Friday 21 June 2019

राह ए पैग़मबरी

राह ए पैग़मबरी   
             
मुहम्मद के ज़ेहन में .पैग़मबर बनने का ख़याल कैसे आया 
और फिर ये ख़याल जूनून में कैसे बदला??
मुहम्मद एक औसत दर्जे के समाजी फ़र्द थे. तालीम याफ़्ता न सही, 
मगर साहिबे फ़िक्र थे, फ़िक्र मुन्फ़ी सही.  
ये बात अलग है कि इंसान की फ़िक्र समाज के लिए तामीरी हो या तख़रीबी. 
मुहम्मद की कोई ख़ूबी अगर कही जाए तो उनके अन्दर दौलत से मिलने वाली ऐश व आराम की कोई अहेमयत नहीं थी. 
क़ेनाअत पसँद थे, लेन देन के मुआमले में व ईमान दार भी थे.
मुहम्मद ने ज़रीआ मुआश के लिए मक्के वालों की बकरियाँ चराईं. 
सब से ज़्यादः आसान काम है, बकरियाँ चराना, 
वह इसी दौरान ज़ेहनी उथल पुथल में पैग़मबरी का ख़ाका बनाते रहे.
 एक वाक़िया हुवा कि ख़ाना ए काबा की दीवार ढह गई 
जिसमें संग ए असवद नस्ब था जोकि आकाश से गिरी हुई उल्का पिंड थी. 
दीवार की तामीर अज़ सरे नव हुई, 
मक्का के क़बीलों में इस बात का झगड़ा शुरू हुआ कि किस क़बीले का सरदार असवद को दीवार में नस्ब करेगा? 
तय ये हुवा कि जो शख़्स दूसरे दिन सुब्ह सब से पहले काबे में दाख़िल होगा 
उसकी बात मानी जायगी. 
अगले दिन सुबह सब से पहले मुहम्मद हरम में दाख़िल हुए.
(ये बात अलग है कि वह सहवन वहाँ पहुँचे या क़सदन, 
मगर क़यास कहता है कि वह रात को सोए ही नहीं कि जल्दी उठाना है) 
बहर हाल दिन चढ़ा तमाम क़बीले के लोग इकठ्ठा हुए, 
मुहम्मद की बात और तजवीज़ सुनने के लिए.
मुहम्मद ने एक चादर मंगाई और असवद को उस पर रख दिया, 
फिर हर क़बीले के सरदारों को बुलाया, 
सबसे कहा कि चादर का किनारा पकड़ कर  दीवार तक ले चलो. 
चादर दीवार के पास पहुच गई तो ख़ुद असवद को उठा कर दीवार में नस्ब कर दिया. सादा लोह अवाम ने वाहवाही की, 
जब कि उनका मुतालबा बना ही रहा कि पत्थर कौन नस्ब करे. 
मुहम्मद को चाहिए था कि सरदारों में जो सबसे ज़्यादः बुज़ुर्ग होता 
उससे पत्थर नस्ब करने को कहते.
 मुहम्मद अन्दर से फूले न समाए कि वह अपनी होशियारी से क़बीलो में बरतर हो गए. उसी दिन उनमें ये बात पक्की हो गई कि पैग़मबरी का दावा किया जा सकता है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment