Thursday 20 August 2020

एजेंट्स

धर्मांध आस्थाएँ 

मोक्ष की तलाश में गए जन समूह को पहाड़ों की प्राकृति ने लील लिया, 
आस्था कहती है उनको मोक्ष मिल गया, वह सीधे स्वर्ग वासी हो गए, 
सरकार और मीडिया इसे त्रासदी क्यों मानते है ? 
समाज में भगवन का दोहरा चरित्र क्यों है ? 
यह मामला धर्म के धंधे बाजों की ठग विद्या है, 
इनकी दूकानों का पूरे भारत में एक जाल है. 
इन लोगों ने हमेशा जगह जगह पर अपने छोटे बड़े केंद्र स्थापित कर रखे हैं 
और भोली भाली नादान जनता इनका आसान शिकार है. 
सब कुछ गँवा चुकने के बाद भी जनता के मुंह से कल्पित भगवानों 
के विरोध में शब्द नहीं फूटते हैं. 
मठाधिकारी आड़म्बरों के उपाय सुझाते फिर रहे हैं और अपने अपने गद्दियों के लिए लड़ रहे होते हैं,
जनता सब कुछ देख कर भी अंधी बनी रहती है. 
मुस्लिम वहदानियत और निरंकार के हवाई बुत को लब बयक कहने के लिए मक्का जाते हैं और शैतान के बुत को कन्कडियाँ मार कर वापस आते हैं. 
बरसों से यह समाज अरबियों की सहायता हज के नाम पर करता चला आ रहा है. अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार होता है . 
कब यह मानव जाति जागेगी ? 
कब तक समाज का सर्व नाश होता रहेगा . 
अलौकिक विशवास को आस्था का नाम दे दिया गया है 
और गैर फ़ितरी यक़ीन को अक़ीदत का मुक़ाम हासिल है. 
बनी नॊअ इन्सान के हक में दोनों बातें तब असली सूरत ले सकती हैं 
जब मुसलामानों को केदार नाथ और हिन्दुओं को हज यात्रा पर जबरन भेज जाए. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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