन्हों ने जनता को जगाया और एक दिशा दी, पहली किस्त में यही काफ़ी है.
अब वह खा पीकर दूसरी किस्त की तय्यारी करें और उसी जनता के दरवाजे खटखटाएँ जो आज इन पर जान छिड़क रही है, उससे कहें कि वह चरित्र वान बने, अपने जीवन में सच्चा ईमान घोले और प्रण करे कि वह अपना काम बनाने के लिए रिश्वत न देगी. जो हकदार हो पहले उसका काम हो.
अफ़सोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि हम भारतीय सबसे पहले चरित्र हीन है, पैसा देकर और पैसा लेकर हम किसी हद तक गिर सकते हैं.




''यहूदियों और ईसाइयों को दोस्त मत बनाना , वह एक दूसरे के दोस्त हैं और तुम में से जो शख्स उन से दोस्ती करेगा, बेशक वोह इन्हीं में से होगा."

सूर ह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (51)

कोई सच्चा रहनुमा कहीं इंसानों को इंसानों से इस तरह बुग्ज़ और नफरत की बातें सिखलाता है? मुहम्मद को अपना पैगम्बर मान कर वैसे भी हम तीन चौथाई दुन्या को दुश्मन बनाए हुए हैं. दोस्ती भी कोई अक़ीदत है ? दोस्ती तो हुस्ने एख्लाक पर मुनहसर करती है न कि हिदू मुस्लमान और ईसाई पर.


" ऐ ईमान वालो! जो शख्स तुम में से अपने दीन से फिर जाए तो अल्लाह बहुत जल्द ऐसी क़ौम पैदा कर देगा कि जिस को इस से मोहब्बत होगी और उसको इस से मुहब्बत होगी. मेहरबान होंगे वोह मुसलमानों पर और तेज़ होंगे काफिरों पर. जेहाद करने वाले होंगे अल्लाह की रह पर."

सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (54)

कितना कमज़ोर है मुहम्मद का गढा अल्लाह जो अपनी ही कमजोरी से परेशान है. अफ़सोस मुस्लमान ऐसे कमज़ोर अल्लाह के जाल में फंसे हुए हैं जो खुद जाल बुनते वक़्त घबरा रहा था.


तारीखी पस मंज़र में अल्लाह कहता है - - -

" जिन्हों ने तुम्हारे दीन को हंसी खेल बना रक्खा है, उनको और दूसरे कुफ्फार को दोस्त मत बनाओ और अल्लाह से डरो अगर तुम ईमान वाले हो और जब तुम नमाज़ के लिए एलान करते हो तो यह तुम्हारे साथ हँसी खेल करते हैं, इस सबब से कि वह लोग ऐसे हैं कि बिलकुल अक्ल नहीं रखते."

सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (59)

जब किसी क़ौम का गलबा होता है तो उसका छू मंतर भी काबिले एहतराम इबादत बन जाती है. नमाज़ कल भी एक संजीदा शख्स के लिए काबिले एतराज़ हरकत थी और आज भी हो सकती है. अवामी सतह पर उट्ठक-बैठक बनाम इबादत कल भी हंसी खेल रहा होगा आज भी यकीनन है. ऐसी बेतुकी हरकत को कम से कम इबादत तो नहीं कहा जा सकता. कम अकली के ताने देने वाला अल्लाह खुद अपने ऊपर शर्म करे कि दुन्या के कोने कोने से मुस्लमान अक्ल के अंधे काबा जाते है, शैतान को कंकड़ीयाँ मारने .



" आप कहिए कि क्या मैं तुम को ऐसा तरीका बतलाऊँ जो इस से भी अल्लाह के यहाँ बदला लेने में ज़्यादा बुरा हो. वोह इन लोगों का तरीका है जिन को अल्लाह ने दूर कर दिया हो और इन पर गज़ब फ़रमाया हो और इन को बन्दर और सुवर बना दिया हो और इन्हों ने शैतान की परिस्तिश की हो."

सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (60)

मुहम्मदी अल्लाह का दिमाग कैसी कैसी गलाज़तों से भरा हुवा था? यही इबारत मुस्लमान सुबहो-शाम अपनी नमाजों में पढ़ते हैं. अगर अपनी जबान मैं पढें तो एक हफ्ते मैं शर्म से डूब मरें.



मुहम्मद से अल्लाह कहता है - - -

" और जो आप के पास आप के परवर दिगार की तरफ से भेजा जाता है वोह इनमें से बहुतों की सरकशी और कुफ्र का सबब बन जाता है और हम ने इन में बाहम क़यामत तक अदावत और बुघ्ज़ डाल दिया है. जब कभी लडाई की आग भड़काना चाहते हैं, अल्लाह ताला ,उसको फर्द कर देते हैं और मुल्क में फसाद करते फिरते हैं और अल्लाह ताला फसाद करने वालों को पसंद नहीं करते."

सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (64)

यह सोंच मुहम्मद की फितरत का आइना है जिसको उनके एजेंट सदियों से पुजवाते चले आ रहे हैं। मुहम्मद खुद परस्ती के सिवाए तमाम इन्सान और इंसानियत का दुश्मन था. इसकी उलटी मुश्तःरी करके आलिमों ने सारे दुन्या की बीस फी सद आबादी के साथ दगाबाज़ी की है और करते जा रहे हैं. मुसलामानों गौर करो की यह घटिया तरीन बातें जिनको किसी से कहने में खुद तुमको शर्म आए , तुहारे कुर आनी अल्लाह की हैं. वह कभी अपने बन्दों को बन्दर बना देता है तो कभी सुवर, कभी उनको आपस में लडवा कर ज़मीन पर फसाद कराता है, क्यूँ? क्यूं करता रहता है वह ऐसा? क्या कभी हुवा भी है ऐसा ? क्या मुहम्मद का झूट, उसकी साज़िश इन बातें में तुम को नज़र नहीं आती?

अरे मेरे भाइयो! खुदा के लिए आँखें खोलो वर्ना मुहम्मद का अल्लाह तुम को बे मौत मारेगा. .


" और अगर यह लोग तौरेत की और इंजील की और जो किताब इन के परवर दिगर की तरफ से इनके पास पहुँच गई है उसकी पूरी पाबन्दी करते तो ये लोग अपने ऊपर से और अपने नीचे से पूरी फरागत से खाते."

सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (66)

लाहौल वलाकूवत! क्या मतलब हुवा मुहम्मदी अल्लाह का? आप खुद अख्ज़ करें कि उसका ऐसा फूहड़ मजाक अहले किताब के फरमा बरदारों के साथ? अच्छा हुवा कि न फरमान हुए वरना नीचे से खाना पड़ता, शायद इसी लिए नाफ़र्मान हो गए हों. मुहम्मद की गन्दी जेहेनियत ही कही जा सकती है. अनुवाद करने वाले मक्कार आलिम इसमें मानी ओ मतलब भरते रहें.


"बे शक वोह लोग काफ़िर हो चुके हैं जिन्हों ने कहा अल्लाह ताला में मसीह इब्ने मरियम है."

सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (72)

इस्लामी इस्तेलाह में किसी को काफिर कहना, उसे गाली देने की तरह होता है। अहले किताब यानी यहूदी और ईसाई काफिर नहीं होते हैं मगर मुहम्मद का मूड कब कैसा हो? ईसाइयों को उनके आस्था पर काफ़िर कहते है, जब की ईसाई खुद कुफ़्र (खास कर मूर्ती पूजा) को सख्त न पसंद करते हैं. इस तरह ईसाइयों का मुसलमानों से बैर बंधता गया.


" जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत (आज्ञा करी)करेगा, अल्लाह ताला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल कर देंगे जिस के नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इन में रहेंगे.ये बड़ी कामयाबी है"

सूरह अलमायदा 5 सातवाँ पारा(वइज़ासमेओ)-आयत (75)

कुरआन में यह आयत मोहम्मद की कामर्सियल ब्रेक्क है और बार बार आती है.


" ऐ अहले किताब! तुम अपने दीन में न हक गुलू (मिथ्य) मत करो और उन लोगों के ख्याल पर मत चलो जो पहले ही गलती में आ चुके हैं और बहुतों को गलती में डाल चुके हैं."

सूरह अलमायदा 5 सातवाँ पारा(वइज़ासमेओ)-आयत (77) ऐ मोहम्मद! दूसरों को राह मत दिखलाओ, पहले खुद राह-ऐ-रास्त पर आओ। अपनी उम्मत की ज़िन्दगी पलीद किए बैठे हो और अहल ए किताब यहूदियों और ईसाइयों को चले हो राह बतलाने।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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