Saturday 15 August 2020

हसन बसरी


हसन बसरी

मानव समाज में कुछ गुमनाम हस्तियाँ ऐसी छाप छोड़ जाती हैं कि उनकी गुमनामी को तलाशते हुए इंसानियत राह ए रास्त तक पहुँच जाती है . 
ऐसे ही थे बसरा के फ़क़ीर, बाग़ी ए इस्लाम हसन बसरी. 
वह मेहनत मज़दूरी करके गुज़ारा करते थे. उनकी समकालीन मशहूर बाग़ी ए इस्लाम राबिया बसरी हुवा करती थीं.
अरब में इस्लाम की दूसरी पीढ़ी का दौर था, सहाबी ए इक्राम (मुहम्मद कालीन) मुहम्मद के साथ ही अल्ला को प्यारे हो चुके थे. ताबेईन (सहबियो के ताबे) का दौर शुरू हो गया था. अल्लाह के रसूल के बाद असामाजिक तत्वों को पूरी आज़ादी मिल चुकी थी.अरब में शरीफ़ और जदीद लोगों की सासें मुहाल थीं. जैसे कि आज भारत में कामरेड, माओ वादी और नक्सली वग़ैरा. 
इसी वक़्त मक्का में इस्लाम के ख़िलाफ़ बग़ावत का एलान हो गया थाऔर टेक्स देना बंद कर दिया था. मक्कियों ने मुहम्मद को अल्लाह का रसूल मानने से इंकार कर दिया था, मगर निरंकार और सिर्फ़ एक अल्लाह को मानने का एतराफ़ ज़रूर कर लिया.
ख़लीफ़ा अबु बक्र ने उनकी बात मान ली थी कि बहर हाल आधे इस्लाम को मान गए थे. "लाइलाहा इल्लिल्लाह."
इसी आतंकी दौर में हसन बसरी का वजूद दहशत गर्दों के चंगुल में था. हालांकि उनकी शख़्सियत इस्लाम पर भारी पड रही थी, आला मुकाम हस्ती जो हुवा करते थे.
बसरा के नव जवानों ने फ़ैसला किया कि बसरा में एक मस्जिद बनवाई जाए. 
कमेटी बनी, तय हुवा कि पहला चंदा बरकत के तौर पर हसन बसरी से लिया जाए.
लोग उनके पास पहुंचे और मुद्दआ बतलाया. फिर चादर फैला कर अर्ज़ किया कि बरकत के तौर पर आप इसमें कुछ डाल दीजिए.
लोगों की फ़रमाइश सुनकर सूफ़ी हसन के चेहरे का रंग उड़ गया था,
उसी पल शागिर्दों ने देखा कि वह कुभला गए थे.
हसन ने बड़ी नक़ाहत के साथ जेब में पड़े एक सिक्के को निकाल कर चादर में डाल दिया जिसकी क़ीमत कम्तरीन सिक्कों में थी.
शाम को कमेटी के लोग उनके पास दोबारः आए और मुआज़रत के साथ हसन का दिया हुआ वह सिक्का उन्हें वापस कर दिया, यह कहते हुए कि सिक्का खोटा है
और आपका ही है कि एक पैसे की अत्या आपके सिवा किसी ने नहीं दिया.
हसन के चेहरे पर उसी वक़्त रौनक आ गई,
वह ख़ुशी से खिल उट्ठे,
हसन के साथी हैरत ज़दा थे.
पूछ ही लिया कि पैसा देते हुए आपकी कैफ़ियत क्या हुई थी ?
और इसकी वापसी पर ख़ुशी की यह लहर ?
सूफ़ी हसन ने कहा कि चंदा देते वक़्त मुझे अपनी कमाई पर शक हुवा
कि मैं ने कहीं पर काम चोरी तो नहीं की ?
कि मेरी कमाई पानी और मिटटी में मिलने जा रही है ?
पैसा वापस हुवा तो मेरी बेचैनी ख़त्म हुई.
उनहोंने कहा यह पैसा मुझे कल की मजदूरी में फलां शख़्स ने दिया था,
जाकर उसकी ख़बर लेता हूँ .
यह थी एक मोमिन ही अज़मत जो ईमान की ज़िन्दगी जीता था.
और इस्लामी गुंडों से छिपा छिपा फिरता था.
एक बार हसन बसरी दीवाना वार भागे चले जा रहे थे,
उनके एक हाथ में जलती हुई मशाल थी और दूसरे हाथ में पानी भरा लोटा.
लोगों ने रोका और पूछा, कहाँ जा रहे हो हसन ?
हसन बोले, जा रहा हूँ उस जन्नत में आग लगाने जिसकी लालच में लोग नमाज़ पढ़ते हैं - - - और जा रहा हूँ उस दोज़ख में पानी डालने जिसके डर से लोग नमाज़ पढ़ते हैं.
बहुत बड़ा फ़लसफ़ा है कि कायनात में डूब कर सच्चाइयों को तलाशा जाए.
लालच और भय से मुक्त.
जैसे कि हमारे वैज्ञानिक करते हैं,
उन्हों ने दुन्या को गुफाओं से उठाकर शीश महल में रख दिया है.
जिंदा संत हाकिन इसकी मिसाल है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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