Wednesday 27 February 2019

सूरह जिन्न ७२ (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह जिन्न- 72 = سورتہ الجن 
(मुकम्मल)

मुझे हैरत होती है की मुहम्मद के ज़माने में वह लोग थे 
जोकि क़ुरआनी बकवासों को मुहम्मद का परेशान ख़याल कहते थे,
फिर दीवाने को फ़रामोश कर दिया करते थे. 
वह इस लग्वियात को मुहम्मद का ज़ेह्नी ख़लल मानते थे, 
ये बातें ख़ुद क़ुरआन में मौजूद है, 
इस लिए कि मुहम्मद लोगों की तनक़ीद को भी क़ुरआनी फ़रमान का हिस्सा बनाए हुए हैं. वह लोग क़ुरआनी फ़रमूदात पर ऐसे ऐसे जुमले कसते कि अल्लाह की बोलती बंद हो जाया करती थी.
 आज का इंसान उस ज़माने से कई गुना तअलीम याफ़्ता है,
ज़ेह्नी बलूग़त भी लोगों की कॉफ़ी बढ़ गई है,
तहक़ीक़ात और इंक़ेशाफ़ात के कई बाब खुल चुके हैं,
फिर भी इन क़ुरआनी लग्वियात को लोग अल्लाह का कलाम माने हुए हैं.और इस बात पर यक़ीन रक्खे हुए हैं.
जाहिल अवाम को मुआफ़ किया जा सकता है, मगर
कालेज के प्रोफ़ेसर, वोकला, जज और बुद्धि जीवी भी यक़ीन रखते हैं कि अल्लाह ने ही क़ुरआन को अपनी दानिश मंदी की शक्ल बख़्शी .  
अभी तक मुहम्मद उन लोगों को पकड़ कर अपनी पब्लिसिटी कराते थे जो बक़ौल उनके अल्लाह के रसूल हुवा करते थे. अब उतर आए हैं जिन्नों और भूतों के स्तर पर.
वह इस तरह मक्र को वह आयतें बनाते है - - -

"आप कहिए कि मेरे पास इस बात की वह्यी आई है कि जिन्नात में से एक जमाअत ने क़ुरआन को सुना फिर उनहोंने कहा हमने एक अजीब क़ुरआन को सुना जो राहे रास्त बतलाता है सो हम तो ईमान ले आए और हम अपने रब के साथ किसी को शरीक नहीं करेंगे."

मुहम्मद क़ुरआन की डफ़ली अब उस मख़लूक़ से भी बजवा रहे हैं जो वहमों का वजूद है. जिन्न का वहम भी यहूदियों के मार्फ़त इस्लाम में आया है.
"और हमारे परवर दिगार की बड़ी शान है. इसने न किसी को बीवी बनाया न औलाद."
उस शख़्स को अल्लाह के वजूद का वहम अगर है और इंसानी दिल ओ दिमाग़ रखने वाला अल्लाह है तो इंसानी जिसामत उसमें क्यूं नहीं? 
उसकी बीवी और बच्चे भी होना चहिए.
इस के बर अक्स जिन्नों मलायक़ की इफ़रात से मौजूदगी 
बग़ैर जिन्स के कैसे  मुमकिन है?

"और हम में जो अहमक हुए हैं वह अल्लाह की शान में बढ़ी हुई बात करते थे. और हमारा ख़याल था कि इंसान और जिन्नात कभी अल्लाह की शान में झूट बात न कहेंगे. और बहुत से लोग आदमियों में ऐसे थे कि वह जिन्नात में से बअजे लोगों की पनाह लिया करते थे, सो उन आदमियों ने इन जिन्नात लोगों की बाद दिमागी और बढ़ा दी."

क्या कहना चाहा है उम्मी ने? इसे कठ बैठे मुल्ला ही समझें.
अल्लाह को पोलिस बन कर अपने ही कायनात की तलाशी लेनी पड़ सकती है क्या? कि किसी मुजरिम ने आसमान में शोले छुपा रक्खा था. 
साथ साथ पहरे भी सख़्ती के साथ थे, फिर भी अल्लाह हो असग़र (यानी  शैतान) आसमान में कान  लगाए बैठा रहता है कि वहां की कोई ख़बर मिल सके. ग़रज़ उसके लिए तारे का बुर्ज बना दिया  जो कि शोले के साथ उस का पीछा करता है. ये तमाम कहानियाँ गढ़ राखी हैं रसूल ने इसको  मुहम्मदी उम्मत वजू करके और टोपी लगा कर पढ़ती है.

"और हम नहीं जानते कि ज़मीन वालों को कोई तकलीफ़ पहुँचाना मक़सूद है या उनके रब ने उनको हिदायत लेने का एक किस्सा फ़रमाया."
ऐसे किस्सों से क़ुरआन भरा हुवा है, जिसे मुसलमान दिनों रात तिलावत करते हैं.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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