Friday 7 June 2019

सूरह इख़लास - 112 = سورتہ الخلاص

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इख़लास - 112 = سورتہ الخلاص
(कुल हवाल लाहो अहद

जंगे-बदर के बाद जंगे-ओहद में अल्लाह के ख़ुद साख़ता रसूल हार के बाद अपने मुँह को ढक कर हारी हुई फ़ौज के सफ़े-आख़ीर में पनाह लिए हुए खड़े थे. अबू सुफ़्यान की आवाज़ ए बुलंद को सुनकर भी टस से मस न हुए. वह आवाज़ ए बुलंद जंग का बाहमी समझौता हुवा करती थी, कि नाम पुकारने के बाद दस्ते के मुखिया को सामने आ जाना चाहिए ताकि उसके मातहतों का ख़ून ख़राबा मज़ीद न हो. 
वैसे भी मुहम्मद ने कभी तलवार और तीर कमान को हाथ नहीं लगाया, 
बस लोगों को चने की झाड़ पर चढ़ाए रहते थे. उनका कलाम दीगरों के लिए होता ,
''मार ज़ोर लगा के, तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान"

"आप कह दीजिए वह यानी अल्लाह एक है,

अल्लाह बेनयाज़ है,
इसके औलाद नहीं,
और न वह किसी की औलाद है, 
और न कोई उसके बराबर है."

नमाज़ियो !

सूरह अख़लास क़ुरआन में दूसरी ग़नीमत सूरह है, 
पहली ग़नीमत थी सूरह फ़ातेहा. 
बाक़ी क़ुरआन की सूरतें करीह हैं, 
तमाम सूरतें मकरूह हैं. 
इन दोनों सूरतों को छोड़ कर बाक़ी क़ुरआन नज़रे-आतिश कर दिया जाय, 
तो भी इस्लाम की लाज बच सकती है, 
वरना तो ज़रुरत है मुकम्मल इन्कलाब की.
इसमें कोई शक नहीं की क़ुदरत की न कोई औलाद है, 
न ही वह किसी की औलाद है.
 इसी तरह क़ुदरत की मज़म्मत करना या उसे पूजना दोनों ही नादानियाँ हैं. 
क़ुदरत का सामना करना और उसके मद्दे-मुक़ाबिल रहना ही उसका पैग़ाम है. 
क़ुदरत पर फ़त्ह पाना ही इंसानी तजस्सुस और इंसानी ज़िन्दगी का राज़ है. 
क़ुदरत को मग़लूब करना ही उसकी चाहत है.


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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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