Tuesday 26 February 2019

सूरह नूह- 71 = سورتہ نوح (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह नूह- 71 = سورتہ  نوح 
(मुकम्मल)

देखिए क़ुरआनी अज़मातें - - -

"हम ने नूह को इनके क़ौम के पास भेजा था कि तुम अपनी क़ौम को डराओ, क़ब्ल  इसके कि इन पर दर्द नाक अज़ाब आए."
क़ुरआनी आयतें साबित करती हैं कि इंसान का पैदा होना ही उसके लिए अज़ाब है. 
ये पैग़ाम मुसलामानों को अन्दर से खोखला किए हुए है. 
बेमार की तौबा ? इनको राहत पहुँचाती है, 
ये वजूद पर ग़ैर ज़रूरी तसल्लुत है. 
कोई किसी को दर्द नाक अज़ाब क्यूँ दे? 
वह भी अल्लाह? बकवास है ये रसूली आवाज़.
"उनहोंने कहा ऐ मेरी क़ौम! मैं तुम्हारे लिए साफ़ साफ़ डराने वाला हूँ कि तुम अल्लाह की इबादत करो और उससे डरो और हमारा कहना मानो तो वह तुम्हारे गुनाह मुआफ़ करेगा और तुमको वक़्त मुक़र्रर तक मोहलत देगा."
मुहम्मद झूट का लाबादः ओढ़ कर ख़ुद नूह बन जाते हैं, 
कभी इब्राहीम तो कभी मूसा. 
अफ़सोस कि इस्लामी दुन्या एक झूठे की उम्मत कहलाना पसंद करती है.
"नूह ने दुआ की कि ऐ मेरे अल्लाह! मैंने अपनी क़ौम को रात को भी और दिन को भी बुलाया, सो वह मेरे बुलाने पर और ही ज़्यादः भागते रहे और हमने जब भी बुलाया कि आप उनको बख़्श दें, तो उन्हों ने अपनी उंगलियाँ अपने कानों में दे लीं और अपने कपड़े लपेट लिए और इसरार किया और ग़ायत दर्जे का तकब्बुर किया."
अपने कलाम में मुहम्मद अपने मेयार के मुताबिक़ फ़साहत और बलूग़त भरने की कोशिश कर रहे हैं जब कि जुमले को भी सहीह अदा नहीं कर पा रहे.
सुबहो-शाम की जगह  "अपनी क़ौम को रात को भी और दिन को भी बुलाया" 
जैसे जुमलों में पेश करते हैं.
मालिके कायनात को क्या ऐसी हक़ीर बाते बकने के लिए है. 
मुहम्मद ने उस हस्ती को पामाल कर रखा है.
क्या किसी पागल की गूफ़्तुगू इससे हटके हो सकती है?
"कसरत से तुम पर बारिश भेजेगा"
अगर तुम उम्मी को पैग़म्बर मान लो तो.
"और तुम्हारे लिए बाग़ लगा देगा और नहरें बहा देगा."
शर्त है कि उसको अल्लाह का रसूल मानो.
"तुमको क्या हुवा कि तुम उसकी अजमतों के मुअत्किद नहीं हो."
उसकी अज़मतों का सेहरा मक्कार मुहम्मद पर मत बाँधो, 
मुसलामानों .
अल्लाह को एक बन्दा समझा रहा है कि तू अपने बन्दों का गुनहगार बन जा, 
उसको नशेब ओ फ़राज़ समझा रहा है.
क्या ये सब तुमको मकरूह नहीं लगता?
"ऐ मेरे रब ! मुझको, मेरे माँ बाप को और जो मोमिन होने की हालत में मेरे घर दाख़िल हैं, और तमाम मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतों को बख़्श दे और ज़ालिमों की हलाक़त और बढ़ा दे."
सूरह नूह- 71 आयत (1 -2 7)
इसके बाद अल्लाह ख़ुद किसी अल्लाह से दुआ मांग रहा है?
कितनी अहमक क़ौम है ये जिसको मुसलमान कहते हैं.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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