Wednesday 26 June 2019

दोहरे स्टार


 दोहरे स्तर 
गाय हमारी माता है, 
भैंस हमारी ताई माँ है, 
भेड़ बकरियां हमारी चाचियाँ हैं. 
इन सबों का हम दूध पीते हैं, मगर सब से ज्यादा हमें प्यारी है गऊ माता.
क्योंकि वह हमें दूध मुफ़्त देती है. 
वह रात भर उसारे में आराम करती है, 
सुबह जितना भी हो सकता है दूध देती है, 
फिर हम इसे खूंटे से आज़ाद कर देते हैं, 
वह दिन भर कुत्तों के साथ कूड़ा घर में अपना भोजन ख़ुद अर्जित कर लेती है और शाम को अपने घर को याद करके वापस आ जाती है. 
इसके खो जाने का भी कोई ख़तरा नहीं,  गऊ माता को कौन चुराएगा ? 
दस बारह साल मुफ़्त में हम दूध खाते और पीते हैं, बूढ़ी हुई, कोई चिंता नहीं, 
दूध पूत से छुट्टी पाइस भूखी खड़ी है गय्या, 
इसके दुःख को कोई न देखे, देखे कदा क़सय्या

न न ऐसी कोई अवस्था नहीं आती क़साई की मजाल नहीं कि मुंह भी दिखलाए. 
उसका सट्टा बट्टा तो गऊ शाला से डायरेक्ट है. 
कौड़ियों के भाव ले जाता है महाराज से. धेलों के भाव बिकता है गोमांस. 
क्या भैंस ताई को कूड़े घर के लिए छुट्टा किया जा सकता है ? 
नहीं भाई एक पल में ग़ायब हो जाएगी . 
200 रुपया किलो उसका गोश्त बिकता है. 
150 किलो अवसत भैस का गोश्त 30000- हज़ार का हुवा, 
खाल तो नाप कर बिकती है, वह भी D C मीटर में. 
हड्डी तो बहुतै क़ीमती होत है. इससे जेलिटिन जो बनत है,  
स्वादिष्ट इतना होता है कि खाद्य पदार्थ में सब से महंगा. 
इस से बढ़ कर चाची भेड़ बकार्यों के रुतबे हैं. 
400-500- किलो इनका मांस है और मंहगी खाल. 
बस बेचारी गऊ माता की कोई कीमत नहीं. न जीते जी न मरने के बाद. 
चोरी छीपे से उपभोगताओं तक पहुंचे तो बड़ी बात है, वरना इनकी कब्रें बनवाइए.  

तस्वीर का एक दूसरा पहलू है, 
देखें जाकर बड़ी बड़ी विश्व स्टार की डेरी फ़ारमो में, भैसों से बड़ी गाएँ, 
अधेड़ हुईं, दूध अपनी ख़ूराक की क़ीमत से कम दिया तो गईं स्लाटर हॉउस में, 
कोई भखुवा गऊ रक्षक वहां नहीं रोकेगा, हिम्मत ही नहीं. 
वहां गोमांस 1000-रू किलो से अधिक हो जाता है, 
उसे विदेशी खाते हैं जिसे हम गऊ रक्षक परोसते हैं. 
फिर इन्डिया में ग़रीबों के बीच यही स्लाटर हाउस क़त्ल खाने क्यूँ बन जाते हैं ? 
बाबा TV चैनलों पे फेरी लगाता हुवा आवाज़ लगाता है, 
"पवित्र गो मूत्र का सेवन करिए, इसे खाइए, पीजिए, इस से नहाइए, धोइए, फिनाइल की जगह इससे पोछा लगाइए और गऊ माता को क़त्ल ख़ाने में जाने से बचाइए." 
लाखों किसानों कि आधी रोज़ी चौपट हो गई, 
गोवंश से तौबा कर रहे हैं, 
चमड़ा मजदूर  भुखमरी के कगार पर हैं, 
स्लाटर हाउसेस का व्यापार चमक रहा है. 
पप्पू ठीक ही कहता है कि 
"यह पूंजी पतियों की सरकार है, गरीबों की दुश्मन." 
ग़रीबों में तो जज़्बात की तिजारत हो रही है, 
भावनाओं का उत्पाद, 
गाय हमारी माता है,
मुस्लिम इसको खाता है.
इसी में इन की रोज़ी रोटी सुरक्षित है.  
देखिए हिन्दुस्तान इन जालसाज़ सियासत दानों से कब आज़ाद होता है,    
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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