Sunday 23 June 2019

मानसिक दासता


 अपूज्य 

आस्था, अकीदा, इबादत और पूजा, 
पहले वह इंसानी अमल हैं जो इंसान के ठोस बुन्याद को कमज़ोर करते हैं. 
हमने किसी अनदेखी ताक़त को मान्यता दे कर ख़ुद को कमज़ोर साबित किया और उसके सामने हथियार डाल दिए, 
फिर उसके बाद जंग लड़ने चले. 
क़ुदरत नुमा अगर कोई ताक़त है तो वह जीव से आत्म समर्पण नहीं चाहती, 
जीव का मुक़ाबला चाहती है. 
बिलकुल सही है आज का कथन 
"जो डर गया वह मर गया." 
सोलह आना सही है. 
अंधे विश्वाश को नमन करना इंसान की सब से बड़ी  कमज़ोरी है. 
नमन तो पूरी तरह से विश्वशनीयता को शोभा देता है, 
जैसे कि माँ बाप ग़ुरु और अपने बुज़ुर्ग. 
जब आप अपने लक्ष की ओर क़दम बढाएं तो ध्यान रखे कि 
आपकी मेहनत और यत्न ही आपके काम आएगा, 
आप से ज्यादा कोई जुझारू होगा तो लक्ष वह ले जाएगा. 
इस हक़ीक़त का सामना भी  आप बहादुरी के साथ  करिए.
कोई ताक़त पूज्य नहीं है, 
सराहनीय हो सकती है, प्रीय हो सकती है, पूज्य नहीं. 
पूजा इंसान को शारीरिक रूप में ही नहीं, बौद्धिक रूप को भी नुक़सान पहुंचती है. 
पूजा में आप जो भी कामना करते हैं, 
तो दूसरों के हक़ को मारने की भावना आपकी पूजा में छिपी है. 
धन प्राप्ति की पूजा समाज को कंगाल बनाने की लालसा है, 
इस वास्तविकता को समझे.
अपूज्य का वातावरण ही इंसान को भार मुक्त कर सकता है.
***
मानसिक दासता 
*अपनी मानसिक दासता का एलान कुछ लोग बड़े गर्व के साथ करते हैं कि - - -
मैं हनुमान भक्त हूँ अथवा 
मैं ख्वाजा अजमेरी का मुरीद हूँ.
इस तरह स्वाधीनता एवं स्वचिनतन, आधीन और ग़ुलाम  हो जाती है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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