Sunday 14 August 2011

सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा

मेरी तहरीर में - - -





क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।





नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह निसाँअ चौथा पारा
सातवीं किस्त






" मरियम पर उनके बड़ा भारी इलज़ाम धरने की वजह और उनके इस कहने की वजेह से हम ने मसीह ईसा पुत्र मरियम जो कि अल्लाह के रसूल हैं को क़त्ल कर दिया गया. हालाँकि उन्हों ने न उनको क़त्ल किया, न उनको सूली पर चढाया, लेकिन उनको इश्तेबाह (शंका) हो गया और लोग उनके बारे में इख्तेलाफ़ करते हैं, वोह गलत ख़याल में हैं, उनके पास इसकी कोई दलील नहीं है बजुज़ इसके कि अनुमानित बातों पर अमल करने के और उन्हों ने उनको यकीनी बात है कि क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ताला ने उनको अपनी तरफ उठा लिया और अल्लाह ताला ज़बर दस्त हिकमत वाले हैं और कोई शख्स अहल किताब से नहीं रहता मगर वोह ईसा अलैहिस्सलाम की अपने मरने से पहले ज़रूर तस्दीक कर लेता है और क़यामत के रोज़ वोह इन पर गवाही देंगे।"



orah निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात( 156-159)
मूसा और ईसा अरब दुन्या की धार्मिक केंद्र के दो ऐसे विन्दु हैं जिनपर पूरी पश्चिम ईसाई और यहूदी आबादी केन्द्रित है ओल्ड टेस्टामेंट यानी तौरेत इन को मान्य है. इनकी आबादी दुन्या में सर्वाधिक है और दुन्या की कुल आबादी का आधे से ज्यादा है. कहा जा सकता है कि तौरेत दुन्या की सब से पुरानी रचना है जो मूसा कालीन नबियों और स्वयं मूसा द्वारा शुरू की गई और दाऊद के ज़ुबूरी गीतों को अपने दामन में समेटे हुए ईसा काल तक पहुची, आदम और हव्वा की कहानी और दुन्या का वजूद छह सात हज़ार साल पहले इसमें ज़रूर कोरी कल्पना है जिसे खुद इस की तहरीर कंडम करत्ती है मगर बाद के वाकिए हैरत नाक सच बयान करते हैं.ऐसी कीमती दस्तावेज़ को ऊपर लिखी मुहम्मद की जेहालत, बल्कि दीवानगी के आलम में बकी गई बकवास को लाना तौरेत की तौहीन है. जिसको अल्लाह खुद शक ओ शुबहा भरी आयत कहता हो उसको समझने की क्या ज़रुरत? जाहिल क़ौम इसे पढ़ती रहे और अपने मुर्दों को बख़श कर उनका भी आकबत ख़राब करती रहे.हम कहते हैं मुसलमान क्यूँ नहीं सोचता कि उसके अल्लाह अगर हिकमत वाला है तो अपनी आयत साफ साफ क्यूँ अपने बन्दों को बतला सका, क्यूँ कारामद बातें नहीं बतलाएं? क्यूँ बार बार ईसा मूसा की और उनकी उम्मत की बक्वासें हम हिदुस्तानियों के कानों में भरे हुए है? वह फिर दोहरा रहा है कि यहूदियों पर बहुत सी चीज़ें हराम करदीं अरे तेल लेने गए यहूदी, करदी होंगी उन पर हराम, हलाल, हमसे क्या लेना देना, क्यों हम इन बातों को दोहराए जा रहे है?
यहूदी ज्यूज़ बन गए आसमान में छेद कर रहे हैं और हम अहमक़ मुसलमान उनकी क़ब्रो की मरम्मत करके मुल्लाओं को पाल पोस रहे हैं हमारे लिए दो जून की रोटी मोहल है, ये अपनी माँ के खसम ओलिमा हम से कुरानी गलाज़त ढुलवा रहे हैं.पैदाइशी जाहिल अल्लाह एक बार फिर नूह को उठता है, पूरे क़ुरआन में बार बार वह इन्हीं गिने चुने नामों को लेता है जो इस ने सुन रखे हैं, कहता है।

"और मूसा से अल्लाह ने खास तौर पर कलाम फ़रमाया, उन सब को खुश खबरी देने वाले और खौफ सुनाने वाले पैगम्बर इस लिए बना कर भेजा था ताकि अल्लाह के सामने इन पैगम्बरों के बाद कोई उज्र बाकी न रहे और अल्लाह ताला पूरे ज़ोर वाले और बड़ी हिकमत वाले हैं।"सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (166)
पूरे कुरआन में अल्लाह खुद को कम ज़र्फों की तरह ज़ोर वाला और हिकमत वाला बार बार दोहराता है। दर अस्ल यह मुहम्मद का दम्भ बोल रहा है धमकी से काम ले रहे हैं, जहाँ अमलन ज़ोर और ज़बर की ज़रुरत पड़ी है वहाँ साबित कर दिया है.
मुहम्मद एक बद तरीन ज़ालिम इन्सान था जो जंगे बदर के अपने बचपन के बीस साथियों को तीन दिन तक मैदाने जंग में सड़ने दिया , फिर उनका नाम ले ले कर एक कुँए में ताने देते हुए फिक्वाया था. वहीँ जंगे ओहद में जंगी कैदी बना सफ़े आखिर में नाम पुकारे जाने पर खामोश मुंह छिपाए खडा रहा और मुर्दा बन कर बच गया. जो अल्लाह बना ज़ोर दिखला रहा है वह मक्र में भी ताक था। देखिए कि बे गैरत बना अल्लाह क्या कहता है - - -

" लेकिन अल्लाह ताला बज़रिए इस कुरआन के जिस को आप के पास भेजा है और भेजा भी अपने अमली कमाल के साथ, शहादत दे रहे हैं फ़रिश्ते, तस्दीक कर रहे हैं और अल्लाह ताला की ही शहादत काफ़ी है. जो लोग मुनकिर हैं और खुदाई दीन के माने हैं, बड़ी दूर कि गुमराही में जा पड़े हैं।"सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (167)
वाह! मुद्दआ ओनका है अपने आलम तक़रीर का, अल्लाह का अमली कमाल भी कुछ ऐसा ही है कि जैसे मुहम्मद पर कुरआन नाज़िल हुई. मुहम्मद अपने दोनों हाथ रेहल बना कर हवा में फैलाए हुए थे कि कुरआन आसमान से अपने दोनों बाज़ुओं से उड़ती हुई आई और मुहम्मद के बाँहों में पनाह लेती हुई सीने में समा गई. तभी तो इसे मुस्लमान आसमानी किताब कहते हैं और सीने बसीने क़ायम रहने वाली भी. मदारी मुहम्मद डुगडुगी बजा कर मुसलमानों को हैरत ज़दा कर रहे हैं (गो कि यहूदियों के इसी मुताल्बे पर हज़ार उनके ताने के बाद भी मुहम्मद न दिखा सके). मुस्लमान मुहम्मद के पास आ गए इस लिए इन को पास की गुमराही में वह डाले हुए हैं. इन दिनों दूर की गुमराही मुहम्मद का तकिया कलाम बना हुवा है।
"ऐ तमाम लोगो! यह तुहारे पास तुहारे रसूल अल्लाह कि तरफ से तशरीफ़ लाए हैं, सो तुम यकीन रखो तुम्हारे लिए बेहतर है।"सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (173)
मुहम्मद लोगों को फुसला रहे हैं, लोग हर दौर में काइयाँ हुवा करत्ते हैं, वह अपना फ़ायदा देख कर रिसालत का फायदा उठते है. कुर्ब जवार में वह हर एक पर पैनी नज़र रखते है, जहाँ किसी में खुद सरी देखते हैं, ज़िन्दा उठवा लेते हैं. मंज़रे आम पर बांध कर इबरत नाक सज़ाएं देते हैं. जिस से अमन ओ अमान का ख़तरा होता है उसको एक मुक़रार मुद्दत तक झेलते है. ओलिमा हर बात खूब जानते हैं मगर हर मुहम्मदी ऐबों की पर्दा पोशी करते हैं, इसी में उनकी खैर है. मुसलमानों में एक अवामी इन्कलाब आना बेहद ज़रूरी है। " मसीह इब्ने मरियम तो और कुछ भी नहीं, अलबत्ता अल्लाह के रसूल हैं. मसीह हरगिज़ अल्लाह के बन्दे बन्ने से आर नहीं करेंगे और न मुक़र्रिब फ़रिश्ते।"सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (174)
मुहम्मद फितरत से एक लड़ाका, शर्री और शिद्दत पसंद इन्सान थे. दख्ल अंदाजी उनकी खू में थी. तमाम आलम पर छाई ईसाइयत को छेड़ कर एक बड़ी ताकत से बैर बाधना उनकी सिर्फ हिमाकत कही जा सकती है जिसका नतीजा दुन्या की करोरों जानें अपने वजूद को गँवा कर अदा कर चुकी हैं और करती रहेंगी.



" अगर कोई शख्स मर जाए जिस की कोई औलाद न हो, जिस की बहन हो तो उसको उसके तुर्के का आधा मिलेगा और वोह शख्स उसका वारिस होगा और अगर उसकी औलाद न हों और अगर दो हों तो उनको उसके तुर्के का दो तिहाई मलेगा और अगर भाई बहन हों मर्द, औरत तो एक मर्द को दो औरतों के हिस्से के बराबर. अल्लाह ताला इस लिए बयान करते हैं कि तुम गुमराही में मत पडो और अल्लाह ताला हर चीज़ को जानने वाले हैं।"सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (177)यह है मुहम्मदी अल्लाह के विरासती बटवारे का क़ानून जिस पर बड़े बड़े कानून दान अपने सरों को आपस में लड़ा लड़ा कर लहू लुहान कर सकते हैं और अलिमान दीन दूर खड़े तमाशा देखा करें।

"मर्द हाकिम हैं औरतो पर , इस सबब से कि अल्लाह ने बअजों को बअजों पर फ़ज़ीलत दी है. और जो औरतें ऐसी हों कि उनकी बद दिमाग़ी का एहतेमाल हो तो उनको ज़बानी नसीहत करो और इनको लेटने की जगह पर तनहा छोड़ दो और उनको मारो, फिर वह तुम्हारी इताअत शुरू कर दें तो उनको बहाना मत ढूंढो"



क्या कोई मुसलमान अपनी लखत ए जिगर बेटी को ऐसे कुरानी माहौ में देना पसंद करेगा? 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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