Friday 14 August 2020

इतिहास

इतिहास 

पाषाण युग से लेकर परमाणु युग तक के इर्तेक़ाई (रचना कालिक) काल, 
युग अंश की रूप रेखा मानव इतिहास होता है. 
आज के परिवेश में बैठ कर इतिहास को पाटा और भरा जा सकता है, 
पढ़ा और समझा नहीं जा सकता. 
कुछ मित्र मार्क्स वाद और प्रजा तांत्रिक की समझ के आईने में झांक कर इतिहास को समझने की कोशिश करते हैं, 
उनको राय है कि इतिहास को समझने के लिए उस इर्तेक़ाई वक़्फ़े 
में जी कर इतिहास को समझे.
अतीत में राजा और प्रजा की कल्पना ,
पालक और पालतू  जैसी हुवा करते थी. 
पालतू (जनता) को पेट भर भोजन, 
स्वादानुसार भोजन, 
आवास,संरक्षण और शांत जीवन मात्र से पालक का वास्ता हुवा करता था, 
पालक की प्रशाशनीय व्योवस्था क्या है ? 
इससे पालतू को कोई लेना देना नहीं था. 
वह मंदिर को लूट कर माल लाता हो या मस्जिद को तोड़ कर, 
उसकी सुविधा का ख़याल रखता हो.
महमूद गज़नवी ने सत्तरह घुड सवारों को लेकर सोम नाथ को लूट के  गज़नी ले गया, हजारों मील का सफ़र था, जनता जनार्दन ने उसे देखा और मात्र इतना कहा कोई राजा किसी राजा पर हमला करने जा रहा है.
कोई देश भक्ति थी न हुब्बे वतनी. 
उससे उन्हें क्या लेना देना राजाओं के खेल हैं, वह जानें.
पहले आम दस्तूर हुवा करता था राजा ने धर्म बदला, 
प्रजा ने भी उसके नए धर्म को स्वीकार कर लिया, 
 इतिहास में सम्राट अशोक की कहानी इस बात की खुली मिसाल है. 
राजा देश की उपज को जनता के हक़ में न सर्फ़ करके 
अपने अय्याशियों में सर्फ़ करता है, 
महल और रानिवासे बनवाता है, 
तबतो ज़रूर पालक के ख़िलाफ़ पालतू के कान खड़े होते. 
पालक आपस में एक दूसरे का हक़ मारते तो उनकी आपस में आवाज़ बुलंद होती. 
मेरे बचपन में बस्ती के फ़क़ीर झोली लिए भीख मांगते 
और कुत्ते उन पर भौंकते.
शेख सअदी इसे इस तरह रूप देते हैं कि,
कुत्ता फ़क़ीर से कहता है, मैं रात व् दिन बस्ती की रखवाली करता हूँ 
और बदले में दर दर जाकर एक कौर की उम्मीद करता हूँ, 
कौर मिला तो खा लिया, न मिला तो भूखे पेट पड़ रहा 
और तू पेट को झोली बना कर मांगता रहता है जो कभी भारती ही नहीं.

कुछ बादशाहों ने अपनी ज़िन्दगी पालक बन कर ही नहीं,
 पालतू की (प्रजा की) तहर ही जिया है .
प्रजा को उसके राज तंत्र से कोई वास्ता नहीं कि उसने अपने भाइयों को मार कर व्योवस्था क़ायम की हो या बाप को क़ैद करके .
राज कुमारों के शीश काटे हों या आस पास के राजाओं की गर्दनें उड़ाई हों, 
जिनका बाप बना है, उनको कैसे पाला पोसा. यह किसी शाशक की पहली पहचान है.  
उनके कर्मों का हिसाब उनकी नस्लें चुकाएंगी.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment