Wednesday 5 June 2019

सूरह लहब 111 = سورتہ اللھب

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह लहब 111 = سورتہ اللھب
(तब्बत यदा अबी लहबिंव वतब्बा) 

अबू लहब मुहम्मद के सगे चाचा थे, ऐसे चाचा कि जिन्हों ने चालीस बरस तक अपने यतीम भतीजे मुहम्मद को अपनी अमाँ और शिफक़त में रक्खा. 
अपने मरहूम भाई अब्दुल्ला की बेवा आमना के बतिन से जन्मे मुहम्मद की ख़बर सुन कर अबू लहब ख़ुशी से झूम उट्ठे और अपनी लौड़ी को आज़ाद कर दिया, जिसने बेटे की ख़बर दी थी 
और उसकी तनख़्वाह  मुक़र्रर कर के मुहम्मद को दूध पिलाई की नौकरी दे दिया. 
वह बचपन से लेकर जवानी तक मुहम्मद के सर परस्त रहे. 
दादा के मरने के बाद इनकी देख भाल किया, 
यहाँ तक कि मुहम्मद की दो बेटियों को अपने बेटों से मंसूब करके उनको सुबुक दोष किया. 
अपने मोहसिन चचा का तमाम अह्सानत पल भर में फ़रामोश कर दिया. 
वजेह ?
हुवा यूँ था की एक रोज़ मुहम्मद ने तमाम ख़ानदान क़ुरैश को कोह ए मिनफ़ा पर इकठ्ठा होने की दावत दी. लोग अए तो सब से पहले तम्हीद बांधा और फिर एलान किया कि अल्लाह ने मुझे अपना रसूल बनाया और पैग़म्बर मुक़र्रर किया. 
लोगों को इस बात पर कॉफ़ी ग़म ओ ग़ुस्सा और मायूसी हुई कि 
ऐसे जाहिल को अल्लाह ने अपना पैग़म्बर कैसे चुना ? 
सबसे पहले अबू लहेब ने ज़बान खोली और कहा, 
"तू माटी मिले, क्या इसी लिए तूने हम लोगों को यहाँ बुलाया है?

इसी बात पर मुहम्मद ने यह सूरह गढ़ी जो क़ुरआन में इस बात की गवाह बन कर 111 के मर्तबे पर है. 
सूरह लहेब क़ुरआन   की वाहिद सूरह है जिस  में किसी फ़र्द का नाम दर्ज है. किसी ख़लीफ़ा या क़बीले के किसी फ़र्द का नाम क़ुरआन में नहीं है.
"ज़िक्र मेरा मुझ से बढ़ कर है कि उस महफ़िल में है"
देखिए कि अल्लाह किसी बेबस औरत की तरह कैसे अबू लहेब को कोस रहा है - - -

"अबू लहब तेरे हाथ टूट जाएँ, 
न मॉल उसके काम आया,
न उसकी कमाई .
 वह अनक़रीब एक शोला ज़न आग में दाख़िल होगा,
वह भी और उसकी बीवी भी, जो लकड़ियाँ लाद कर लाती है,
उसके गले में एक रस्सी होगी ख़ूब बाटी हुई."
सूरह लहेब 111 आयत (1 -5 )

 नमाज़ियो ! 
ग़ौर करो कि अपनी नमाज़ों में तुम क्या पढ़ते हो? क्या यह इबारतें क़ाबिल ए इबादत हैं?
अल्लाह अबू लहेब और उसकी जोरू को बद दुआएँ दे रहा है और साथ में उसकी बीवी को उनके हालत पर तअने भी दे रहा है कि वह उस ज़माने में लकड़ी ढोकर गुज़ारा करती थी. 
यह मुहम्मदी अल्लाह जो हिकमत वाला है, 
अपनी हिकमत से इन दोनों प्राणी को पत्थर की मूर्ति ही बना देता. 
कुन फ़िया कून" कहने की ज़रुरत थी. 
सच पूछिए तो मुहम्मदी अल्लाह भी मुहम्मद की हुलया का ही है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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