Monday 17 August 2020

निंगलो या उगलो



निंगलो या उगलो

 

अभी कल की बात है कि रूस में वहां के बाशिंदे बदलाव चाहते थे, 
वह अपनी रियासतों को अपना मुल्क बनाना चाहते थे, 
उन्होंने इसकी आवाज़ बुलंद की. सदर ए रूस ब्रेज़नेव ने उन्हें आगाह किया कि 
'अलग होने से पहले एक हज़ार बार सोचो 
फिर हमें बतलाओ कि क्या इसका नतीजा तुम्हारे हक़ में होगा?' 
जनता ने एक हज़ार बार सोचने के बाद अपनी मांग दोहराई. 
बिना किसी ख़ून ख़राबे के सात आठ राज्यों को रूस ने आज़ाद कर दिया. 
भारत की तरह रियासतों को अपना अभिन्न नहीं बतलाया.
इसी तरह कैनाडा में फ़्रांससीसी लाबी ने 
कैनाडा से बाहर होकर अपना मुल्क चाहते हैं, 
उनकी आवाज़ पर कैनाडा में तीन बार राय शुमारी हुई 
अलगाव वादी बहुत मामूली अंतर से तीनो बार हारे. 
वहां के सभी समाज ने इस पर एक क़तरा भी ख़ून न बहने दिया. 
राय शुमारी को सर आँखों पर रख कर अपने अपने कामों पर लग गए.
सदियों पहले गीता में कहा गया है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है. 
किसी मुफ़क्किर की राय है कि हर हिस्सा ए ज़मीन में 
कोई शाही या कोई निज़ाम पचास साल से ज़्यादा नहीं पसंद किया जाता.
फिराक़ कहता है
निज़ामे दहर बदले, आसमाँ बदले, ज़मीं बदले,
कोई बैठा रहे कब तक हयात-बेअसर लेके.
भारत ने राष्ट्र मंडल में वचन दिय हुवा है कि कश्मीर में राय शुमारी करा के कश्मीर को कश्मीरियों के मर्ज़ी के हवाले कर देंगे, 
फिर चाहे वह हिंदुस्तान के साथ रहे, या पाकिस्तान के साथ, 
अथवा आज़ाद हो कर अपना मुल्क बनाएँ.
यह बात किसी फ़र्द का वादा नहीं, बल्कि क़ौम की दूसरी क़ौम को दी हुई 
ज़बान है जो अलिमी पंचायत में लिखित दी गई है.
तुलसी दास जी कहते हैं
रघु कुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई.
आज हिदुस्ताम चरित्र के मामले में दुन्या के आख़री पायदान के क़रीब है.
इसकी वजह यह है कि हम परले दर्जे के बे ईमान लोग हैं.

अब मैं आता हूँ कश्मीर पर कि - - - 
ऐ कश्मीरियो  
तुम्हारे लिए यह हुस्न इत्तेफ़ाक़ है कि तुम बड़े हिदुस्तान के शहरी होकर रह रहे हो, 
तुम हिदुस्तानी होकर एक बड़े मुल्क के बाशिंदे हो, वह भी कश्मीरियत के साथ. 
हिदुस्तान से अलग होकर क्या पाओगे ? 
नेपाल, भूटान या श्री लंका जैसे छोटे से देशों में ग़ुमनामी ? 
ग़ुमनाम होकर रह जाओगे, तुम्हारे हाथ महरूमियों के सिवा कुछ न आएगा. 
वैसे अलग होकर तुम खाओगे क्या? 
सेब और ज़ाफ़रान से अपने पेट भरोगे? 
क्या तुम मुल्लाओं का शिकार होकर इस्लामी जिहालातों के गोद में जाना चाहते हो ?  पकिस्तान बेचैन है तुमको गोद लेने के लिए.
अलक़ायदा और तालिबान तुम्हारा शिकार कर लेंगे .
अभी एक बड़े मुल्क के बाशिदे होकर तमाम सहूलते तुम्हें मयस्सर हैं. 
ख़ास कर तअलीम  के मैदान में, 
इन तमाम मवाक़े गँवा बैठोगे. 
वैसे अभी तक तुम कुछ ख़ास बन भी नहीं पाए हो. 
मैं कश्मीर घूमा हूँ कोई किरदार अवाम में नहीं है. 
पक्के झूटे बेईमान, ठग और लड़ाका क़ौम हो. 
आज़ाद होने के बाद भी तुम आपस में लड़ मरोगे. 
कशमीर के मौसमी क़बीले हर साल पूरे भारत में ख़ैरात के लिए फैल जाते हैं, 
फ़िर वह कहाँ जाया करेंगे ?
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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