Monday 10 June 2019

सूरह फ़लक -113 = سورتہ الفلکसूरह नास -114 = سورتہ الناس

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह फ़लक -113 = سورتہ الفلک
(कुल आऊजो बेरब्बिल फलके) 
 सूरह नास -114 = سورتہ الناس
(कुल आऊजो बेरब्बिन नासे) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

आज मैं ख़ुश हूँ कि क़ुरआन की आख़िरी सूरह पर पहुँच चुका हूँ. 
सूरह अव्वल यानी सूरह फ़ातेहा में मैंने आपको बतलाया था कि 
मुहम्मद ने ख़ुद अपने कलाम को अल्लाह बन कर फ़रमाने की नाकाम कोशिश की, 
जिसे ओलिमा ने क़लम का ज़ोर दिखला कर कहा कि अल्लाह कभी अपने मुँह से बोलता है, 
कभी मुहम्मद के मुँह से, 
तो कभी बन्दे के मुँह से बोलता है. 
बोलते बोलते देखिए कि आख़िर में अल्लाह की बोलती बंद हो गई, 
उसने सच बोलकर अपनी ख़ुदाई के खात्मे का एलान कर दिया है. 

क़ुरआन की 114 सूरतों का सिलसिला बेतुका सा है, 
कोई सूरह इस्लाम के वक़्त ए इब्तेदा की है तो 
अगली सूरह आख़िर दौर की आ जाती है. 
बेहतर यह होता कि इसे मुरत्तब करते वक़्त मुहम्मद की तहरीक के मुताबिक़ तरतीब वार इस का सिसिला होता. ख़ैर , 
इस्लाम की तो सभी चूलें ढीली हैं, उनमें से एक यह भी है. 
इस ख़ामी से एक फ़ायदा यह हुवा है कि इन आख़िरी दो सूरतों में इस्लाम की वहदानियत की हवा ख़ुद मुहम्मदी अल्लाह ने निकाल दिया है. 
अल्लाह जिब्रील के मार्फ़त जो पैग़ाम मुहम्मद के लिए भेजता है उसमे मुहम्मद उन तमाम कुफ्र के माबूदों से पनाह माँगते है, अल्लाह की, 
जिन्हें  हमेशा वह नकारते रहे, 
 इस सूरह में अल्लाह तमाम माबूदों को पूजने का मश्विरः देता है, 
क्यूंकि उसका रसूल बीमारी से निढाल है.
मुहम्मद शदीद बीमार हो गए थे, 
कहते हैं कि उनका पेट फूल गया था, 
जिसकी वजेह थी कि कुछ यहूदिनों ने उन पर जादू टोना कर दिया था 
कि उनकी बजने वाली मिटटी जाम हो गई थी और उसका बजना बंद हो गया था.
(पिछली सूरतों में उन्होंने फ़रमाया है कि इंसान बजने वाली मिटटी का बना हुवा है) 
उनका पेट इतना फूल गया था कि बोलती बंद हो गई थी. 
जिब्रील अलैहिस सलाम वह्यि लेकर आए और मंदार्जा ज़ेल आयतें पढ़नी शरू कीं, 
तब जाकर धीरे धीरे उनका जाम खुलने लगा, 
उनसे जिब्रील ने कहलवाया कि - - - 
"तुम गाठों पर पढ़ पढ़ कर फूंकने वाली वालियों को तस्लीम करो कि उनकी भी एक हस्ती है, 
तुम्हारे अल्लाह जैसी ही." 
"हसद करने वाले भी दमदार हैं जो अपना असर अल्लाह की तरह रखते हैं, 
जब वह हसद करने पर आ जाएं." 
"आदमियों के मालिक, बादशाहों का भी अल्लाह की तरह ही कोई मुक़ाम है." 
"आदमियों के मुख़ालिफ़ मअबूदों ; लात, मनात और उज्जा वग़ैरा को भी तस्लीम करो कि वह भी अल्लाह की तरह ही कोई ताक़त हैं." 
"वुस्वुसा डालने के वह्म को भी अपना माबूद तस्लीम करो जब तुम वुस्वुसे में आओ." 
"जिन्न को तो तुम पहले से ही अल्लाह दो नम्बरी माने बैठे हो. तो ठीक है . . . ." 
एक हफ़्ते की मामूली बीमारी ने मुहम्मद को ऐसा सबक़ सिखलाया कि 
इस्लाम का मुँह काला हो गया. 
और अल्लाह की वहदानियत काफ़ुर.
मुहम्मद के फूले हुए पेट से मुहम्मदी अल्लाह की सारी हवा ख़ारिज हो गई,

मुसलमान सिर्फ़ इन ग्यारह आयतों की दो सूरतों को ही पढ़ कर, 
संजीदगी से मुहम्मद को समझ लें तो मुहम्मदी अल्लाह को समझ पाना आसान होगा. 
***
 नमाज़ियो !
सूरह फ़लक और सूरह नास के बारे में वाकिया है कि यहूदिनों ने मुहम्मद पर जादू टोना करके उनको बीमार कर दिया था, तब अल्लाह ने यह दोनों सूरतें बयक वक़्त नाज़िल कीं, 
घर की तलाशी ली गई, एक ताँत (सूखे चमड़े की रस्सी) की डोरी मिली, जिसमे ग्यारह गाठें थीं. 
इसके मुक़ाबिले में जिब्रील ने मंदार्जा ग्यारह आयतें पढ़ीं, 
हर आयत पर डोरी की एक एक गाठें खुलीं, 
और सभी गांठें खुल जाने पर मुहम्मद चंगे हो गए.
जादू टोना को इस्लामी आलिम झूट क़रार देते हैं, 
जब कि इसके ताक़त के आगे रसूल अल्लाह की अमाँ चाहते हैं. 
यह क़ुरआन क्या है?
राह भटके हुए मुहम्मदी अल्लाह की भूल भुलय्या ? 
या मुहम्मद की, अल्लाह का पैग़म्बर बन्ने की चाहत ? 

मुसलमानों! 
मैं तुम्हारा और तुम्हारी नस्लों का सच्चा ख़ैर ख़्वाह  हूँ , 
इस लिए कि दुन्या की कोई क़ौम तुम जैसी सोई हुई नहीं है. 
माज़ी परस्ती तुम्हारा ईमान बन गया है, 
जब कि मुस्तकबिल पर तुम्हारे ईमान को क़ायम होना चाहिए. 
हमारी तहक़ीक़ात और हमारे तजुरबे, 
हमारे अभी तक के सच है, 
इन पर ईमान लाओ. कल यह झूट भी हो सकते हैं, 
तब तुम्हारी नस्लें नए फिर एक बार सच पर ईमान लाएँगी, 
उनको इस बात पर लाकर कायम करो, 
और इस्लाम से नजात दिलाओ. 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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