Wednesday 12 August 2020

निर्पक्षता

निर्पक्षता

मैं न हिदू समर्थक न इस्लाम समर्थक.
मेरी नज़रें हर मुआमले में सत्य को खोजती हैं. 
तुम जानो कागद की लेखी, 
हम जाने आंखन की देखी. 
कबीर के इस दोहे को जो नहीं समझ सकता, 
वह व्यक्ति मेरे विचारों को कभी भी नहीं समझ सकता. 
मैं भारत के इतिहास में ऐसे ऐसे मुस्लिम शाशकों को देखता हूँ 
कि जहाँ न्याय उनके आगे हाथ जोड़े खड़ा रहता है, 
समाज के साथ अन्याय करने वाले घट तौलियों के कूल्हों से 
घटतौल के बराबर मांस निकलवा लेता था. 
बादशाह ख़ुद फ़कीरी जीवन जीते मगर जनता को ख़ुश रखते. 
मनुवादी इतिहास जहाँ शुद्र को सवर्ण के तालाब का पानी पीना भी 
जुर्म हुवा करता था, पूरी दुन्या को मालूम है. 
वह न्याय से आँख मिलाने के क़ाबिल नहीं.
दोसतो! पक्ष पात को छोड़कर अपने व्यक्तिव को संवारें. 
पक्ष पाती कभी भी न्यायाधीश नहीं हो सकता. 
इस धरती को निर्पक्षता की ज़रुरत है 
जोकि आप की आगामी पीढ़ी की सवच्छ कर सके.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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