Wednesday 3 August 2011

सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
पहली किस्त


"ऐ लोगो ! अपने परवर दिगार से डरो, जिसने हमको एक जानदार से पैदा किया और उस जानदार से उसका जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें फैलाईं और क़राबत से भी डरो . बिल यक़ीन अल्लाह तअला सब की इत्तेला रखता है."आयत (१)


ऐ मुसलमानों! सब से पहले तो अपने अन्दर से अल्लाह का खौफ दूर करो. अल्लाह अगर है तो किसी को डराता नहीं, उसने एक निजाम बना कर, इस ज़मीन को इंसान के हवाले कर दिया है. हर अच्छे और बुरे अमल का अंजाम इसी दुन्या में मिल जाता है. डरो तो अपने अन्दर बैठे ज़मीर से डरो जो कम से कम इन्सान को कोई बुरा काम करने से रोकता है, उसके इंसाफ से डरो.

अब अल्लाह राय देता है कि क़राबत दारियों से डरो, भला क्यूँ, क्या क़राबत दार भी छोटे अल्लाह होते हैं? मुहम्मद को राय देना चाहिए कि क़राबत में रिश्तों का एहतराम करो, खैर वह कोई मुफक्किर नहीं थे फ़क़त उम्मी थे.
तौरेती नकल आदम की कहानी है कि पहला इन्सान आदम मिटटी के पुतले से बना फिर उसकी पसली से हव्वा बनी और फिर उनसे नस्ल ऐ इंसानी फैली. यह सब मन गढ़ंत है. इन्सान इर्तेकई मरहलों को तय करता हुआ आजकी दुन्या में मौजूद है.
 
"जिन बच्चों के बाप मर जाएँ तो उनका माल उनको पहुंचाते रहो, अच्छी चीज़ को बुरी चीज़ से मत बदलो और अगर तुम्हें एहतेमाल हो कि यतीम लड़कियों के साथ इंसाफ़ न कर सकोगे तो और औरतों से जो तुम्हें पसँद हों निकाह कर लो. दो दो, तीन तीन या चार चार, बस कि इंसाफ सब के साथ कर सको, वर्ना एक, और जो लौड़ी तुम्हारी मिलकियत में है, वही सही."
(२-३)
जंग जूई का दौर था मर्द आपस में कत्ल ओ खून किया करते थे. औरतें अपने बच्चों के साथ बेवा और यतीम हो जाया करते, आज यतीमों पर तरस खाने का वक़्त गया. अल्लाह के कानून में दूर अनदेशी नहीं है. इन चार चार शादियों का फरमान भी उसी माजी के लिए था, आज ये बात बेजा मानी जाती है मगर अरबी शेख आज भी उन्हीं फरमान का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं.

उस वक़्त साहिबे हैसियत लोग ज़्यादः से ज़्यादः लावारिस औरतों और बच्चों को सहारा दे दिया करते थे, चार बीवियों के बाद भी मजबूर और गरीब औरतें क़नीजें बन जाती थीं, यह बात हिन्दू समाज से बेहतर थी कि बेवाओं को पंडों को अय्याशी के लिए सन्यास में दे दी जाएं. 
" यह सब अहकाम मज़्कूरह खुदा वंदी जाब्ते हैं और जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल करेगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी. हमेशा हमेशा उसमें रहेंगे, यह बड़ी कामयाबी है."(८-१३)
यह आयत कुरान में बार बार दोहराई गई है. अरब की भूखी प्यासी सर ज़मीन के किए पानी की नहरें वह भी मकानों के बीचे पुर कशिश हो सकती हैं मगर बाकी दुन्या के लिए यह जन्नत जहन्नम जैसी हो सकती है.

मुहम्मद अल्लाह के पैगाबर होने का दावा करते हैं और अल्लाह के बन्दों को झूटी लालच देते हैं. अल्लाह के बन्दे इस इक्कीसवीं सदी में इस पर भरोसा करते हैं.

अल्लाह के कानूनी जाब्ते अलग ही हैं की उसका कोई कानून ही नहीं है.



" जो औरतें बेहयाई का काम करें तुम्हारी बीवियों में से, सो तुम लोग उन औरतों पर अपने लोगों में से चार आदमी गवाह कर,सो अगर वह लोग गवाही देदें तो इन्हीं घरों में मुक़य्यद रखो. यहाँ तक कि उनकी मौत उनका खात्मा कर दे याअल्लाह उनके लिए कोई रह पैदा कर दे." (१५)
यह आयतें आलमी हुक़ूक़ इंसानी के मुंह पर तमाचा हैं. मुहम्मदी अल्लाह ने औरत की बेबसी और बेकसी को बरकरार रखा है. इस कुरानी एहकाम पर आलमी बिरादरी आवाज़ उठाए, अगर मुसलमानों का ज़मीर बेदार ही नहीं होता. इसको मानने वाला हर शख्स इंसानियत का मुजरिम है. उसे इंसानी समाज में रहने के हक से महरूम किया जाय.
 
"और जो मर्द बेहयाई का अमल करें, उनको तुम अज़ीयत पहुँचाओ और अगर वह तौबा कर लें तो अल्लाह मुआफ़ करने वाला है."
(१६)
मर्द अल्लाह है, उसके तमाम एक लाख चौबीस हज़ार पैगम्बर मर्द. लगता है औरत इंसानी मख्लूक़ से अलग होती है. मर्द को इसका मालिक और हाकिम बनाया है,
मरदूद अल्लाह ने.

औरत को तडपा तडपा कर मार डालने की राय देता है और मर्द को बहरहाल मुआफ़ कर देने की रज़ा मंदी देता है. 
"तुम पर हराम की गईं तुम्हारी माएँ और तुम्हारी बेटियां और तुम्हारी बहनें और तुम्हारी फूफियाँ और तुम्हारी खालाएं और भतीज्याँ और भान्जियाँ . तुम्हारी वह माएँ जिन्हों ने तुम्हें दूध पिलाया होऔर तुम्हारी वह बहनें जो दूध पीने की वजह से हैं, तुम्हारी बीवियों की माएँ और तुम्हारी बीवियों की बेटियां जो तुम्हारी परवरिश में रहती हों, उन बीवियों से जिनके साथ तुमने सोहबत की हो और तुम्हारी बेटियों की बेटियां और दो सगी बहनें" (२३)
ऐसा लगता है कि माएँ किसी ज़माने में अरब के कुछ क़बीलों में हलाल हुवा करती थीं कि मुहम्मद इसको आज से हराम कर रहे हैं.
शराब पहले हलाल थी हम्ज़ा और अली कि मामूली सी रंजिश के बिना पर, अली के हक़ में शराब रातो रात हराम हो गई थी.

इसी तरह अहमक रसूल फर्द पर उसकी माँ, बहनें , बेटियाँ और दीगर मोहतरम और अज़ीज़ तर रिश्तों को हराम कर रहा है. खुद इन गन्दग्यों तक समा जाने के नतीजे का यह अहकाम हैं जिन पर जाने वाला दूसरों को रोकता है. सूरह अहज़ाब में देखेंगे कि कैसे इस गलीज़ ने अपने गोद ली हुई औलाद की बीवी से जिंसी तअल्लुक़ क़ायम किया.
मुहम्मद की कोई बहन नहीं थी, वर्ना मुसलमानों के लिए वह इसे भी हलाल कर जाते

जैसे कि फुफेरी बहन ज़ैनब को अपने बेटे से ब्याह कर फिर उस पर डोरे डाले और रंगे हाथों पकडे जाने पर एलन किया कि ज़ैनब का निकाह मेरे साथ हो चुका है, अल्लाह ने निकाह पढाया और जिब्रील ने गवाही दी.जिन रिश्तों को हलाल और हराम के खानों में डाला है उसका कोई जवाज़ भी नहीं बतलाया. दो सगी बहने क्यूँ हराम हुईं जब कि बेहतर होता कई हालत में बनिस्बत इसके कि कोई गैर हो.मोहम्मद ने जिन रिश्तों को हराम किया है वह तो अफ्रीका के क़बीलों का मुखिया भी फर्द पर हराम किए हुए था और है.



"मर्द हाकिम हैं औरतो पर , इस सबब से कि अल्लाह ने बअजों को बअजों पर फ़ज़ीलत दी है. और जो औरतें ऐसी हों कि उनकी बद दिमाग़ी का एहतेमाल हो तो उनको ज़बानी नसीहत करो और इनको लेटने की जगह पर तनहा छोड़ दो और उनको मारो, फिर वह तुम्हारी इताअत शुरू कर दें तो उनको बहाना मत ढूंढो."(९३४)
मुहम्मदी अल्लाह के ज़ुल्म ओ सितम , सदियों से मुसलमान औरतें झेल रही हैं . वह इसके खिलाफ आवाज़ भी बुलंद नहीं कर सकतीं क्यूँ कि मर्द ताक़त वर है जो अल्लाह के कानून के सहारे उसे ज़ेर किए रहता है.
सिन्फ ए नाजुक कुदरत के बख्से हुए इनाम में सरे फेहरिश्त है, इसके अस्मत का जितना एहतराम किया जाए, उतनी ही ज़िदगी मसरूर होती है. 
 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

7 comments:

  1. @ "यह बात हिन्दू समाज से बेहतर थी कि बेवाओं को पंडों को अय्याशी के लिए सन्यास में दे दी जाएं."
    यह एक सामाजिक कुरीति हो सकती है. हिन्दू धर्म के किसी भी ग्रन्थ में कहीं भी इसका न तो उल्लेख है ....न ऐसा कोई आचरण प्रशंसनीय है. हिन्दू समाज में समय-समय पर स्वामी शंकराचार्य, स्वामी दयानंद सरस्वती, लाला लाजपत राय...... जैसे अनेकों समाज सुधारकों ने
    सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आन्दोलन कर समाज सुधार के उल्लेखनीय कार्य किये हैं. काल गति से विकृति का आना स्वाभाविक है पर हिन्दू समाज की विशेषता उन विकृतियों के परिहार और परिमार्जन की रही है ...इसीलिये यह विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक बन सकी है.

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  2. बेमिसाल लिख रहे हैं आप जीम. मोमिन साहब. कोई वक्‍़त आएगा जब इस दुन्‍या के मुसलमानों को एहसास होगा कि अल्‍लाह नाम के लिबास में दरअसल वो पुश्‍तों से शैतान की ही इबादत कर रहे थे, आखिरकार अपनी इबादत न करने पर कमीनगी से भरी सज़ाएं देने वाला और हमेशा खुद से डरते रहने की धमकी देते रहने वाला हरामज़ादा सिवाय शैतान के और हो भी क्‍या सकता है?

    अफसोस इस बात का है जीम. मोमिन साहब कि इस बात का एहसास मुसलमानों को तब होगा जब उनका बेहद शदीद नुक्‍सान हो चुका होगा, जब उस हरामी मुहम्‍मद की कुरआन के मार्फत सारी दुन्‍या के गैर-मु‍सलमानों के लिए फैलाई गई इस नफरत के जवाब में लगभग सारी गैर-इस्‍लामी दुन्‍या मुसलमानों से 1000 गुना ज्‍़याद: नफरत करने लग चुकी होगी, जब हालात इतने बिगड़ चुके होंगे कि मुसलमानों के पास मजबूरी में इस शैतानी कुरआन के हर्फे-ज़लालत और हर्फे-गलाजत को जला कर इस्‍लाम नाम की गंदी सोच को छोड़ने के सिवा और कोई चारा नहीं होगा. आखिर आप सदियों से बिला वजह उन सबके लिए अपने दिलो-दिमाग में नफरत पालते चले आएंगे जो आपकी तरह इस चुतियापे से भरी किताब को सच मानने को तैयार नहीं हैं, तो आखिर कब तक दुन्‍या आपकी नफरत को सहेगी? कभी तो उसकी सहने की ताकत जवाब देगी और अपनी भेजी हुई नफरत आपको 1000 गुना ज्‍़याद: होकर भुगतनी ही पड़ेगी न? जो यकीन नहीं करते वो यहूदियों का हाल देख लें, सबसे पहले यहूदी ही थे जिन्‍होंने इस तरह की नफरत को अपने दिलों में जगह देनी शुरू की थी, और उन्‍होंने कैसा खौफनाक अंजाम भुगता ये सब जानते हैं.

    इससे पहले कि कोई नया हिटलर इस दुन्‍या में आए जो मुसलमानों से उतनी ही नफरत करता हो जितनी हिटलर यहूदियों से करता था, अभी भी वक्‍त है कि मुसलमान कुरआन नाम की इस नफरत से भरी गलीज किताब को कूड़ेदान में फेंकें, और उस सूअर के बच्‍चे मुहम्‍मद को उसके अल्‍लाह नाम के चोगे में बैठाए शैतान समेत अपने घर (दिलो-दमाग़) के बाहर की नाली में दफा करें, सदाकत और इंसानियत पर अपना यक़ीन बुलंद करें और एक सच्‍चे इंसान के तौर पर सारी दुन्‍या को नए अंदाज़ में देखना शुरू करें जो मुहम्‍मद, उसके गधे अल्‍लाह और कुरआन के खौफ, दहशत और नफरत से भरे गंदे नज़रिए वाले चश्‍मे के बिना देखी जाए तो बेहद खूबसूरत, अमन से भरी और सुकून से लबरेज मालूम होती है.

    लेकिन मुझे डर है कि मुसलमान ऐसा तब तक नहीं समझेंगे जब तक कोई नया हिटलर इस दुन्‍या में जो मुहम्‍मद से भी 10000 गुना ज्‍़याद: हरामी और बेरहम होगा, उन्‍हें खुद अपने ही हाथों जबरिया कुरआन के पन्‍ने जलाने और मस्जिदों को नेस्‍तनाबूद करने पर मजबूर नहीं करेगा.

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  3. कौशलेन्द्र साहब!
    मनु स्मृति पढ़ें .
    लेखन में गाली गलौज और अप शब्द उचित नहीं.
    सय्यम बरतें, किसी के बाप को गालियाँ देकर उसका दिल नहीं जीत सकते , सिवाय इसके कि खुद को गाली खिल्वाएँ.
    मैं ईमानदार मोमिन हूँ ,जो शुद्ध मानव होता है.
    संसार में धर्मों ने मानव जाति का बहुत अहित किया है. मैं सिर्फ मुस्लिम समाज को जगाने में लगा हुवा हूँ और आपकी राय से सहमत हूँ कि हिन्दुओं में बहुतेरे समाज सुधारक हुए हैं और उनका असर समाज पर है. उनको मेरा सलाम.

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  4. जीम साहब , माफ़ी चाहता हूँ के मैंने अपने ब्लॉग से आपका तबसरा हज़फ कर दिया है. आपको हक़ है के अपने ब्लॉग पर जो चाहें लिखें लेकिन आप को ये इजाज़त नहीं है के अपने ख़यालात की तश-हीर के लिए आप मेरा ब्लॉग इस्तेमाल करें. उम्मीद है के बुरा नहीं मानें गे . शुक्रिया.
    वैसे आप के लिए एक मशूरा भी है. क्या ये ज़रूरी है के आप अपने आप को मुसलमान भी कहें , अपना नाम मुसलमानौ जैसा रखें और अल्लाह और कुरान पर भी दिल खोल कर ऐतेराज़ करें ?? जिस तरह किसी ने आज तक Bill Gates को Microsoft की बुराई करते नहीं देखा, इसी तरह .... एक बात याद रखें के कोई भी मुसलमान कभी भी अल्लाह की या कुरान की इस तरह बे-हुर्मती नहीं करता जिस तरीके से आप अपने ब्लॉग को भर रहे हैं. इसलिए अदबन गुज़ारिश है के अपना नाम मुसलमानों जैसा मत रखें. उम्मत-ए-मुस्लिमा पर आप की बड़ी महेरबानी होगी. शुक्रिया.

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  5. मोहतरम !
    अस्सलाम अलैकुम !
    नमस्कार !
    आप का एतराज़ सिने बलूगत से ख़ारिज है. मेरा नाम मेरे माहौल और मेरे गुग्रफिया के मुताबिक है, और यह मेरा पैदाइशी हक है कि मैं अपना नाम "मोमिन" रखूँ. इस्लाम से पहले भी ईमान और मोमिन अलफ़ाज़ थे और ये उन काफिरों, मुल्हिदों, और सब अवाम के हुवा करते थे. इस्लाम ने इनका इस्लामी करण कर लिया है.
    क्या मैं आपको नमस्कार कहूं ? आपको अटपटा लगेगा.
    इस्लामी तहजीब हमारा कल्चर, हमारी तहजीब, हमारी विरासत और हमारा back ground है. नज़र्यत इन्फिरादी हुवा करते हैं, ये भी मेरा पैदाइशी हक है.
    दूसरी बात जो मेरी तहरीक हैं, वह मुसलमानों के लिए ही है. उनकी बक़ा अब इसी बात में है कि मोमिन की बात को समझने की कोशिश करें. मैं उनका खैर ख्वाह हूँ , किसी भी मुसलमान से ज्यादह ईमान दर .
    अपनी शख्सियत में वोसत लाएँ औए फ़िक्र पैदा करें .
    वस्सलाम

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  6. تعیلم سے غافل، فنِِ عنقه سے الگ ،
    بد حالی میں اوّل، صفِ عالٰی الگ ،
    گمراہ کئے ہے انھیں انکا الله ،
    دنیا ہے مسلمانوں کی، دنیا سے الگ٠
    مسلمانو!
    جاگو ،
    محمّدی الله، تمہارا رسول اور اُسکا قرآن، سب فریب ہیں.
    تمکوگمراہ اوررُسوا کئے ہوئے ہیں یہ حرام زادے؛ علماۓ دین٠
    جھوٹے اسلام کو ترک کرو اور سچّے ایمان کے ہم نوا بنو. مُسلم سے مومن بن جاؤ٠
    آؤ! ایمان کو سمجھو، جانو اور بوجھو٠
    اُمّی کا دیوان ہے ، قرآن حرفِ غلط ٠
    Ummi ka Deewan

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  7. @ "लेखन में गाली गलौज और अप शब्द उचित नहीं.
    सय्यम बरतें, किसी के बाप को गालियाँ देकर उसका दिल नहीं जीत सकते , सिवाय इसके कि खुद को गाली खिल्वाएँ."
    मोमिन साहब ! सय्यम बरतने की यह नसीहत आप किसे दे रहे हैं ? मेरी टिप्पणी में आपको गाली-गलौज और अपशब्द कहाँ से नज़र आ गए ? समझ से परे है कि यह दोषारोपण मुझ पर क्यों किया आपने. यदि आपको अपने ब्लॉग पर मेरा आना अच्छा नहीं लगता तो दोबारा ऐसी गलती नहीं करूंगा ....क्षमा करेंगे.

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