Saturday 19 December 2020

बारीक बीन अँधा

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बारीक बीन अँधा     

मुसलमानों! 
अल्लाह तअला न बारीक बीन है न बाख़बर, 
न वह बनिए की तरह है कि सब का हिसाब किताब रखता है, 
वह अगर है तो एक निज़ाम बना कर क़ुदरत के हवाले कर दिया है, 
अगर नहीं है तो भी क़ुदरत का निज़ाम ही कायनात में लागू है. 
हर अच्छे बुरे का अंजाम मुअय्यन है, 
इस ज़मीन की रफ़्तार अरबों बरस से मुक़र्रर है कि है कि 
वह एक मिनट के देर के बिना साल में एक बार अपनी धुरी पर 
अपना चक्कर पूरा करती है. 
क़ुदरत गूँगी, बहरी है और अंधी है 
उससे निपटने के लिए इंसान हर वक़्त उसके मद्दे मुक़ाबिल रहता है. 
अगर वह मुक़ाबिला न करता होता तो अपना वजूद गवां बैठता, 
आज जानवरों की तरह सर्दी, गर्मी और बरसात की मार झेलता होता, 
बड़ी बड़ी इमारतों में ए सी में न बैठा होता.
मुसलमान उसका मुक़ाबिला नहीं करता बल्कि उसको पूजता है, 
यही वजेह है कि वह ज़वाल पज़ीर है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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